कभी-कभी शांत रहना और भाव को समझना बेहतर होता है- Supreme court
Supreme court ने राज्य सभा से अनिश्चितकालीन निलंबन को चुनौती देने वाले आम आदमी पार्टी (आप) के निलंबित सांसद राघव चड्ढा की याचिका पर सुनवाई शुक्रवार को टाल दी. इससे पहले, शीर्ष न्यायालय को सूचित किया गया कि इस मुद्दे पर कुछ घटनाक्रम हुआ है.
राज्यसभा सचिवालय की ओर से पेश हुए सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता द्वारा यह बताये जाने पर कि विषय पर चर्चा जारी है, Supreme court प्रधान न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति जे बी पारदीवाला तथा न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा की पीठ ने विषय की सुनवाई एक दिसंबर के लिए सूचीबद्ध कर दी.
मेहता ने कहा, “न्यायालय के सुझाव के अनुसार, कुछ चर्चाएं हुई हैं और अब वह (चड्ढा) विशेषाधिकार समिति के समक्ष उपस्थित हो सकते हैं. विषय को एक दिसंबर को लिया जा सकता है, तबतक कुछ घटनाक्रम होंगे.”
चड्ढा की ओर से पेश हुए Supreme court अधिवक्ता शादान फरासत ने कहा कि शीतकालीन सत्र के लिए सदन को प्रश्न भेजने की समय सीमा जल्द ही समाप्त होने वाली है इसलिए विषय को 29 नवंबर के लिए सूचीबद्ध किया जा सकता है. न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ ने फरासत से कहा, “कभी-कभी शांत रहना और भाव को समझना बेहतर होता है.” पीठ ने विषय की सुनवाई एक दिसंबर के लिए निर्धारित कर दी.
चड्ढा की ओर से पेश हुए वकील शादान फरासत ने कहा कि उनके मुवक्किल का संसद के उच्च सदन की गरिमा को प्रभावित करने का कोई इरादा नहीं था और वह नए सिरे से बिना शर्त माफी मांगने में संकोच नहीं करेंगे. उन्होंने कहा कि सांसद ने पहले भी कई मौकों पर माफी मांगी है. फरासत ने कहा, “वह (चड्ढा) सदन के सबसे युवा सदस्य हैं और माफी मांगने में कोई दिक्कत नहीं है.”
चड्ढा 11 अगस्त से निलंबित हैं क्योंकि कुछ सांसदों ने उन पर आरोप लगाया था कि उन्होंने उनकी सहमति के बगैर एक प्रस्ताव में उनका नाम जोड़ दिया. इन सांसदों में ज्यादातर भाजपा के हैं. प्रस्ताव के जरिये विवादास्पद दिल्ली सेवाएं विधेयक की पड़ताल के लिए एक प्रवर समिति गठित करने की मांग की गई थी. यह आरोप लगाया गया था कि राज्यसभा सदस्य चड्ढा ने दिल्ली सेवाएं विधेयक प्रवर समिति के पास भेजने के लिए एक प्रस्ताव पेश किया.
Supreme court ने तीन नवंबर को चड्ढा को राज्यसभा के सभापति जगदीप धनखड़ से मिलने और प्रवर समिति विवाद को लेकर बिनाशर्त माफी मांगने को कहा था. साथ ही, यह भी कहा था कि धनखड़ इस पर ‘सहानुभूतिपूर्वक’ विचार कर सकते हैं.