Bangladesh में भीड़ हिंसा की भयावह कड़ी: राजबाड़ी में हिंदू युवक की पीट-पीटकर हत्या, ढाका के बाद फिर उठा अल्पसंख्यक सुरक्षा पर सवाल
Bangladesh में एक बार फिर मानवाधिकारों और अल्पसंख्यक सुरक्षा को लेकर गंभीर चिंता खड़ी कर दी है। बुधवार रात करीब 11 बजे राजबाड़ी जिला के होसेनडांगा गांव में भीड़ ने एक हिंदू युवक को पीट-पीटकर मार डाला। पुलिस के मुताबिक मृतक की पहचान 29 वर्षीय अमृत मंडल उर्फ सम्राट के रूप में हुई है, जो उसी गांव का निवासी था।
घटना के बाद इलाके में तनाव का माहौल है और सुरक्षा एजेंसियां स्थिति पर नजर बनाए हुए हैं। यह वारदात ऐसे समय सामने आई है, जब कुछ दिन पहले ही ढाका के पास एक अन्य हिंदू युवक की नृशंस हत्या ने देश-विदेश में तीखी प्रतिक्रियाएं पैदा की थीं।
जबर्दस्ती वसूली का आरोप, भीड़ ने कानून अपने हाथ में लिया
स्थानीय पुलिस का कहना है कि अमृत मंडल पर जबरन वसूली के आरोप लगाए गए थे। आरोप है कि वह एक गिरोह के साथ मिलकर ग्रामीणों से पैसे वसूलता था। पुलिस रिकॉर्ड के अनुसार, अमृत के खिलाफ पांगशा पुलिस स्टेशन में दो मामले दर्ज थे, जिनमें एक गंभीर आपराधिक प्रकरण भी शामिल बताया गया है।
बताया गया कि 24 दिसंबर की रात अमृत और उसके कुछ साथी गांव के एक निवासी शाहिदुल इस्लाम के घर कथित तौर पर वसूली की रकम लेने पहुंचे थे। घरवालों ने शोर मचाया, जिसके बाद आसपास के लोग इकट्ठा हो गए। हालात बिगड़े और भीड़ ने अमृत की पिटाई शुरू कर दी। उसके साथी मौके से भागने में सफल रहे, जबकि एक अन्य व्यक्ति सलीम को हथियारों के साथ पकड़ लिया गया। अमृत की मौके पर ही मौत हो गई।
पुलिस कार्रवाई और पोस्टमॉर्टम की प्रक्रिया
पुलिस ने अमृत मंडल के शव को पोस्टमॉर्टम के लिए राजबाड़ी सदर अस्पताल के मुर्दाघर भेज दिया है। अधिकारियों का कहना है कि मौत के सटीक कारणों और घटनाक्रम की पूरी जांच की जा रही है।
हालांकि, मानवाधिकार संगठनों का कहना है कि किसी भी आरोप की स्थिति में कानून को हाथ में लेने की अनुमति नहीं दी जा सकती और भीड़ हिंसा पर सख्त कार्रवाई अनिवार्य है।
ढाका के पास दीपू चंद्र दास की हत्या: जांच में चौंकाने वाला खुलासा
इस घटना से पहले 18 दिसंबर को ढाका के पास एक और भयावह वारदात सामने आई थी, जिसमें हिंदू युवक दीपू चंद्र दास की भीड़ ने हत्या कर दी थी। जांच में सामने आया है कि जिस आधार पर भीड़ ने हमला किया, वह आरोप पूरी तरह अफवाह निकला।
सोशल मीडिया पर यह दावा फैलाया गया था कि दीपू ने फेसबुक पर धार्मिक भावनाएं आहत करने वाली टिप्पणी की है। लेकिन जांच एजेंसियों के मुताबिक ऐसी किसी पोस्ट या टिप्पणी का कोई प्रमाण नहीं मिला।
RAB की जांच: ईशनिंदा का कोई सबूत नहीं
रैपिड एक्शन बटालियन (RAB) के कंपनी कमांडर मोहम्मद शम्सुज्जमान ने बांग्लादेशी अखबार द डेली स्टार को बताया कि जांच में अब तक ऐसा कोई साक्ष्य सामने नहीं आया है, जिससे यह साबित हो कि दीपू दास ने सोशल मीडिया पर आपत्तिजनक या धार्मिक भावनाएं भड़काने वाला कंटेंट डाला था।
इस मामले में अब तक 12 लोगों को गिरफ्तार किया जा चुका है और यह भी जांच की जा रही है कि अफवाह किसने और किस मकसद से फैलाई।
फैक्ट्री से खींचकर की गई नृशंस हत्या
दीपू चंद्र दास मेमनसिंह जिले के भालुका में एक कपड़ा फैक्ट्री में काम करते थे। 18 दिसंबर की रात फैक्ट्री परिसर में अफवाह फैली, जो कुछ ही घंटों में बाहर तक पहुंच गई।
रात करीब 9 बजे भीड़ फैक्ट्री में घुसी, दीपू को बाहर खींचा गया और लात-घूंसों व डंडों से पीटा गया। उसके कपड़े फाड़ दिए गए। मौत के बाद भीड़ यहीं नहीं रुकी—शव को नग्न अवस्था में पेड़ से लटकाकर आग लगा दी गई।
इस दौरान आसपास मौजूद कई लोग मोबाइल फोन से वीडियो बनाते रहे, जिसने घटना की भयावहता को और उजागर कर दिया।
उस्मान हादी की मौत के बाद भड़की व्यापक हिंसा
दीपू की हत्या ऐसे समय हुई, जब बांग्लादेश में पहले से ही हिंसा का माहौल था। छात्र आंदोलन के नेता शरीफ उस्मान बिन हादी की मौत के बाद राजधानी ढाका समेत चार शहरों में आगजनी और तोड़फोड़ की घटनाएं सामने आईं।
हादी अगस्त 2024 में तत्कालीन सरकार के विरोध में हुए छात्र आंदोलन के प्रमुख चेहरों में थे। 12 दिसंबर को उन्हें गोली मारी गई थी, इलाज के लिए सिंगापुर भेजा गया, लेकिन 18 दिसंबर को उनकी मौत हो गई।
अखबारों के दफ्तरों पर हमले और सियासी तनाव
हादी की मौत के बाद भड़की हिंसा में प्रोथोम आलो और द डेली स्टार के दफ्तरों को निशाना बनाया गया। आरोप है कि हादी के समर्थकों ने सोशल मीडिया पोस्ट के जरिए लोगों को राजबाग इलाके में इकट्ठा होने के लिए उकसाया।
हादी अपनी तकरीरों में इन अखबारों की आलोचना करते रहे थे और उन्हें हिंदुओं का पक्षधर बताते हुए सेक्युलर रुख पर सवाल उठाते थे।
अल्पसंख्यक सुरक्षा और कानून-व्यवस्था पर गहराता संकट
लगातार सामने आ रही Bangladesh mob violence की घटनाओं ने यह सवाल और गहरा कर दिया है कि अफवाहों और भीड़तंत्र पर कैसे लगाम लगेगी। मानवाधिकार विशेषज्ञों का कहना है कि जब तक अफवाह फैलाने वालों और भीड़ हिंसा में शामिल लोगों पर सख्त कार्रवाई नहीं होती, तब तक ऐसी घटनाओं की पुनरावृत्ति का खतरा बना रहेगा।

