Islamic कट्टरता के साए में महिलाएं: सीरिया, पाकिस्तान, सऊदी अरब और अन्य देशों में बदहाल जीवन?
कुछ Islamic देशों में इस्लामी शासन या शरिया कानून के नाम पर महिलाओं का जीवन बदतर बना दिया गया है। दो साल पहले अगस्त 2021 में जब तालिबान ने अफगानिस्तान की सत्ता पर कब्जा किया, तो उन्होंने महिलाओं को घरों में कैद करने के लिए कड़े नियम लागू करने शुरू कर दिए। इन नियमों के तहत महिलाओं की शिक्षा, नौकरी करने और अकेले यात्रा करने पर सख्त प्रतिबंध लगा दिए गए।
इसका उद्देश्य महिलाओं को स्वतंत्रता से वंचित करना था, और ऐसा करने के लिए तालिबान ने धार्मिक पद्धतियों और मौलवियों का सहारा लिया। यह कदम पूरी दुनिया के सामने धर्म की आड़ में लिया गया, जो वास्तव में तालिबान की रूढ़िवादी सोच को उजागर करता है। अफगानिस्तान के अलावा, ईरान और लेबनान जैसे देश भी इसी रास्ते पर चल पड़े हैं, जो एक समय में महिलाओं के अधिकारों और स्वतंत्रता के मामले में यूरोप से भी आगे माने जाते थे।
अफगानिस्तान: अंधकार की ओर लौटता एक देश
अफगानिस्तान का हाल तालिबान के शासन में बेहद दयनीय हो चुका है। तालिबान के सत्ता में आने के बाद महिलाओं पर प्रतिबंध बढ़ते गए। शिक्षा, स्वास्थ्य और अन्य क्षेत्रों में महिलाओं की भूमिका को लगभग समाप्त कर दिया गया है। लड़कियों को स्कूल जाने की अनुमति नहीं है और महिलाओं को सार्वजनिक जीवन से लगभग पूरी तरह से हटा दिया गया है। इसका सीधा असर अफगानिस्तान की अर्थव्यवस्था और सामाजिक ढांचे पर भी पड़ा है। पहले जहां महिलाएं समाज की मुख्यधारा में भाग ले रही थीं, वहीं अब वे अपने घरों में सीमित हैं।
यह केवल तालिबान का ही नहीं, बल्कि कई मुस्लिम-प्रभावित देशों का इतिहास है। जब कट्टरपंथी सोच और शरिया कानूनों का बोलबाला होता है, तो महिलाओं की स्वतंत्रता और अधिकारों को सबसे पहले कुचल दिया जाता है।
ईरान: आजादी के बाद फिर से बंधनों में
ईरान एक समय में प्रगतिशील विचारों और आधुनिकता का प्रतीक था, खासकर महिलाओं के संदर्भ में। 1979 की इस्लामी क्रांति से पहले, ईरान के शहर और गांव समान रूप से प्रगतिशीलता की मिसाल थे। महिलाएं उच्च शिक्षा प्राप्त कर रही थीं, सरकारी पदों पर कार्यरत थीं और अपने जीवन के हर पहलू में स्वतंत्रता का आनंद ले रही थीं।
लेकिन इस्लामी क्रांति के बाद महिलाओं पर कड़े नियम लागू किए गए। हिजाब पहनना अनिवार्य कर दिया गया, और सार्वजनिक जीवन में महिलाओं की भागीदारी को सीमित कर दिया गया। इससे पहले, ईरान की महिलाएं न केवल समाज में बराबरी की हिस्सेदारी रखती थीं, बल्कि देश की अर्थव्यवस्था में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही थीं। लेकिन अब हालात उलट गए हैं।
ईरान की महिलाएं हाल के वर्षों में अपने अधिकारों के लिए संघर्ष कर रही हैं, लेकिन वहां का शासन उन्हें हर संभव तरीके से दबाने का प्रयास कर रहा है।
