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Israel-Iran युद्ध की आंच भारत के प्रोजेक्ट्स तक! चाबहार पोर्ट और INSTC पर संकट के बादल, व्यापार और तेल की कीमतों में उथल-पुथल तय!

भारत और ईरान के प्राचीन संबंध, रणनीतिक साझेदारी और वर्तमान में जारी बड़े-बड़े इंफ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्ट्स आज खतरों की चपेट में हैं। Israel-Iran के बीच बढ़ती तनातनी और संभावित सैन्य संघर्ष के चलते भारत के अरबों डॉलर के प्रोजेक्ट्स जैसे चाबहार पोर्ट और INSTC गलियारा अब संदेह के घेरे में आ चुके हैं।


भारत-ईरान संबंध: साझेदारी की नींव और वर्तमान सामरिक सहयोग

भारत और ईरान के संबंध सिर्फ व्यापार या तेल तक सीमित नहीं हैं, बल्कि ऐतिहासिक, सांस्कृतिक और भू-रणनीतिक दृष्टि से भी बेहद गहरे हैं। भारत हमेशा से ईरान के साथ एक स्थिर और सहयोगात्मक संबंध बनाए रखने की नीति पर काम करता रहा है। चाबहार बंदरगाह, चाबहार-जाहेदान रेल लाइन और इंटरनेशनल नॉर्थ-साउथ ट्रांसपोर्ट कॉरिडोर (INSTC) जैसे प्रोजेक्ट्स इस साझेदारी के प्रतीक हैं।

लेकिन मौजूदा हालात में जब इजरायल और ईरान के बीच युद्ध की स्थिति बन रही है, तब इन परियोजनाओं की प्रगति और भारत की सामरिक योजना दोनों पर गंभीर प्रश्नचिह्न खड़े हो गए हैं।


चाबहार बंदरगाह: भारत की ईरान में सबसे बड़ी रणनीतिक पकड़

भारत द्वारा विकसित चाबहार बंदरगाह न केवल एक ट्रेडिंग हब है, बल्कि अफगानिस्तान, मध्य एशिया और यूरोप तक व्यापारिक पहुंच का सुनहरा द्वार है। भारत ने शहीद बेहेश्ती टर्मिनल के निर्माण और ऑपरेशन में $85 मिलियन (लगभग ₹7.5 अरब) का निवेश किया है। यह पोर्ट चीन के ग्वादर बंदरगाह के विकल्प के रूप में देखा जा रहा है जो पाकिस्तान में स्थित है और चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारे (CPEC) का हिस्सा है।

यह बंदरगाह भारत को अफगानिस्तान तक सीधे व्यापारिक पहुंच देता है, जिससे पाकिस्तान को बाईपास किया जा सकता है। इससे भारत को न केवल व्यापारिक लाभ होता है, बल्कि रणनीतिक बढ़त भी मिलती है।


चाबहार-जाहेदान रेल परियोजना: व्यापार का नया पथ

भारत और ईरान इस रेल लाइन को प्राथमिकता दे रहे हैं। लगभग 700 किलोमीटर लंबी यह रेल लाइन चाबहार को ईरान के आंतरिक शहरों से जोड़ेगी, जिससे माल की आवाजाही सुगम होगी। लेकिन मौजूदा परिस्थितियों में इस परियोजना पर काम करना जोखिम भरा हो सकता है। अगर संघर्ष बढ़ता है, तो निर्माण कार्य बाधित हो सकता है, श्रमिकों की सुरक्षा पर सवाल उठ सकते हैं और भारत को अपने कर्मचारियों को वहां से निकालना भी पड़ सकता है।


INSTC गलियारा: भारत का नया सिल्क रूट

इंटरनेशनल नॉर्थ-साउथ ट्रांसपोर्ट कॉरिडोर (INSTC) 7,200 किलोमीटर लंबा एक विशाल मल्टीमॉडल गलियारा है जो भारत, ईरान, रूस, मध्य एशिया और यूरोप को जोड़ता है। यह गलियारा भारत को यूरोप तक तेज़ और सस्ता रास्ता उपलब्ध कराता है। हालांकि यह अभी पूरी तरह से चालू नहीं हुआ है, लेकिन इसके कई सेक्शन पर व्यापार शुरू हो चुका है।

परंतु अगर ईरान में हालात बिगड़ते हैं, तो इस गलियारे पर गंभीर प्रभाव पड़ सकता है। इससे भारत की लॉजिस्टिक योजना और ट्रांजिट नीति को झटका लगेगा।


