Govindananda Saraswati ने स्वामी Avimukteshwaranand को बताया फर्जी भगोड़ा
धार्मिक संस्थानों की साख पर सवाल
यह विवाद सिर्फ एक राजनीतिक मुद्दा नहीं है, बल्कि धार्मिक संस्थानों की साख और विश्वास पर भी गंभीर सवाल खड़ा करता है। शंकराचार्य का पद भारतीय समाज में अत्यधिक सम्मानित और प्रतिष्ठित माना जाता है। जब किसी पर शंकराचार्य के पद का गलत तरीके से उपयोग करने का आरोप लगता है, तो यह समाज के नैतिक और धार्मिक मूल्यों पर आघात करता है।
नकली शंकराचार्य और धोखाधड़ी
भारत में नकली धार्मिक गुरुओं और शंकराचार्यों की समस्या कोई नई नहीं है। ऐसे कई मामले सामने आए हैं जहां कुछ व्यक्तियों ने धार्मिक नेताओं की आड़ में जनता को धोखा दिया है। इस प्रकार की धोखाधड़ी न केवल धर्म का अपमान है बल्कि समाज में अविश्वास और अव्यवस्था का कारण भी बनती है।
स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद पर वाराणसी कोर्ट ने गैर-जमानती गिरफ्तारी वारंट जारी किया था और उन्हें भगोड़ा घोषित किया था। इसके बावजूद, अविमुक्तेश्वरानंद ने समाज में अपनी स्थिति को बनाए रखने का प्रयास किया है। गोविंदानंद सरस्वती का आरोप है कि अविमुक्तेश्वरानंद देश को नुकसान पहुंचा रहे हैं और उनकी गतिविधियां धार्मिक और नैतिक मूल्यों के विपरीत हैं।
#WATCH स्वामी गोविंदानंद जी का विस्फोटक खुलासा।कहते हैं – प्रियंका वाड्रा ने ही अविमुक्तेश्वरानंद को ज्योतिर्मठ का शंकराचार्य नियुक्त किया है।जब गुरुजी स्वरूपानंद ‘ब्रह्मलीन’ हो गए तो कांग्रेस ने एक पत्र जारी कर अविमुक्तेश्वरानंद को शंकराचार्य के रूप में मान्यता दे दी। pic.twitter.com/EffBtF5YFE
— News & Features Network (@newsnetmzn) July 21, 2024
सामाजिक और नैतिक प्रभाव
इस प्रकार के विवादों का समाज पर गहरा प्रभाव पड़ता है। धार्मिक नेता समाज में नैतिक और आध्यात्मिक मार्गदर्शन का महत्वपूर्ण स्रोत होते हैं। जब उन पर इस प्रकार के आरोप लगते हैं, तो यह समाज में नैतिक पतन और धार्मिक अविश्वास का कारण बनता है। ऐसे मामलों में, धार्मिक और राजनीतिक नेताओं की जिम्मेदारी होती है कि वे समाज को सही दिशा में मार्गदर्शन करें और सत्यता की पुष्टि करें।
शंकराचार्य परंपरा और उसका महत्व
शंकराचार्य की परंपरा अद्वैत वेदांत के प्रचार-प्रसार का महत्वपूर्ण हिस्सा है। आदि शंकराचार्य ने भारतीय समाज में धार्मिक और आध्यात्मिक जागरूकता फैलाने का महत्वपूर्ण कार्य किया था। उनकी परंपरा को बनाए रखना और उसके मूल्यों का पालन करना समाज के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है।
गोविंदानंद सरस्वती और अविमुक्तेश्वरानंद: विवाद का राजनीतिक पक्ष
गोविंदानंद सरस्वती का यह कहना कि कांग्रेस पार्टी स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद का समर्थन कर रही है, इस विवाद को और भी जटिल बना देता है। उन्होंने यह भी आरोप लगाया कि कांग्रेस, विशेषकर प्रियंका गांधी वाड्रा, ने इस मामले में राजनीतिक लाभ उठाने का प्रयास किया है। गोविंदानंद सरस्वती ने कांग्रेस पर आरोप लगाया कि वे नरेंद्र मोदी के खिलाफ खड़े होने के कारण अविमुक्तेश्वरानंद का समर्थन कर रहे हैं।
गोविंदानंद सरस्वती ने कहा, अविमुक्तेश्वरानंद को कांग्रेस पार्टी संपूर्ण समर्थन दे रही है. प्रियंका गांधी वाड्रा ने 13 सितंबर 2022 को उन्हें पूज्य शंकराचार्य अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती जी के रूप में संबोधित करते हुए पत्र लिखा. जब सुप्रीम कोर्ट ने स्टे जारी कर दिया था, तब प्रियंका गांधी वाड्रा ने अविमुक्तेश्वरानंद को शंकराचार्य के रूप में संबोधित करते हुए पत्र कैसे लिखा?