लेबनान: आजादी के प्रतीक से इस्लामी कट्टरता तक का सफर
लेबनान एक ऐसा देश था जिसे “मध्य पूर्व का पेरिस” कहा जाता था। यहां की महिलाएं स्वतंत्र थीं, वे फैशन, कला, संगीत और अन्य क्षेत्रों में अग्रणी थीं। लेकिन 1970 के दशक में हुए गृहयुद्ध और उसके बाद के राजनीतिक अस्थिरता ने लेबनान को इस्लामी कट्टरता की ओर धकेल दिया।
आज, लेबनान की महिलाओं को भी उसी चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है, जो अफगानिस्तान और ईरान की महिलाएं झेल रही हैं। एक समय जो देश स्वतंत्रता और उदारवाद का प्रतीक था, आज वह कट्टरपंथी धार्मिक संगठनों और राजनीति का शिकार हो गया है।
सीरिया: युद्ध और इस्लामी कट्टरता के साए में महिलाएं
सीरिया पिछले कई वर्षों से गृहयुद्ध और इस्लामी आतंकवाद का शिकार है। इस्लामिक स्टेट (ISIS) जैसे संगठनों ने सीरिया के कुछ हिस्सों पर कब्जा कर महिलाओं के जीवन को और भी कठिन बना दिया है। ISIS के शासन के दौरान महिलाओं को शिक्षा, रोजगार और सार्वजनिक जीवन से हटा दिया गया। उनके पहनावे और आचरण पर सख्त पाबंदियां लगाई गईं, और किसी भी प्रकार की अवज्ञा पर कड़ी सजा दी गई।
हालांकि, सीरिया में पहले महिलाएं सामाजिक और आर्थिक जीवन में सक्रिय थीं। शिक्षा, स्वास्थ्य, और राजनीति में उनकी भागीदारी थी, लेकिन अब गृहयुद्ध और कट्टरपंथी संगठनों के कारण यह स्थिति बुरी तरह से बिगड़ चुकी है। युद्ध ने महिलाओं की सुरक्षा, जीवन स्तर और अधिकारों को सीमित कर दिया है, जिससे उनका जीवन दुश्वार हो गया है।
पाकिस्तान: महिलाओं पर प्रतिबंध और सामाजिक चुनौतियां
पाकिस्तान में भी महिलाओं के अधिकारों और स्वतंत्रता पर गंभीर प्रतिबंध देखे जा सकते हैं। यहां का सामाजिक ढांचा पुरुष-प्रधान है, और महिलाओं को अक्सर शिक्षा, रोजगार, और व्यक्तिगत स्वतंत्रता के मामले में पिछड़ा हुआ माना जाता है। पाकिस्तान के कई इलाकों में तालिबान और अन्य कट्टरपंथी समूहों का दबदबा है, जो महिलाओं की स्वतंत्रता को कुचलने का प्रयास करते हैं।
स्वात घाटी और खैबर पख्तूनख्वा जैसे क्षेत्रों में तालिबान ने लड़कियों के स्कूलों को निशाना बनाया, जिससे लड़कियों की शिक्षा पर भारी असर पड़ा। मलाला यूसुफजई जैसे महिलाओं की आवाज उठाने वाली लड़कियों पर हमला भी इसी मानसिकता का हिस्सा है। हालांकि पाकिस्तान में कुछ सुधार हो रहे हैं, लेकिन महिलाओं की स्थिति अब भी चुनौतीपूर्ण बनी हुई है।
सऊदी अरब: हालिया सुधारों के बावजूद चुनौतियां
सऊदी अरब एक ऐसा देश है जो महिलाओं पर सबसे कड़े इस्लामी कानूनों के लिए जाना जाता है। हाल के वर्षों में कुछ सुधार किए गए हैं, जैसे कि महिलाओं को ड्राइविंग की अनुमति देना, लेकिन इसके बावजूद सऊदी महिलाओं को अब भी पुरुष अभिभावक प्रणाली के तहत जीवन जीना पड़ता है। बिना पुरुष संरक्षक की अनुमति के महिलाएं यात्रा नहीं कर सकतीं, नौकरी नहीं कर सकतीं और यहां तक कि शादी भी नहीं कर सकतीं।
