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उत्तर प्रदेश

Lucknow: बिजलीकर्मियों का बगावत भरा धमाका: पूर्वांचल और दक्षिणांचल डिस्काम के निजीकरण के खिलाफ गरजा जनसैलाब!

Lucknow में बुधवार का दिन बिजली विभाग के इतिहास में एक नए मोड़ के रूप में दर्ज हो गया। प्रदेशभर से हजारों की संख्या में पहुंचे बिजलीकर्मियों ने पूर्वांचल और दक्षिणांचल डिस्काम के प्रस्तावित निजीकरण के खिलाफ मोर्चा खोलते हुए राजधानी की सड़कों को मानो बिजली के ज्वालामुखी में तब्दील कर दिया।

फील्ड हॉस्टल बना विरोध का मैदान
गौरतलब है कि लखनऊ स्थित फील्ड हॉस्टल में पूरे प्रदेश से आए विद्युत विभाग के कर्मचारियों ने एकजुट होकर विरोध प्रदर्शन किया। इस धरने में लाइनमैन से लेकर अभियंता और यूनियन नेताओं तक सभी ने खुलकर भाग लिया। निजीकरण की इस योजना को “कर्मचारी विरोधी” और “जनविरोधी” बताते हुए इसे अविलंब रद्द करने की मांग की गई।

🌩 क्या है निजीकरण का मामला?

उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा पूर्वांचल और दक्षिणांचल विद्युत वितरण निगम लिमिटेड (DISCOMs) के निजीकरण की प्रक्रिया को तेज किया जा रहा है। सरकार का तर्क है कि इससे सेवाओं में सुधार होगा, वित्तीय घाटा कम होगा और उपभोक्ताओं को बेहतर सुविधा मिलेगी। लेकिन कर्मचारियों का मानना है कि निजी हाथों में यह व्यवस्था जाने से नौकरी की सुरक्षा खत्म हो जाएगी, और आम जनता पर अतिरिक्त आर्थिक बोझ पड़ेगा।

एक कर्मचारी ने बताया:

“हम दिन-रात मेहनत करते हैं, अब जब बिजली व्यवस्था पटरी पर आई है तो इसे निजी कंपनियों को सौंपना सरासर अन्याय है। हम इसे किसी भी कीमत पर नहीं होने देंगे।”

विरोध की लहर: लखनऊ से लेकर जिलों तक फैलती चिंगारी

इस आंदोलन की गूंज सिर्फ लखनऊ तक सीमित नहीं रही। पूर्वांचल के वाराणसी, आजमगढ़, गोरखपुर से लेकर दक्षिणांचल के झांसी, बांदा, चित्रकूट तक बिजलीकर्मी विरोध में उतर आए हैं। कई स्थानों पर कार्य बहिष्कार तक किया गया, जिससे कुछ इलाकों में बिजली आपूर्ति बाधित रही।

अलर्ट पर प्रशासन:
राज्य सरकार ने इस विरोध को देखते हुए पावर सेक्टर में विशेष निगरानी के आदेश दिए हैं। अधिकारियों को निर्देशित किया गया है कि उपभोक्ताओं को किसी भी प्रकार की असुविधा न हो, लेकिन जमीनी हकीकत अलग है। कई स्थानों पर ट्रांसफॉर्मर बदलने, लाइन ठीक करने जैसी जरूरी सेवाएं बाधित रहीं।

🔥 सियासत में भी उबाल: विपक्ष ने साधा निशाना

निजीकरण के खिलाफ उठी इस लहर को विपक्ष ने भी जमकर भुनाया। समाजवादी पार्टी, कांग्रेस और आम आदमी पार्टी ने सरकार पर हमला बोलते हुए कहा कि यह फैसला जनविरोधी है। सपा प्रवक्ता ने कहा:

“योगी सरकार निजी कंपनियों को फायदा पहुंचाने के लिए जनता और कर्मचारियों की बलि चढ़ा रही है।”

