विराट कोहली के स्वागत में मौत का मातम: क्या Cricket का जुनून हमारी इंसानियत को निगल रहा है?

बेंगलुरु में हाल ही में घटी एक दिल दहला देने वाली घटना ने पूरे देश को झकझोर कर रख दिया है। आईपीएल फाइनल के बाद जब विराट कोहली बैंगलोर लौटे, तो उनके स्वागत के लिए उमड़ी अनियंत्रित भीड़ में भगदड़ मच गई। इस भगदड़ में कई लोगों की मौत हो गई और कई घायल हुए, जिनमें से कुछ की हालत गंभीर बताई जा रही है।
एक जान की कीमत और हमारा अंधभक्त Cricket प्रेम
भारत में Cricket को सिर्फ एक खेल नहीं, बल्कि एक धर्म का दर्जा मिल चुका है। खिलाड़ी भगवान बना दिए जाते हैं, और उनके स्वागत या दर्शन के लिए लाखों की भीड़ उमड़ पड़ती है, चाहे उस भीड़ का कोई प्रबंधन हो या नहीं।
विराट कोहली निःसंदेह एक महान खिलाड़ी हैं। उनकी क्रिकेट के प्रति प्रतिबद्धता, मेहनत और प्रदर्शन ने उन्हें दुनिया के शीर्ष खिलाड़ियों में जगह दी है। लेकिन सवाल यह है कि क्या किसी खिलाड़ी के लिए एक आम इंसान की जान चली जाना जायज़ है?
मुफ्त प्रवेश और बिना योजना के आयोजन बना तबाही की जड़
बैंगलोर में हुए इस हादसे का एक बड़ा कारण था — चिन्नास्वामी स्टेडियम में मुफ्त प्रवेश और आयोजन से पहले की गई गंभीर लापरवाही। स्थानीय प्रशासन और आयोजकों ने भीड़ नियंत्रण के लिए कोई प्रभावी रणनीति नहीं बनाई। एक अनुमान के अनुसार, हजारों लोग एक साथ स्टेडियम के बाहर जमा हो गए और जब दरवाज़े खुले तो हर कोई सबसे आगे पहुंचने की कोशिश में भीड़ को रौंदता चला गया।
“क्रिकेट धर्म है और खिलाड़ी भगवान” – लेकिन किस कीमत पर?
हमारे समाज में बार-बार यह बात सुनने को मिलती है कि “Cricket हमारा धर्म है”, लेकिन जब यह धर्म इंसान की जान का दुश्मन बन जाए, तब हमें इस पर फिर से सोचने की ज़रूरत है।
एक खिलाड़ी की एक झलक पाने की लालसा ने कितनों को घर नहीं लौटने दिया। क्या यही हमारा खेल प्रेम है?
क्या विराट कोहली इस घटना से वाकिफ हैं? क्या उन्होंने कोई बयान दिया?
इस घटना के बाद अभी तक विराट कोहली की तरफ से कोई आधिकारिक बयान सामने नहीं आया है। लेकिन ऐसे मामलों में खिलाड़ियों की चुप्पी भी सवालों के घेरे में आती है।
जब उनकी वजह से लोग जान गंवा रहे हैं, तो क्या उनकी ज़िम्मेदारी नहीं बनती कि वे अपने प्रशंसकों से संयम बरतने की अपील करें?
भावनाओं की आंधी में खोता जा रहा विवेक
यह पहली बार नहीं है जब क्रिकेट प्रेम ने जान ली हो। इससे पहले भी मैचों के दौरान, या किसी स्टार खिलाड़ी के आगमन पर भीड़ में भगदड़, टिकट के लिए लड़ाई, और हिंसा की घटनाएं होती रही हैं। लेकिन हमें यह समझना होगा कि क्रिकेट, या कोई भी खेल, हमारे जीवन का हिस्सा हो सकता है, जीवन नहीं।
मीडिया की भूमिका और प्रचार का पागलपन
विराट कोहली की अगुवाई हो, या किसी खिलाड़ी की रील वायरल हो — मीडिया और सोशल मीडिया ने खिलाड़ियों को देवता जैसा महिमामंडित कर दिया है। इस वजह से आम जनता की अपेक्षाएं और जुनून भी बढ़ते जा रहे हैं।
जहां खिलाड़ी करोड़ों की कमाई कर रहे हैं, वहीं उनका एक दीवाना फैन अपनी जान गंवा रहा है — सिर्फ एक झलक पाने के लिए। यह सामाजिक विडंबना नहीं तो और क्या है?
जनता, प्रशासन और मीडिया — सबकी है ज़िम्मेदारी
इस त्रासदी के पीछे सिर्फ एक कारण नहीं है। यह एक सामूहिक असफलता है — जनता की अंधभक्ति, प्रशासन की लापरवाही और मीडिया की अति-उत्साही ब्रांडिंग।
जब तक इन सभी पक्षों की जिम्मेदारी तय नहीं होती, और जब तक जनता अपने नायकों को भगवान समझना बंद नहीं करती, तब तक ऐसे हादसे रुकने वाले नहीं।