सऊदी अरब में महिलाओं की सार्वजनिक जीवन में भागीदारी अब भी सीमित है, और उन्हें व्यक्तिगत स्वतंत्रता हासिल करने के लिए कई बाधाओं का सामना करना पड़ता है। हाल के सुधार स्वागत योग्य हैं, लेकिन महिलाओं की स्थिति में स्थायी सुधार के लिए अभी लंबा सफर तय करना बाकी है।
यमन: युद्ध और गरीबी में घिरी महिलाएं
यमन, जो गृहयुद्ध और गंभीर आर्थिक संकट से जूझ रहा है, महिलाओं के लिए एक खतरनाक स्थान बन चुका है। यहां की महिलाओं को न केवल युद्ध की विभीषिका झेलनी पड़ रही है, बल्कि इस्लामी कानूनों और सामाजिक रूढ़ियों के तहत उनका जीवन और भी कठिन बना दिया गया है। यमन में बाल विवाह, शिक्षा की कमी, और स्वास्थ्य सेवाओं की भारी कमी जैसी समस्याएं महिलाओं के जीवन को और अधिक चुनौतीपूर्ण बनाती हैं।
युद्धग्रस्त यमन में महिलाओं की सुरक्षा भी एक गंभीर चिंता का विषय है, जहां महिलाओं को यौन हिंसा, भुखमरी और स्वास्थ्य सेवाओं की कमी जैसी चुनौतियों का सामना करना पड़ता है।
मुस्लिम देशों में महिलाओं पर प्रतिबंध और उनके जीवन का बदलता स्वरूप
इस्लामी शासन और शरिया कानून के प्रभाव में कई मुस्लिम देशों में महिलाओं के अधिकारों और उनकी स्वतंत्रता पर गंभीर प्रतिबंध लगाए गए हैं। सऊदी अरब जैसे देश, जहां महिलाओं के अकेले बाहर जाने, ड्राइविंग करने और नौकरी करने पर सख्त नियम हैं, एक उदाहरण हैं कि कैसे महिलाओं की स्वतंत्रता को छीन लिया गया है। हालांकि, हाल ही में कुछ सुधारों की घोषणा की गई है, लेकिन यह बदलाव अभी भी अधूरे हैं।
शरिया कानून और महिलाओं पर प्रभाव
शरिया कानून के तहत महिलाओं पर कई प्रकार के प्रतिबंध लगाए जाते हैं। महिलाओं को पुरुषों के समान अधिकार प्राप्त नहीं होते और उनके जीवन के हर पहलू को नियंत्रित किया जाता है। शरिया कानूनों के तहत महिलाओं को संपत्ति के अधिकार, काम करने के अधिकार, शिक्षा प्राप्त करने के अधिकार आदि में पुरुषों की तुलना में कम स्वतंत्रता मिलती है।
इस्लामिक कट्टरता के तहत महिलाओं को एक तरह से ‘दूसरी श्रेणी के नागरिक’ के रूप में देखा जाता है, और यह विचारधारा न केवल उनके जीवन को कठिन बनाती है, बल्कि उनकी सामाजिक और आर्थिक स्थिति को भी कमजोर करती है।
इतिहास में मुस्लिम समाज और महिलाएं: इस्लामिक आक्रमण से पहले का युग
इस्लामी आक्रमण से पहले मुस्लिम-प्रभावित क्षेत्रों में महिलाओं की स्थिति अपेक्षाकृत बेहतर थी। अरब दुनिया में, इस्लाम के आगमन से पहले, महिलाएं व्यापार, राजनीति और सामाजिक जीवन में प्रमुख भूमिका निभाती थीं। उदाहरण के लिए, पैगंबर मुहम्मद की पत्नी, खदीजा, एक सफल व्यापारी थीं और उन्होंने सामाजिक जीवन में महत्वपूर्ण योगदान दिया।
