Darul Uloom Deoband में महिलाओं के प्रवेश पर लगी रोक हटी, कड़े नियमों के साथ दी गई अनुमति, जानें क्या हैं नए दिशा-निर्देश
Darul Uloom Deoband सहारनपुर जिले के देवबंद स्थित दारुल उलूम, जो अपनी इस्लामिक शिक्षा और ऐतिहासिक महत्व के लिए दुनियाभर में प्रसिद्ध है, ने एक महत्वपूर्ण निर्णय लिया है। महिलाओं के लिए संस्था के परिसर में प्रवेश पर लगे प्रतिबंध को अब हटा दिया गया है। हालांकि, इस प्रवेश के लिए कुछ सख्त नियम और शर्तें तय की गई हैं, जिनका पालन करना आवश्यक होगा। यह निर्णय उन महिलाओं के लिए एक नया अवसर है, जो इस धार्मिक और शैक्षिक संस्था में जाकर इस्लामिक शिक्षा और संस्कृति को करीब से देखना चाहती हैं।
अब महिलाएं संस्थान के भीतर प्रवेश करने के लिए दो घंटे का विजिटर पास प्राप्त कर सकती हैं। इस पास की वैधता केवल दो घंटे की होगी, और उसे सूर्यास्त से पहले निरस्त कर दिया जाएगा। इस दौरान, महिलाओं को पूर्ण रूप से हिजाब पहनना होगा और उन्हें किसी परिवार के सदस्य के साथ ही प्रवेश की अनुमति दी जाएगी। इसके अलावा, परिसर में कोई भी प्रकार की वीडियोग्राफी या सोशल मीडिया पर रील बनाने की अनुमति नहीं होगी।
17 मई 2024 को हुई थी प्रवेश पर रोक
पिछले साल, 17 मई 2024 को दारुल उलूम प्रबंधन ने बाहरी महिलाओं के प्रवेश पर रोक लगा दी थी। इस निर्णय के पीछे प्रमुख कारण यह था कि बाहर से आने वाली महिलाएं बिना हिजाब के घूम रही थीं और दारुल उलूम की ऐतिहासिक इमारतों के सामने फोटो खींचकर सोशल मीडिया पर वायरल कर रही थीं। इन घटनाओं ने संस्थान के अनुशासन और छात्रों की पढ़ाई में विघ्न डाला था। दारुल उलूम के प्रबंधन ने माना कि ऐसी गतिविधियाँ न केवल संस्था के आंतरिक नियमों के खिलाफ थीं, बल्कि इससे छात्रों की एकाग्रता भी प्रभावित हो रही थी।
नई नियमावली: कड़े दिशा-निर्देशों के साथ महिला प्रवेश
अब, Darul Uloom Deoband ने इस विषय पर एक विस्तृत चर्चा के बाद एक नियमावली तैयार की है, जिसके तहत महिलाएं संस्थान के परिसर में प्रवेश कर सकेंगी। इस नियमावली में महिला प्रवेश के कई कड़े दिशा-निर्देश शामिल हैं, जो यह सुनिश्चित करेंगे कि संस्थान का वातावरण बना रहे और किसी प्रकार की अनुशासनहीनता न हो।
मीडिया प्रभारी अशरफ उस्मानी ने जानकारी दी कि संस्थान में महिलाओं के प्रवेश के लिए आगंतुक (विजिटर) पास जारी किए जाएंगे। यह पास प्राप्त करने के लिए महिलाएं संबंधित अधिकारी को आधार कार्ड, वोटर कार्ड या पैन कार्ड जैसे पहचान पत्र दिखाएंगी। इसके अलावा, विजिटर पास में विजिटर का नाम, मोबाइल नंबर, पता और अन्य आवश्यक विवरण भी दिए जाएंगे।
विजिटर पास और हिजाब की अनिवार्यता
विशेष ध्यान देने योग्य बात यह है कि महिलाओं को संस्थान में प्रवेश करते समय हिजाब पहनना अनिवार्य होगा। इसके अलावा, उन्हें परिसर में किसी अन्य व्यक्ति के साथ ही प्रवेश करने की अनुमति होगी। यह कदम संस्थान की धार्मिक और सांस्कृतिक गरिमा को बनाए रखने के उद्देश्य से उठाया गया है।
