देश के मुसलमान स्वीकार नहीं करेंगे समान नागरिक संहिता-All India Muslim Personal Law Board
समान नागरिक संहिता लागू करने को लेकर शुरू हुई कवायद के बीच ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड (All India Muslim Personal Law Board) ने कहा है कि यह ठीक कदम नहीं होगा। इसे देश के मुसलमान स्वीकार नहीं करेंगे। पर्सनल लॉ बोर्ड के सचिव डॉ. मोहम्मद वकारुद्दीन लतीफी ने केंद्र सरकार से आग्रह किया कि वह ऐसा कोई कदम उठाने से परहेज करे।
लतीफी/ ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड (All India Muslim Personal Law Board)ने कहा कि भारत का संविधान हर नागरिक को अपने धर्म के मुताबिक जीवन जीने की अनुमति देता है।
उनका कहना है कि वो संविधान में हस्तक्षेप नहीं करते। समान नागरिक संहिता का मुद्दा असल मुद्दों से ध्यान भटकाने और नफरत के एजेंडे को बढ़ावा देने के लिए लाया जा रहा है। उनका कहना था कि देश के ज्वलंत मुद्दों जैसे महंगाई और बेरोजगारी का समाधान करने की बजाए केंद्र ने समान नागरिक संहिता का मुद्दा जुमले की तरह से उछाल दिया है।
ऑल इंडिया #मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने समान नागरिक संहिता को असंवैधानिक और अल्पसंख्यक विरोधी बताया है। बोर्ड ने लिखा कि ये उत्तराखंड, उ.प्र. और केंद्र सरकार द्वारा महंगाई, अर्थव्यवस्था और बेरोजगारी से ध्यान हटाने का प्रयास है। बोर्ड ने सरकार से इसे लागू न करने की भी अपील की है। pic.twitter.com/qwhtBpI4HJ
— News & Features Network (@mzn_news) April 26, 2022
उत्तराखंड और हिमाचल प्रदेश में समान नागरिक संहिता लागू करने को लेकर प्रक्रिया शुरू कर दी है। दोनों की सूबों के सीएम का कहना है कि ये बेहद जरूरी चीज है। इससे देश में एक जैसा माहौल हर समुदाय को मिलेगा।
मप्र समेत बीजेपी शासित और सूबे भी इसकी तारीफ करते नहीं थक रहे। केंद्र सरकार भी इसे लागू करने के लिए तैयार दिख रही है। हालांकि अभी तक ऐसा कोई ऐलान नहीं हुआ है लेकिन जिस तरह से बीजेपी नेताओं की तरफ से बयान दिए जा रहे हैं, उसे देखकर लगता है कि सरकार माहौल बनाने में लगी है।
समान नागरिक संहिता का अर्थ एक पंथनिरपेक्ष (सेक्युलर) कानून होता है जो सभी पंथ के लोगों के लिये समान रूप से लागू होता है। यह किसी भी पंथ जाति के सभी निजी कानूनों से ऊपर होता है। विश्व के कई देशों में ऐसे कानून लागू हैं। लेकिन भारत में समान नागरिक संहिता लागू नहीं है। यहां अधिकतर निजी कानून धर्म के आधार पर तय किए गए हैं।
हिंदू, सिख, जैन और बौद्ध के लिए एक व्यक्तिगत कानून है। जबकि मुसलमानों और इसाइयों के लिए अपने कानून हैं। मुसलमानों का कानून शरीयत पर आधारित है-ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड (All India Muslim Personal Law Board)

