Prayagraj Kumbh 2025 में शाही स्नान बनेगा ‘राजसी स्नान’, अखाड़ा परिषद का ऐतिहासिक फैसला
Prayagraj 2025 में होने वाले महाकुंभ (Prayagraj Kumbh 2025) को लेकर प्रयागराज में बड़े स्तर पर तैयारियाँ की जा रही हैं, और संगम के पावन तट पर दुनिया के सबसे बड़े अस्थाई नगर को बसाने की तैयारियों ने रफ्तार पकड़ ली है। इस महाकुंभ में आने वाले करोड़ों श्रद्धालु भारतीय संस्कृति की गहरी छाप देखने वाले हैं, जिसमें धार्मिक रीति-रिवाजों और शब्दों में अहम बदलाव किए जा रहे हैं।
महाकुंभ के दौरान होने वाले प्रमुख स्नान, विशेषकर ‘शाही स्नान’, को बदलकर ‘राजसी स्नान’ का नाम दिया जा रहा है। यह बदलाव केवल नाम के स्तर पर नहीं है, बल्कि भारतीय संस्कृति और मुगलकालीन प्रभाव से हटाकर हिंदू धर्म की गहरी जड़ों को पुनः जीवित करने का प्रयास है। अखाड़ा परिषद के कई बड़े संतों ने मिलकर इस प्रस्ताव को पारित किया है। निरंजनी अखाड़ा के अध्यक्ष, महामंडलेश्वर यमुना पुरी जी महाराज के अनुसार, यह बदलाव राष्ट्रीय और सांस्कृतिक गरिमा को बनाए रखने का प्रयास है, जिससे स्नान की भावना और अधिक पवित्र और शुद्ध बन सके।
क्यों किया गया ‘शाही स्नान’ का नाम परिवर्तन?
महामंडलेश्वर यमुना पुरी जी महाराज ने इस विषय पर अपने विचार साझा करते हुए बताया कि ‘शाही’ शब्द में कहीं न कहीं मुगलकालीन प्रभाव निहित है, जिससे भारतीय सभ्यता और संस्कृति का वास्तविक स्वरूप धूमिल होता है। उन्होंने कहा, “महाकुंभ जैसे आध्यात्मिक और पवित्र आयोजन में हमारा उद्देश्य भारतीय संस्कृति की असल झलक को पेश करना है, न कि विदेशी प्रभावों को। इसलिए, ‘शाही स्नान’ की जगह ‘राजसी स्नान’ शब्द का उपयोग किया जाएगा, जो भारतीयता का प्रतीक है।”
यह बदलाव अकेले प्रयागराज में ही नहीं बल्कि पूरे देश में चर्चा का विषय बन चुका है। पिछले साल मध्य प्रदेश में भी इस मुद्दे पर मुख्यमंत्री मोहन यादव ने ‘शाही स्नान’ शब्द को बदलने का समर्थन किया था। मध्य प्रदेश में इस बदलाव के बाद से ही यह विचार प्रयागराज के महाकुंभ में भी लागू किया जाने लगा।
अखाड़ा परिषद की मुहर – ‘पेशवाई’ बनेगी ‘छावनी प्रवेश’
महाकुंभ मेले में होने वाली ‘पेशवाई’—एक विशेष जुलूस जिसमें संतों और महात्माओं का संगम की ओर आगमन होता है—का भी नाम बदलकर ‘छावनी प्रवेश’ रखा गया है। यह फैसला भी अखाड़ा परिषद के सभी 13 अखाड़ों की सहमति से पारित किया गया है। अखाड़ा परिषद के एक उच्च पदाधिकारी ने बताया, “छावनी प्रवेश नाम भारतीय संस्कृति और सैनिक परंपरा को उजागर करता है, जो हमारे संतों और महात्माओं की अनुशासनप्रियता को और मजबूती से सामने लाता है।”
अखाड़ों द्वारा महाकुंभ के आयोजन के निमंत्रण पत्रों में अब स्पष्ट रूप से ‘राजसी स्नान’ और ‘छावनी प्रवेश’ का उल्लेख किया गया है, जो एक नई परंपरा की ओर इशारा करता है। अखाड़ा परिषद के अनुसार, यह नाम परिवर्तन महाकुंभ के वैश्विक महत्व को ध्यान में रखते हुए भारतीय संस्कृति के प्रति सम्मान व्यक्त करने के लिए है।
