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Delhi Airport Accident पर अब भी सस्पेंस! छह महीने बाद भी नहीं मिला जवाब, सर्बिया की घटना से उठे सवाल

 नई दिल्ली/बेलग्रेड – दिल्ली के इंदिरा गांधी अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे (IGI Airport) पर बीते साल जुलाई में हुए दर्दनाक हादसे/ Delhi Airport Accident को अब छह महीने बीत चुके हैं, लेकिन अभी तक इस मामले में किसी भी जिम्मेदार व्यक्ति या एजेंसी पर कार्रवाई नहीं हुई है। यह वही हादसा था, जिसमें एक कैब ड्राइवर की जान चली गई थी और छह अन्य लोग गंभीर रूप से घायल हुए थे।

क्या भूल गई सरकार? जांच अब भी अधूरी

29 जुलाई 2024 की वह भयावह रात जब दिल्ली एयरपोर्ट पर शेड भरभराकर गिर पड़ा था, वहां मौजूद लोगों के लिए किसी बुरे सपने से कम नहीं थी। एयरपोर्ट जैसे हाई-प्रोफाइल और सुरक्षित स्थान पर इस तरह की लापरवाही ने कई सवाल खड़े किए थे। तत्कालीन नागरिक उड्डयन मंत्री राममोहन नायडू ने घटनास्थल का दौरा किया था और दोषियों पर सख्त कार्रवाई की बात कही थी, लेकिन छह महीने बाद भी कोई ठोस नतीजा सामने नहीं आया।

घटना के बाद एयरपोर्ट अथॉरिटी ने शेड गिरने की वजहों की जांच के लिए कमेटी गठित करने की बात कही थी, लेकिन रिपोर्ट अभी तक सार्वजनिक नहीं हुई। आखिर इसकी जिम्मेदारी किसकी थी? क्या यह घटिया निर्माण सामग्री का मामला था, या फिर देखरेख में हुई लापरवाही?

सर्बिया में भी गिरी थी छत, लेकिन नतीजे अलग!

दिल्ली एयरपोर्ट हादसे की तुलना अगर सर्बिया की राजधानी बेलग्रेड में हुई एक अन्य घटना से की जाए, तो फर्क साफ नजर आता है। 1 नवंबर 2024 को बेलग्रेड के एक रेलवे स्टेशन पर नवनिर्मित शेड गिरने से 15 लोगों की मौत हो गई थी। इस दर्दनाक घटना ने पूरे देश को हिलाकर रख दिया।

यहां के लोग दिल्ली की तरह चुप नहीं बैठे! बेलग्रेड की सड़कों पर हजारों की संख्या में लोग उतर आए और सरकार के खिलाफ जबरदस्त विरोध प्रदर्शन शुरू हो गए। वे सरकार से जवाब मांग रहे थे कि आखिर हादसे के लिए जिम्मेदार कौन है? क्या इसमें भी भ्रष्टाचार की बू आ रही थी?

भ्रष्टाचार का प्रतीक बना सर्बिया का रेलवे स्टेशन

दिल्ली एयरपोर्ट के मामले में सरकार की निष्क्रियता को देखकर अब सवाल उठ रहे हैं कि क्या भारत में भी जनता को सर्बिया की तरह विरोध प्रदर्शन करना होगा, तभी कोई कार्रवाई होगी? बेलग्रेड हादसे के बाद सर्बिया के राष्ट्रपति अलेक्जेंडर वुसिस और उनकी सरकार चौतरफा घिर गई। इस रेलवे स्टेशन के निर्माण में सरकारी घोटाले की बू आने लगी और जनता ने इसे सरकार की नाकामी का प्रतीक बना दिया।

दिल्ली एयरपोर्ट हादसे और बेलग्रेड हादसे में एक बड़ा अंतर यह था – जनता का गुस्सा और सरकार की प्रतिक्रिया।

सर्बिया में राष्ट्रपति की कुर्सी हिली, लेकिन भारत में…?

सर्बिया में हादसे के बाद जनता सड़कों पर उतरी, विरोध इतना उग्र हुआ कि राष्ट्रपति वुसिस के इस्तीफे की मांग तेज हो गई। यहां तक कि छात्रों, सामाजिक कार्यकर्ताओं और आम नागरिकों ने एक सुर में सरकार से जवाब मांगा। दूसरी ओर, भारत में छह महीने बाद भी दिल्ली एयरपोर्ट हादसे को लेकर कोई ठोस जवाब नहीं मिला है।

सर्बिया में हालात इतने बिगड़ गए कि सरकार को रेलवे स्टेशन निर्माण से जुड़े सभी दस्तावेज सार्वजनिक करने पड़े। लेकिन दिल्ली एयरपोर्ट हादसे के मामले में अब तक कोई पारदर्शिता नहीं दिखाई गई।

लोकतंत्र पर सवाल – क्या सरकारें सिर्फ हादसों के बाद जागती हैं?

सर्बिया में राष्ट्रपति वुसिस की सरकार पिछले कई सालों से मीडिया की आजादी दबाने, चुनाव में धांधली करने और लोकतांत्रिक मूल्यों को कमजोर करने के आरोपों से घिरी थी। “फ्रीडम हाउस” की 2019 की रिपोर्ट के मुताबिक, सर्बिया अब ‘पार्शियली फ्री’ (आंशिक रूप से स्वतंत्र) देश बन चुका है। मीडिया पर हमलों और सरकार की तानाशाही नीति की वजह से वहां लोकतंत्र कमजोर होता जा रहा था।

दिल्ली एयरपोर्ट हादसे से सबक लेने की जरूरत

दिल्ली एयरपोर्ट हादसा हमें यह सोचने पर मजबूर करता है कि क्या भारत में भी निर्माण कार्यों में भ्रष्टाचार इस हद तक बढ़ चुका है कि किसी की जान जाना भी कोई बड़ी बात नहीं रह गई? क्या यहां की जनता को भी सर्बिया की जनता की तरह विरोध प्रदर्शन करने की जरूरत है, ताकि सरकारें जिम्मेदार लोगों पर कार्रवाई करने के लिए मजबूर हो जाएं?

अब आगे क्या? सरकार को जवाब देना होगा!

दिल्ली एयरपोर्ट हादसे को छह महीने हो चुके हैं, लेकिन सवाल जस के तस खड़े हैं:

  • इस हादसे के लिए जिम्मेदार कौन है?
  • क्या निर्माण कार्य में भ्रष्टाचार हुआ था?
  • क्या सरकार ने कोई जांच रिपोर्ट जारी की?
  • क्या भविष्य में इस तरह की घटनाओं को रोकने के लिए कोई ठोस कदम उठाए गए?

निष्कर्ष नहीं, बल्कि जनता की मांग – जवाब दो!

दिल्ली एयरपोर्ट और सर्बिया की घटनाओं में एक बड़ा अंतर था – वहां सरकार जवाबदेह बनी, और यहां अभी तक खामोशी छाई हुई है। सर्बिया में राष्ट्रपति वुसिस की कुर्सी हिल गई, लेकिन भारत में इस मामले में अभी तक कोई हलचल नहीं दिख रही।

जनता के पास अब सिर्फ एक ही रास्ता बचता है – सवाल पूछना, जवाब मांगना और यह सुनिश्चित करना कि भविष्य में इस तरह की घटनाएं दोबारा न हों।

सरकार चुप है, लेकिन जनता कब तक चुप रहेगी?

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