Ajmer Sharif: अजमेर शरीफ को बताया शिव मंदिर? कोर्ट के फैसले से मचा बवाल, 20 दिसंबर को होगी सुनवाई
Ajmer Sharif दरगाह, जो सूफी संत ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती की दरगाह के रूप में विश्व प्रसिद्ध है, एक नए विवाद का केंद्र बन गई है। हाल ही में निचली अदालत ने उस याचिका को मंजूर कर लिया जिसमें इस ऐतिहासिक दरगाह को शिव मंदिर बताया गया है। अदालत ने इस मामले में सभी पक्षकारों को नोटिस जारी किया है और 20 दिसंबर को सुनवाई की तारीख तय की है। इस फैसले के बाद धार्मिक हलकों में बहस छिड़ गई है और सोशल मीडिया पर भी इस मुद्दे ने जोर पकड़ लिया है।
क्या है पूरा मामला?
यह याचिका अजमेर की स्थानीय अदालत में दाखिल की गई थी। याचिकाकर्ता ने दावा किया है कि अजमेर शरीफ की भूमि पर प्राचीन काल में शिव मंदिर था, जिसे बाद में दरगाह में बदल दिया गया। याचिकाकर्ता ने इस मामले में ऐतिहासिक साक्ष्य और पुरातात्विक तथ्यों का हवाला देते हुए मांग की है कि इसे फिर से हिंदू धर्मस्थल घोषित किया जाए।
याचिका के माध्यम से अदालत से यह अपील की गई है कि स्थल पर खुदाई करवाई जाए ताकि ऐतिहासिक सत्य को सामने लाया जा सके। साथ ही, यह मांग भी की गई है कि वर्तमान में दरगाह पर जो धार्मिक गतिविधियां हो रही हैं, उन्हें रोका जाए।
अदालत का फैसला और नोटिस
निचली अदालत ने याचिका को सुनवाई के लिए मंजूर कर लिया है और संबंधित पक्षों को नोटिस जारी किया है। इनमें अजमेर शरीफ दरगाह कमेटी, स्थानीय प्रशासन और संबंधित धर्मगुरु शामिल हैं। अदालत ने इस मामले में सभी पक्षों से लिखित जवाब दाखिल करने के लिए कहा है।
20 दिसंबर की सुनवाई पर सभी की नजरें
इस मुद्दे की अगली सुनवाई 20 दिसंबर को होगी। माना जा रहा है कि यह मामला सिर्फ स्थानीय स्तर पर ही नहीं, बल्कि राष्ट्रीय स्तर पर भी धार्मिक और राजनीतिक बहस को बढ़ा सकता है।
धार्मिक और राजनीतिक प्रतिक्रियाएं
अजमेर शरीफ दरगाह को शिव मंदिर बताने वाली याचिका ने धार्मिक और राजनीतिक माहौल को गर्मा दिया है।
- दरगाह कमेटी की प्रतिक्रिया: दरगाह कमेटी ने इस याचिका को पूरी तरह से अस्वीकार्य बताया है। उनका कहना है कि यह धार्मिक सौहार्द्र को बिगाड़ने की साजिश है।
- हिंदू संगठनों का पक्ष: दूसरी ओर, कुछ हिंदू संगठन इस याचिका का समर्थन कर रहे हैं। उनका कहना है कि धार्मिक स्थलों के इतिहास की सच्चाई जनता के सामने आनी चाहिए।
क्या कहते हैं विशेषज्ञ?
इतिहासकार और पुरातत्वविद इस मामले में बंटे हुए हैं। कुछ विशेषज्ञों का मानना है कि इस तरह की याचिकाएं ऐतिहासिक तथ्यों को तोड़-मरोड़कर पेश करती हैं। वहीं, कुछ का कहना है कि पुरातात्विक खुदाई से स्थिति स्पष्ट हो सकती है।
- इतिहासकार: “ऐतिहासिक स्थलों पर इस तरह के विवाद न केवल समाज में बंटवारा पैदा करते हैं, बल्कि इतिहास के साथ खिलवाड़ भी करते हैं।”
- पुरातत्व विशेषज्ञ: “यदि वैज्ञानिक तरीकों से जांच की जाए, तो इससे सच्चाई का पता लगाया जा सकता है।”
सोशल मीडिया पर हंगामा
इस मुद्दे ने सोशल मीडिया पर भी गर्मागर्म बहस छेड़ दी है।
- #AjmerSharifControversy और #ShivaTemple जैसे हैशटैग ट्रेंड कर रहे हैं।
- कई लोग इसे धार्मिक ध्रुवीकरण का प्रयास बता रहे हैं, तो कुछ लोग इसे ऐतिहासिक सच्चाई को सामने लाने की कोशिश मान रहे हैं।
धार्मिक स्थलों पर विवाद के उदाहरण
यह पहली बार नहीं है जब किसी धार्मिक स्थल को लेकर विवाद खड़ा हुआ हो। इससे पहले भी कई ऐसे मामले सामने आए हैं:
- काशी विश्वनाथ-ज्ञानवापी मस्जिद विवाद: वाराणसी में ज्ञानवापी मस्जिद और काशी विश्वनाथ मंदिर को लेकर भी अदालत में मामला चल रहा है।
- मथुरा का कृष्ण जन्मभूमि-शाही ईदगाह विवाद: मथुरा में कृष्ण जन्मभूमि और शाही ईदगाह को लेकर भी ऐतिहासिक दावे किए गए हैं।
आगे की राह
20 दिसंबर की सुनवाई के बाद यह तय होगा कि इस याचिका का भविष्य क्या होगा। फिलहाल, यह मामला धार्मिक और राजनीतिक गलियारों में चर्चा का केंद्र बना हुआ है।
क्या यह मामला धार्मिक सौहार्द्र को प्रभावित करेगा या ऐतिहासिक सच्चाई को उजागर करेगा? यह सवाल हर किसी के मन में है।