महाकुंभ 2025: भारतीय संस्कृति की अद्वितीय छवि
महाकुंभ 2025 का यह आयोजन न केवल धार्मिक दृष्टिकोण से बल्कि सांस्कृतिक दृष्टि से भी भारत के लिए एक नया अध्याय होगा। संगम पर बनने वाले इस अस्थाई नगर को भारतीयता की पहचान में ढालने के लिए हर संभव प्रयास किए जा रहे हैं। इस महाकुंभ के दौरान संगम में डुबकी लगाना न केवल धार्मिक अनुष्ठान होगा, बल्कि भारतीय संस्कृति को भी संजीवनी देने का कार्य करेगा।
यह भी उल्लेखनीय है कि महाकुंभ में स्नान करने की परंपरा को अखाड़ा परिषद ने न केवल एक धार्मिक प्रक्रिया के रूप में देखा है, बल्कि एक ऐसी अनुष्ठान प्रक्रिया के रूप में स्थापित किया है जो मानवीय जीवन के विभिन्न पहलुओं को संजीवनी देती है। राजसी स्नान और छावनी प्रवेश के रूप में इन शब्दों का परिवर्तन इस बात का संकेत है कि भारतीय परंपराओं में विदेशी प्रभाव को घटाया जा रहा है।
महाकुंभ और ‘राजसी स्नान’ की वैश्विक महत्ता
महाकुंभ 2025 के ‘राजसी स्नान’ में हिस्सा लेने के लिए न केवल भारत के विभिन्न कोनों से बल्कि विदेशों से भी करोड़ों श्रद्धालु और पर्यटक प्रयागराज की ओर प्रस्थान करेंगे। यह विश्व का सबसे बड़ा आध्यात्मिक संगम होगा, जिसमें साधु-संतों से लेकर आमजन तक सभी राजसी स्नान और छावनी प्रवेश की इस नई परंपरा का हिस्सा बनेंगे।
महाकुंभ के आयोजक और उत्तर प्रदेश सरकार इस आयोजन को भव्य बनाने के लिए हर संभव प्रयास कर रही है। आधुनिक सुविधाओं के साथ-साथ परंपरागत छवि को बनाए रखने पर विशेष ध्यान दिया जा रहा है, जिससे देश-विदेश से आए पर्यटक भारतीय संस्कृति की भव्यता का अनुभव कर सकें।
राजसी स्नान और छावनी प्रवेश की प्रक्रिया
राजसी स्नान के दौरान अखाड़ों के साधु-संतों का अनुष्ठान संगम के पवित्र जल में शुरू होगा। इस स्नान को लेकर अखाड़ों के बीच में विभिन्न रस्मों और धार्मिक अनुष्ठानों का आयोजन किया जाएगा, जो आध्यात्मिकता और आस्था की एक नई गाथा लिखेगा। छावनी प्रवेश में हर अखाड़े के संतों का स्वागत ढोल-नगाड़ों के साथ किया जाएगा, जो भारतीयता का प्रतीक है और इस आयोजन की भव्यता को कई गुणा बढ़ा देगा।
अखाड़ा परिषद का यह निर्णय क्यों महत्वपूर्ण है?
अखाड़ा परिषद का यह निर्णय न केवल भारतीयता को मजबूत करता है, बल्कि यह सांस्कृतिक और धार्मिक स्वाभिमान का प्रतीक भी है। महाकुंभ जैसे धार्मिक आयोजन में भारतीय परंपराओं और संस्कृति को बनाए रखने के लिए यह आवश्यक था कि विदेशी प्रभावों को कम किया जाए। इस निर्णय के तहत राजसी स्नान और छावनी प्रवेश जैसे शब्दों को अपनाकर अखाड़ा परिषद ने अपने संकल्प को और सुदृढ़ किया है।
इस निर्णय के बाद प्रयागराज में होने वाला महाकुंभ न केवल धर्म के दृष्टिकोण से बल्कि संस्कृति, इतिहास और भारतीय गौरव की दृष्टि से भी एक नई पहचान बनाएगा।