तेल व्यापार: आर्थिक दबाव और महंगाई की आहट

2019 से पहले ईरान भारत की कच्चे तेल की जरूरतों का 12% तक हिस्सा पूरा करता था। लेकिन अमेरिकी प्रतिबंधों के चलते यह व्यापार बंद हो गया। वर्तमान में, वैश्विक कूटनीतिक परिस्थितियां बदली हैं, और भारत फिर से ईरान से तेल खरीद की संभावना तलाश रहा है।

अगर युद्ध बढ़ता है और तेल आपूर्ति बाधित होती है, तो अंतरराष्ट्रीय बाजार में क्रूड ऑयल की कीमतें $100 प्रति बैरल से ऊपर जा सकती हैं। इससे भारत में पेट्रोल, डीजल और रसोई गैस महंगी हो जाएगी। महंगाई बढ़ेगी, ट्रांसपोर्ट महंगा होगा और गरीब व मध्यम वर्ग पर सीधा प्रभाव पड़ेगा।


व्यापार और ट्रांजिट पर असर: लाल सागर और स्वेज नहर संकट में

इजरायल-ईरान संघर्ष का एक बड़ा असर वैश्विक समुद्री मार्गों पर भी देखा जा सकता है। लाल सागर और स्वेज नहर जैसे रूट्स असुरक्षित हो सकते हैं, जिससे शिपिंग कंपनियां वैकल्पिक रूट चुनने पर मजबूर हो सकती हैं। इससे शिपिंग लागत 40-50% तक बढ़ सकती है।

भारत के लिए इसका सीधा असर आयात और निर्यात की लागत में वृद्धि के रूप में सामने आएगा। खासतौर पर उन वस्तुओं पर जिनका व्यापार ईरान के माध्यम से होता है जैसे सूखे मेवे, सीमेंट, नमक, पेट्रोलियम उत्पाद आदि।


रुपया कमजोर, निवेश बाधित: भारत के आर्थिक लक्ष्यों को झटका

जैसे ही संघर्ष बढ़ता है, निवेशक जोखिम लेने से हिचकने लगते हैं। भारत द्वारा किए गए निवेशों पर सवाल खड़े हो सकते हैं। यदि भारत को अपने नागरिकों को निकालना पड़ता है, तो यह संकेत देगा कि क्षेत्र में अस्थिरता अत्यधिक बढ़ चुकी है। इससे निवेशकों का भरोसा हिलेगा और भविष्य में भारत द्वारा विदेशों में इंफ्रास्ट्रक्चर निवेश की योजनाएं प्रभावित हो सकती हैं।

वहीं, भारतीय रुपये पर दबाव बढ़ेगा, जिससे विदेशी मुद्रा बाजार में रुपये की कमजोरी देखने को मिल सकती है।


भारत की कूटनीतिक चुनौती: संतुलन बनाना या निर्णायक रुख?

भारत के सामने सबसे कठिन प्रश्न यही है—क्या वह इजरायल और ईरान के बीच संतुलन बनाए रख सकेगा? दोनों देश भारत के रणनीतिक साझेदार हैं। एक ओर इजरायल से रक्षा उपकरण और तकनीक मिलती है, वहीं दूसरी ओर ईरान भारत के मध्य एशियाई सपनों की कुंजी है। भारत को सावधानीपूर्वक और विवेकपूर्ण ढंग से अपनी विदेश नीति का संचालन करना होगा ताकि न केवल प्रोजेक्ट्स बचे रहें, बल्कि भारत की अंतरराष्ट्रीय छवि भी सशक्त बनी रहे।


भविष्य की राह: क्या चाबहार बचेगा या इतिहास बन जाएगा?

आने वाले हफ्तों और महीनों में यह तय होगा कि भारत के प्रोजेक्ट्स सुरक्षित हैं या नहीं। सरकार की ओर से इस दिशा में कई बैकडोर वार्ताएं शुरू की गई हैं। रक्षा और विदेश मंत्रालय मिलकर हालात की बारीकी से निगरानी कर रहे हैं। अगर भारत समय रहते कदम उठाए, तो चाबहार और INSTC जैसे प्रोजेक्ट्स को बचाया जा सकता है।


<div style=”background-color: #f9f9f9; color: #111; padding: 15px; border-radius: 10px;”> <b>भारत के लिए यह समय है सतर्क रहने का, न केवल अपनी विदेश नीति को संतुलित बनाए रखने का, बल्कि अपने राष्ट्रीय हितों की रक्षा करते हुए वैश्विक मंच पर सशक्त भूमिका निभाने का। चाबहार और INSTC प्रोजेक्ट भारत के भू-रणनीतिक भविष्य की नींव हैं—इनका संरक्षण अब सिर्फ एक प्रोजेक्ट की बात नहीं, बल्कि भारत की वैश्विक रणनीतिक स्थिति की परीक्षा है।</b> </div>

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