चीन की धौंस के खिलाफ लामबंद हुआ विश्व: “Pacific Steller 2025” ने उड़ाई ड्रैगन की नींद
Pacific Steller 2025 चीन का विस्तारवादी रवैया अब दुनिया के लिए सिरदर्द बन चुका है। साउथ चाइना सी में उसके आक्रामक रुख से फिलीपींस, वियतनाम, ताइवान और मलेशिया के लिए खतरा बढ़ता जा रहा है। अपनी नौसैनिक शक्ति के दम पर बीजिंग छोटे देशों को धमकाने में कोई कसर नहीं छोड़ रहा। मगर इस बार “Pacific Steller 2025” नामक विशाल सैन्य अभ्यास ने चीन को स्पष्ट संकेत दे दिया कि इंडो-पैसिफिक में उसकी मनमानी अब नहीं चलेगी।
10 फरवरी से 18 फरवरी तक फिलीपींस सागर में चले इस युद्धाभ्यास ने ड्रैगन की नींद उड़ा दी। इस दौरान अमेरिका, जापान और फ्रांस के तीन विशालकाय एयरक्राफ्ट कैरियर – USS Carl Vinson, FS Charles de Gaulle और JS Kaga – ने अपनी ताकत का जबरदस्त प्रदर्शन किया।
चीन की चुनौती के खिलाफ तीन महाशक्तियों का मोर्चा
फ्रांस की अगुवाई में हुए इस युद्धाभ्यास में एंटी-सबमरीन ड्रिल, ज्वाइंट मैरीटाइम फ्लीट एयर डिफेंस, और मेरिटाइम टार्गेट पर जबरदस्त निशानेबाजी जैसे कई हाई-इंटेंसिटी ऑपरेशंस शामिल थे।
सबसे खास बात यह रही कि क्रॉस-डेक ऑपरेशन के तहत अमेरिकी F/A-18F सुपर हॉर्नेट्स और CMV-22B ओस्प्रे विमानों ने USS Carl Vinson से उड़ान भरकर फ्रांस के चार्ल्स डी गॉल कैरियर पर लैंडिंग की, जबकि फ्रांस के अत्याधुनिक राफेल लड़ाकू विमान अमेरिकी कैरियर पर टेक-ऑफ और लैंडिंग करते नजर आए।
फ्रांस की इंडो-पैसिफिक में बढ़ती दिलचस्पी
यह अभ्यास इसलिए भी ऐतिहासिक था क्योंकि 1968 के बाद पहली बार फ्रांस के एयरक्राफ्ट कैरियर “Charles de Gaulle” ने इस क्षेत्र में ऑपरेशन किया। इससे पहले फ्रांसीसी कैरियर भारत में 10 दिनों तक रुका था, जहां भारतीय नौसेना और वायुसेना के साथ संयुक्त अभ्यास हुआ था।
साउथ चाइना सी: चीन की विस्तारवादी नीतियां और टकराव की बढ़ती आहट
चीन पिछले एक दशक से लगातार फिलीपींस, ताइवान, वियतनाम और मलेशिया के समुद्री क्षेत्रों पर कब्जे की कोशिश कर रहा है। 2009 में चीन ने 9 डैश लाइन वाला नया नक्शा जारी किया, जिसमें उसने फिलीपींस के द्वीपों और एक्सक्लूसिव इकोनॉमिक ज़ोन (EEZ) को अपना हिस्सा बताया।
इसके बाद से ही चीन ने इन इलाकों में कृत्रिम द्वीपों का निर्माण शुरू कर दिया। बीजिंग का इरादा साफ था – ये द्वीप नौसैनिक ठिकानों में बदलकर दक्षिण चीन सागर पर पूर्ण नियंत्रण स्थापित करना।
चीनी नौसेना का आक्रामक रवैया
चीन की नौसेना लगातार अपने सैन्य अभियानों को बढ़ा रही है। हाल ही में 7 चीनी युद्धपोतों ने पश्चिमी प्रशांत महासागर में गश्त की। ये केवल अभ्यास नहीं थे, बल्कि एक शक्ति प्रदर्शन था, जिसमें चीन बाकी देशों को यह बताना चाहता था कि इस क्षेत्र में उसका दबदबा है।
फिलीपींस, जो इस क्षेत्र में चीन की आक्रामकता से सबसे ज्यादा प्रभावित है, को कई बार चीनी तटरक्षक बल और मछली पकड़ने वाले जहाजों द्वारा परेशान किया गया है। चीन अक्सर फिलीपींस की नौसेना की पेट्रोलिंग में बाधा डालता है और स्थानीय मछुआरों को खदेड़ देता है।
क्वाड गठबंधन की रणनीति: चीन पर बढ़ता दबाव
चीन की बढ़ती विस्तारवादी नीतियों के खिलाफ अमेरिका, जापान, ऑस्ट्रेलिया और भारत का क्वाड गठबंधन लगातार लामबंद हो रहा है। “Pacific Steller 2025” के जरिए अमेरिका, जापान और फ्रांस ने चीन को स्पष्ट संदेश दिया है कि अब इंडो-पैसिफिक में उसकी मनमानी नहीं चलेगी।
क्यों है यह अभ्यास महत्वपूर्ण?
- इंडो-पैसिफिक में चीन की बढ़ती सैन्य गतिविधियों पर नकेल कसने का प्रयास
- क्वाड देशों और सहयोगी शक्तियों की एकता का प्रदर्शन
- फ्रांस की इंडो-पैसिफिक में दिलचस्पी का बढ़ना और यूरोपीय देशों का इस क्षेत्र में दखल
- चीन के आक्रामक रवैये का जवाब देने के लिए फिलीपींस और अन्य देशों को मनोवैज्ञानिक समर्थन
क्या चीन पलटवार करेगा?
चीन हमेशा अपने विस्तारवादी रवैये को सही ठहराने के लिए इतिहास और “नौसेना शक्ति” का सहारा लेता है। लेकिन अब सवाल उठता है – क्या वह इतने बड़े सैन्य अभ्यास के बाद भी आक्रामक बना रहेगा, या फिलहाल अपने कदम पीछे खींच लेगा?
विशेषज्ञों का मानना है कि चीन जल्द ही अपनी सैन्य गतिविधियों को और तेज कर सकता है। वह इस अभ्यास के जवाब में और ज्यादा युद्धपोत तैनात कर सकता है या इंडो-पैसिफिक में कोई आक्रामक कार्रवाई कर सकता है।
इंडो-पैसिफिक की नई रणनीति
“Pacific Steller 2025” ने साफ कर दिया है कि चीन की विस्तारवादी नीति अब आसानी से सफल नहीं होगी। अमेरिका, जापान और फ्रांस जैसे देशों ने यह साबित कर दिया कि वे सिर्फ बयानबाजी तक सीमित नहीं रहेंगे, बल्कि जरूरत पड़ने पर अपनी नौसैनिक शक्ति का इस्तेमाल करने से भी नहीं हिचकेंगे।
अब सबकी नजरें इस बात पर टिकी हैं कि क्या क्वाड गठबंधन इस तरह के युद्धाभ्यास को और ज्यादा बढ़ाएगा, या चीन के खिलाफ किसी ठोस रणनीति पर काम करेगा। जो भी हो, इतना तय है कि इंडो-पैसिफिक अब पूरी तरह से नया युद्धक्षेत्र बन चुका है, जहां हर कदम बहुत सोच-समझकर उठाना होगा।