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प्रेत योनि से मुक्ति दिलाती है कामदा एकादशी

 

कामदा एकादशी चैत्र शुक्लपक्ष की एकादशी को मनाई जाती है। शास्त्रों के अनुसार कामदा एकादशी का व्रत रखने से सभी पापों से छुटकारा मिल जाता है। इसके अलावा यह भी माना जाता है कि कामदा एकादशी व्रत के प्रभाव से ब्रह्म हत्या जैसे पापों से भी मुक्ति मिल जाती है।

दो चरणों में होता है यह व्रत
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शास्त्रों के मुताबिक एकादशी व्रत दो चरणों में होता है। इसके पहले भाग में व्रत रखा जाता है और फिर व्रत के अगले दिन पारण कर व्रत खोला जाता है। कई जगहों पर व्रती एकादशी के व्रत के बाद पारण करने से पहले ब्राह्मण भोजन कराते हैं। एकादशी व्रत को समाप्त करने की विधि को पारण कहते हैं। जिस दिन एकादशी होता है उसके अगले दिन सूर्योदय के बाद पारण किया जाता है।

माना जाता है कि एकादशी व्रत का पारण द्वादशी तिथि खत्म होने से पहले ही करना आवश्यक है। वहीं अगर द्वादशी तिथि सूर्योदय से पहले समाप्त हो गई हो तो ऐसे में एकादशी व्रत का पारण सूर्योदय के बाद ही करना चाहिए।

क्योंकि द्वादशी तिथि के अंदर पारण नहीं करना पाप के बराबर माना गया है। इसके अलावा कामदा एकादशी व्रत का पारण हरि वास के दौरान नहीं करना चाहिए।

हरि वास द्वादशी तिथि के पहले प्रहर का एक चौथाई अवधि होती है। इसलिए जो भक्त एकादशी व्रत रखते हैं उन्हें हरि वास समाप्त होने का इंतजार करना चाहिए।

कामदा एकादशी की कथा
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प्राचीन काल में भोगीपुर नामक नगर था। वहां पुण्डरीक नामक राजा राज्य करते थे। इस नगर में अनेक अप्सरा, किन्नर तथा गंधर्व वास करते थे। उनमें से ललिता और ललित में अत्यंत स्नेह था। एक दिन गंधर्व ललित दरबार में गान कर रहा था कि अचानक उसे पत्नी ललिता की याद आ गई।

इससे उसका स्वर, लय एवं ताल बिगड़ने लगे। इस त्रुटि को कर्कट नामक नाग ने जान लिया और यह बात राजा को बता दी। राजा को बड़ा क्रोध आया और ललित को राक्षस होने का श्राप दे दिया। ललिता को जब यह पता चला तो उसे अत्यंत खेद हुआ।

वह श्रृंगी ऋषि के आश्रम में जाकर प्रार्थना करने लगी। श्रृंगी ऋषि बोले कि हे गंधर्व कन्या! अब चैत्र शुक्ल एकादशी आने वाली है, जिसका नाम कामदा एकादशी है।

कामदा एकादशी का व्रत कर उसके पुण्य का फल अपने पति को देने से वह राक्षस योनि से मुक्त हो जाएगा। ललिता ने मुनि की आज्ञा का पालन किया और एकादशी व्रत का फल देते ही उसका पति राक्षस योनि से मुक्त होकर अपने पुराने स्वरूप को प्राप्त हुआ।

 

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