लेकिन इस्लामिक आक्रमण के बाद, जब शरिया कानूनों को लागू किया गया, तो महिलाओं की स्थिति धीरे-धीरे बदतर होती गई। महिलाएं अब समाज में केवल घर तक सीमित हो गईं और उनके अधिकारों को सीमित कर दिया गया।
अर्थव्यवस्था और जीवन स्तर पर प्रभाव
इस्लामी कट्टरता और शरिया कानूनों के प्रभाव से न केवल महिलाओं की स्थिति कमजोर हुई है, बल्कि इसका असर इन देशों की अर्थव्यवस्था पर भी पड़ा है। जब आधी आबादी को शिक्षा, रोजगार और स्वतंत्रता से वंचित कर दिया जाता है, तो इसका सीधा प्रभाव देश की उत्पादकता और जीवन स्तर पर पड़ता है। अफगानिस्तान, ईरान, और सऊदी अरब जैसे देशों में इस्लामी कानूनों के चलते आर्थिक विकास ठहर गया है।
इन देशों की महिलाओं की शक्ति और क्षमता का सही उपयोग नहीं हो पा रहा है, जिसके चलते ये देश वैश्विक अर्थव्यवस्था में पीछे रह जाते हैं।
इस्लामी आतंकवाद और इसका प्रभाव
Islamic आतंकवाद ने न केवल राजनीतिक और सामाजिक स्थिरता को प्रभावित किया है, बल्कि यह आतंकवाद महिलाओं के जीवन पर भी प्रतिकूल प्रभाव डाल रहा है। अफगानिस्तान, पाकिस्तान, और अन्य मुस्लिम देशों में इस्लामी आतंकवादियों ने महिलाओं को अपने लक्ष्यों के रूप में चुना है। वे महिलाओं को आतंकित करते हैं, उन्हें शारीरिक और मानसिक यातनाएं देते हैं, और उनकी स्वतंत्रता को खत्म करने की कोशिश करते हैं।
मुस्लिम देशों की संस्कृति और सुंदरता
हालांकि इन देशों में महिलाओं पर कट्टरपंथी विचारधाराओं का प्रभाव है, लेकिन इन देशों की सांस्कृतिक धरोहर और प्राकृतिक सुंदरता अद्वितीय हैं। अफगानिस्तान, ईरान, और लेबनान जैसे देश ऐतिहासिक धरोहरों, खूबसूरत स्थलों और सांस्कृतिक विविधताओं के लिए प्रसिद्ध हैं।
अफगानिस्तान में बामियान बुद्ध की मूर्तियां और हेरात का किला, ईरान में पर्सेपोलिस और इस्फहान के शानदार मस्जिदें, और लेबनान में बैलबेक के प्राचीन खंडहर आज भी पर्यटकों को आकर्षित करते हैं। इन देशों की सुंदरता केवल भौगोलिक दृष्टि से ही नहीं, बल्कि सांस्कृतिक विविधता और समृद्ध इतिहास में भी निहित है।
महिलाओं के अधिकारों और स्वतंत्रता पर लगाए गए इस्लामी कानून और शरिया के कठोर नियम, न केवल महिलाओं के जीवन को बाधित कर रहे हैं, बल्कि इन देशों की आर्थिक और सामाजिक प्रगति को भी प्रभावित कर रहे हैं। अफगानिस्तान, ईरान और लेबनान जैसे देश, जो एक समय में प्रगतिशील और आधुनिकता का प्रतीक थे, आज धार्मिक कट्टरता और रूढ़िवादिता के चलते पिछड़ रहे हैं।
ये सभी देश, जिनका इस्लामी कट्टरता और राजनीतिक अस्थिरता से गहरा संबंध है, महिलाओं के जीवन को गंभीर रूप से प्रभावित कर रहे हैं। जब तक इन देशों में धार्मिक और राजनीतिक स्थिरता नहीं आती और महिलाओं को समान अधिकार नहीं मिलते, तब तक वहां का सामाजिक और आर्थिक विकास संभव नहीं है।

