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Yogi Adityanath vs ओवैसी: सड़कों पर नमाज को लेकर जंग छिड़ी, RSS और संविधान पर तीखी बहस

उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री Yogi Adityanath और एआईएमआईएम प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी के बीच एक बार फिर तीखी बहस छिड़ गई है। इस बार विवाद की जड़ है सड़कों पर नमाज पढ़ने को लेकर यूपी सरकार का सख्त रुख। योगी आदित्यनाथ ने हाल ही में एक साक्षात्कार में कहा कि सड़कें यातायात के लिए बनी हैं, न कि धार्मिक अनुष्ठानों के लिए। इस पर ओवैसी ने तीखी प्रतिक्रिया देते हुए आरएसएस और भाजपा पर निशाना साधा है।

“आरएसएस की परेड सड़क पर होती है!” – ओवैसी का पलटवार

ओवैसी ने योगी के बयान को चुनौती देते हुए कहा, “अभी आरएसएस की परेड सड़क पर हो रही है। क्या वे इसे हवा में कर रहे हैं? जब आप कांवड़ यात्रा चला सकते हैं, हर धर्म के त्योहार सड़क पर मनाए जाते हैं, तो मुसलमानों की नमाज से आपको दिक्कत क्यों है? क्या इस देश में सिर्फ एक ही धर्म चलेगा? इस देश की खूबसूरती इसकी विविधता में है। आप जिस विचारधारा की बात कर रहे हैं, वह आरएसएस की विचारधारा है, जो संविधान से टकराती है।”

ओवैसी के इस बयान ने राजनीतिक गलियारों में हलचल मचा दी है। उन्होंने यूपी सरकार पर मुस्लिम समुदाय को निशाना बनाने का आरोप लगाया है।

“हिंदुओं से सीखें अनुशासन!” – योगी का दावा

इससे पहले, Yogi Adityanathने पीटीआई को दिए इंटरव्यू में कहा था कि सड़कों पर नमाज पढ़ने की अनुमति नहीं दी जा सकती। उन्होंने कहा, “सड़कें यातायात के लिए हैं। मुसलमानों को हिंदुओं से धार्मिक अनुशासन सीखना चाहिए। महाकुंभ जैसे विशाल आयोजन में भी कोई उत्पात नहीं होता, लेकिन कुछ लोग सड़कों पर नमाज पढ़कर अव्यवस्था फैलाते हैं।”

योगी ने यह भी कहा कि वक्फ बोर्डों ने मुस्लिम समुदाय के कल्याण के लिए कुछ खास नहीं किया, जबकि हिंदू मंदिरों ने शिक्षा और स्वास्थ्य जैसे क्षेत्रों में बड़ा योगदान दिया है।

वक्फ बोर्ड पर योगी का निशाना

यूपी सरकार द्वारा वक्फ संपत्तियों के नियमन को लेकर पेश किए गए विधेयक पर भी योगी ने सख्त रुख अपनाया। उन्होंने कहा, “वक्फ बोर्ड स्वार्थी लोगों का अड्डा बन चुके हैं। क्या उन्होंने मुसलमानों के लिए कोई कल्याणकारी काम किया है? हर अच्छे काम का विरोध होता है, इसलिए वक्फ बिल पर भी हो-हल्ला हो रहा है।”

राजनीतिक रंग में रंगा विवाद

इस पूरे विवाद ने राजनीतिक रंग ले लिया है। भाजपा के समर्थक योगी के बयान का बचाव कर रहे हैं, जबकि विपक्षी दलों और मुस्लिम संगठनों ने इसे धार्मिक भेदभाव बताया है। कुछ विश्लेषकों का मानना है कि यह मुद्दा 2024 के चुनावों से पहले सांप्रदायिक ध्रुवीकरण बढ़ाने की कोशिश हो सकती है।

क्या सड़कों पर नमाज पर प्रतिबंध जायज है?

यह सवाल अब राष्ट्रीय बहस का विषय बन गया है। कुछ लोगों का तर्क है कि सार्वजनिक स्थानों पर धार्मिक गतिविधियों से यातायात बाधित होता है, जबकि दूसरी ओर, मुस्लिम नेताओं का कहना है कि मस्जिदों की कमी के कारण सड़कों पर नमाज पढ़ना मजबूरी है।

क्या आगे बढ़ेगी सियासी गर्मी?

अब देखना यह है कि यह विवाद कितना आगे जाता है। क्या यूपी सरकार सड़कों पर नमाज पर पूर्ण प्रतिबंध लगाएगी? क्या ओवैसी और अन्य मुस्लिम नेता इस मुद्दे को और आगे बढ़ाएंगे? एक बात तो तय है – यह मामला अब सिर्फ यूपी तक सीमित नहीं रहा, बल्कि राष्ट्रीय स्तर पर चर्चा का विषय बन चुका है।

(समाचार जारी रहेगा…)

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