सभी आगंतुकों को अपने मोबाइल फोन को मुख्य द्वार पर जमा करना होगा, और प्रवेश के समय फोन वापस नहीं किया जाएगा। यह कदम विशेष रूप से वीडियो और रील बनाने से रोकने के लिए उठाया गया है। संस्थान में प्रवेश करने का समय दिन के सूर्यास्त से पहले समाप्त हो जाएगा, ताकि किसी प्रकार का अनुशासनहीनता न हो।
महिलाओं के अधिकार और बदलाव की दिशा में कदम
इस निर्णय को लेकर समाज के विभिन्न वर्गों से प्रतिक्रिया आ रही है। कुछ लोग इसे महिलाओं के अधिकारों की दिशा में एक सकारात्मक कदम मान रहे हैं, जबकि कुछ इसे एक शर्त के तहत महिला स्वतंत्रता पर अंकुश लगाने के रूप में देख रहे हैं। हालांकि, यह सच है कि दारुल उलूम जैसे धार्मिक और सांस्कृतिक संस्थानों के भीतर इस प्रकार के नियमों का पालन करना एक जरूरी कदम हो सकता है, जो संस्था की मान्यताओं और परंपराओं के अनुरूप हो।
मदरसा शिक्षा और बदलाव के दौर में महिलाओं की भूमिका
Darul Uloom Deoband की शिक्षा प्रणाली और उसका ऐतिहासिक महत्व न केवल भारत में बल्कि पूरी दुनिया में चर्चित है। यहां पर दी जाने वाली इस्लामिक शिक्षा की गुणवत्ता को लेकर दुनिया भर से छात्र आते हैं। यह संस्था धार्मिक शिक्षाओं के साथ-साथ सामाजिक बदलाव की दिशा में भी कार्यरत है।
हालांकि, पिछले कुछ दशकों में महिलाओं के लिए कई अवसर बढ़े हैं, लेकिन इस्लामिक संस्थानों में महिलाओं की भूमिका अब भी एक चुनौतीपूर्ण विषय बना हुआ है। दारुल उलूम का यह निर्णय महिलाओं के लिए एक नई दिशा और अवसर प्रदान करता है, जहां वे धार्मिक शिक्षा प्राप्त कर सकती हैं, साथ ही उनके प्रवेश पर कड़े नियमों का पालन किया जाएगा।
समाजिक दृष्टिकोण और महिलाओं की स्थिति
भारत में महिलाओं की स्थिति में लगातार बदलाव हो रहा है, और यह बदलाव दारुल उलूम जैसे संस्थानों में भी दिखना शुरू हो रहा है। हालांकि, इसके लिए समय की आवश्यकता है और हर संस्था को अपने परंपराओं के अनुसार निर्णय लेने का अधिकार है।
इस फैसले ने यह साबित किया है कि महिलाओं के लिए धर्म, शिक्षा और संस्कृति में अवसर के साथ-साथ नियमों का पालन भी महत्वपूर्ण है। यह कदम महिलाओं को अपनी धार्मिक आस्थाओं के साथ शिक्षा प्राप्त करने का मौका देता है, जबकि साथ ही सामाजिक मान्यताओं का भी ध्यान रखा जाता है।
Darul Uloom Deoband ने महिलाओं के प्रवेश पर लगी रोक को हटाकर एक ऐतिहासिक निर्णय लिया है, जिसे निश्चित रूप से विभिन्न दृष्टिकोणों से देखा जाएगा। हालांकि, इस निर्णय के साथ कई कड़े नियम जुड़े हैं, लेकिन यह कदम संस्था की परंपराओं और मूल्य प्रणाली को बनाए रखते हुए महिलाओं को एक नया अवसर प्रदान करता है।
यह निर्णय इस्लामिक शिक्षा के क्षेत्र में महिलाओं की भूमिका को मजबूत करने की दिशा में एक और महत्वपूर्ण कदम है, जो आने वाले समय में और भी बदलाव ला सकता है।