💥 यूनियन नेताओं ने भरी हुंकार

धरने में पहुंचे प्रदेश विद्युत कर्मचारी संयुक्त संघर्ष समिति के संयोजक ने कहा कि यह आंदोलन सिर्फ एक शुरुआत है। अगर सरकार ने अपनी जिद नहीं छोड़ी तो पूरे प्रदेश की बिजली व्यवस्था ठप कर दी जाएगी। उन्होंने एलान किया कि अगला चरण में ‘बिजली बंद’ जैसे बड़े कदम उठाए जाएंगे।

 बोले:

“हम शांति से अपनी बात कह रहे हैं, लेकिन अगर सरकार ने जबरन निजीकरण थोपा, तो पूरा पावर सेक्टर जाम कर दिया जाएगा।”

🔌 कर्मचारियों की मुख्य मांगें

  1. पूर्वांचल और दक्षिणांचल डिस्काम का निजीकरण तुरंत रद्द किया जाए

  2. सभी संविदा कर्मियों को नियमित किया जाए

  3. कर्मचारियों की पुरानी पेंशन योजना बहाल हो

  4. कार्यस्थल पर सुरक्षा और सुविधाओं में सुधार किया जाए

  5. यूनियनों के साथ वार्ता कर फैसला लिया जाए

🧨 पिछले आंदोलनों की यादें ताजा

बिजलीकर्मियों का यह विरोध कोई पहली बार नहीं है। साल 2021 में भी जब निजीकरण की चर्चा तेज हुई थी, तब भी प्रदेशभर में हड़तालें हुई थीं। तब सरकार को पीछे हटना पड़ा था। अब एक बार फिर वही हालात बनते दिख रहे हैं।

⚠️ जनता की परेशानी भी बढ़ी

जहां एक ओर कर्मचारी अपनी नौकरी और भविष्य की चिंता में आंदोलन कर रहे हैं, वहीं आम जनता भी बिजली कटौती और बिलिंग जैसे मुद्दों से परेशान है। कई उपभोक्ताओं ने कहा कि निजी कंपनियों के आने से बिल ज्यादा बढ़ेगा और सेवा घटेगी।

एक निवासी ने कहा:

“पहले ही बिजली बिल भारी पड़ते हैं, अब निजीकरण हुआ तो मिडिल क्लास तो पूरी तरह पिस जाएगा।”

🔥 सरकार की ओर से बयान

ऊर्जा मंत्री ने मीडिया को दिए बयान में कहा कि सरकार अभी सिर्फ प्रस्ताव पर विचार कर रही है, कोई अंतिम निर्णय नहीं हुआ है। साथ ही यह भी आश्वासन दिया कि कर्मचारियों के हितों की अनदेखी नहीं की जाएगी। लेकिन इस बयान को कर्मचारी सिर्फ “लालीपॉप” बता रहे हैं।


🧯 आंदोलन की अगली कड़ी क्या होगी?

अब यह विरोध एक निर्णायक मोड़ की ओर बढ़ रहा है। कर्मचारियों की यूनियनों ने चेतावनी दी है कि यदि सरकार ने प्रस्ताव वापस नहीं लिया, तो आने वाले दिनों में बड़ा प्रदर्शन, पावर हाउस का घेराव, और फिर ‘ब्लैक आउट’ जैसे गंभीर कदम उठाए जाएंगे।

कुल मिलाकर प्रदेश की विद्युत व्यवस्था एक बार फिर संघर्ष के मुहाने पर खड़ी है, और यह देखना दिलचस्प होगा कि सरकार बातचीत की मेज पर आती है या टकराव का रास्ता अपनाती है।

अगर जल्द हल नहीं निकला, तो आने वाले समय में लखनऊ से लेकर ललितपुर तक अंधेरे में डूबने की नौबत आ सकती है, और यह केवल शुरुआत होगी…

News-Desk

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