स्वाती गोविंदानंद सरस्वती ने कहा, क्या कांग्रेस तय करेगी कि शंकराचार्य कौन है? वे नरेंद्र मोदी के खिलाफ खड़े हो गए तो कांग्रेस उनका समर्थन कर रही है. प्रियंका गांधी वाड्रा या तो पत्र लिखने के लिए सार्वजनिक रूप से माफी मांगें या फिर हम उनके खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में अवमानना का मामला दायर करेंगे.
ज्योतिर्मठ के गोविंदानंद सरस्वती जी महाराज ने शंकराचार्य स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद पर हमला जारी रखते हुए कहा, वाराणसी कोर्ट ने उनके खिलाफ गैर-जमानती गिरफ्तारी वारंट जारी किया गया था और स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद को भगोड़ा घोषित किया था. हम सुप्रीम कोर्ट को बताना चाहते हैं हमें न्याय चाहिए. उन्होंने कहा, स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद देश को नुकसान पहुंचा रहे हैं.
अविमुक्तेश्वरानंद लोगों को मार रहे हैं, अपहरण कर रहे हैं, भगवान राम की प्राण प्रतिष्ठा पर सवाल उठा रहे हैं, संन्यासी बनकर शादियों में शामिल हो रहे हैं. वह कह रहे हैं कि केदारनाथ में 228 किलो सोना गायब हो गया है, क्या उन्हें सोने और पीतल में फर्क भी पता है
जनता की भूमिका और जागरूकता
इस प्रकार के विवादों में जनता की भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण होती है। जनता को चाहिए कि वे धार्मिक और आध्यात्मिक नेताओं की सच्चाई और उनकी गतिविधियों के बारे में जागरूक रहें। नकली धार्मिक गुरुओं और शंकराचार्यों की पहचान करना और उनके खिलाफ आवाज उठाना समाज की जिम्मेदारी है।
स्वामी गोविंदानंद सरस्वती और स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद के बीच का यह विवाद न केवल धार्मिक और राजनीतिक मुद्दा है बल्कि समाज की नैतिकता और धार्मिकता पर भी सवाल खड़ा करता है। इस प्रकार के मामलों में सत्यता की पुष्टि और न्याय की आवश्यकता है ताकि समाज में धार्मिक और नैतिक मूल्यों की रक्षा हो सके। धार्मिक और राजनीतिक नेताओं को चाहिए कि वे समाज को सही दिशा में मार्गदर्शन करें और धार्मिक संस्थानों की साख को बनाए रखें। जनता को भी जागरूक रहना चाहिए और धर्म के नाम पर होने वाले धोखाधड़ी से सावधान रहना चाहिए।
शंकराचार्य परंपरा की प्रामाणिकता
शंकराचार्य की परंपरा को बनाए रखना और उसकी प्रामाणिकता को स्थापित करना अत्यंत आवश्यक है। इस प्रकार के विवाद और आरोप न केवल धार्मिक संस्थानों की साख को कमजोर करते हैं बल्कि समाज में धार्मिक अविश्वास का कारण भी बनते हैं। इसलिए, धार्मिक और राजनीतिक नेताओं को इस प्रकार के मुद्दों को गंभीरता से लेना चाहिए और समाज को सही मार्गदर्शन देना चाहिए।
यह लंबा और विस्तृत लेख शंकराचार्य विवाद, धार्मिक और नैतिक प्रभाव, और समाज की जागरूकता पर प्रकाश डालता है। धार्मिक और राजनीतिक नेताओं की जिम्मेदारी है कि वे समाज को सही दिशा में मार्गदर्शन करें और धार्मिक संस्थानों की साख को बनाए रखें।

