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Jammu and Kashmir Election: एग्जिट पोल पर घमासान, आठ अक्टूबर की मतगणना पर टिकी उम्मीदें

Jammu and Kashmir Election के नतीजों से पहले राजनीतिक गलियारों में हलचल तेज हो गई है। एग्जिट पोल के नतीजे सामने आते ही हर राजनीतिक पार्टी की प्रतिक्रिया आना शुरू हो गई है। राजनीतिक दलों ने चुनाव परिणामों को लेकर अपनी-अपनी उम्मीदें जतानी शुरू कर दी हैं, लेकिन असली तस्वीर आठ अक्टूबर की मतगणना के बाद ही साफ होगी।

एग्जिट पोल का अनुमान और उमर अब्दुल्ला की प्रतिक्रिया

ज्यादातर एग्जिट पोल में यह अनुमान लगाया जा रहा है कि नेशनल कॉन्फ्रेंस (NC) जम्मू-कश्मीर में सबसे बड़ी पार्टी के रूप में उभर सकती है। इसी संदर्भ में नेशनल कॉन्फ्रेंस के नेता उमर अब्दुल्ला ने सोशल मीडिया प्लेटफार्म ‘एक्स’ (पूर्व में ट्विटर) पर अपनी प्रतिक्रिया दी। उन्होंने लिखा, “मैं चकित हूं कि टीवी चैनल एग्जिट पोल को लेकर परेशान हैं, खासकर हाल के आम चुनावों में नाकामी के बाद। मैं टीवी चैनलों, सोशल मीडिया, व्हाट्सएप आदि पर होने वाले सभी शोरगुल को नजरअंदाज कर रहा हूं, क्योंकि केवल आठ अक्टूबर के आंकड़े ही मायने रखेंगे। बाकी सब बस टाइम पास है।”

उमर अब्दुल्ला की इस टिप्पणी से यह साफ जाहिर होता है कि वे एग्जिट पोल के नतीजों पर ज्यादा भरोसा नहीं कर रहे हैं और वास्तविक परिणामों का इंतजार कर रहे हैं।

भाजपा की रणनीति और आत्मविश्वास

जम्मू-कश्मीर में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) भी अपनी जीत को लेकर आत्मविश्वास से भरी हुई है। पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष रविंदर रैना ने कहा, “हमने पूरी ताकत से विधानसभा चुनाव लड़ा। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, गृह मंत्री अमित शाह और पार्टी अध्यक्ष जे पी नड्डा समेत भाजपा के शीर्ष नेतृत्व ने जबरदस्त प्रचार किया। हमें पूरा भरोसा है कि आठ अक्टूबर की मतगणना के बाद भाजपा सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरेगी।”

रैना ने आगे कहा, “भाजपा ने चुनाव में अपनी शक्ति से मैदान में कदम रखा और मतदाताओं का जबरदस्त समर्थन पाया। हम आठ अक्टूबर को विजयी होंगे और सरकार बनाने की दिशा में काम करना शुरू करेंगे।”

भाजपा के इस आत्मविश्वास की मुख्य वजह केंद्र सरकार की ओर से जम्मू-कश्मीर में पिछले कुछ वर्षों में उठाए गए विभिन्न कदम हैं, जिनमें विशेष रूप से अनुच्छेद 370 का हटाया जाना प्रमुख है। भाजपा का यह दावा है कि केंद्र के इन फैसलों ने लोगों का भरोसा पार्टी में बढ़ाया है, जो इस बार चुनाव परिणाम में परिलक्षित होगा।

कांग्रेस-नेकां गठबंधन की उम्मीदें

कांग्रेस और नेशनल कॉन्फ्रेंस (NC) गठबंधन भी इस चुनाव में मजबूत दावेदारी पेश कर रहा है। जम्मू-कश्मीर कांग्रेस के अध्यक्ष तारिक हमीद कर्रा ने कहा, “यह चुनाव मुख्य रूप से भाजपा को सत्ता से दूर रखने और राज्य का दर्जा बहाल करने के लिए था। हमने लोगों की वास्तविक समस्याओं को लेकर चुनाव लड़ा और मुझे विश्वास है कि कांग्रेस-नेकां गठबंधन सरकार बनाने की स्थिति में है।”

कर्रा का मानना है कि पिछले 10 वर्षों में राजभवन और सिविल सचिवालय के शीर्ष पदों पर बैठे लोगों ने ‘राजा’ की तरह काम किया है, जिससे जनता को भारी परेशानियों का सामना करना पड़ा। कर्रा का यह भी कहना है कि भाजपा को अब लोगों को यह बताना होगा कि उन्होंने पिछले 10 साल में क्या किया है और कैसे उन्होंने जनता की सेवा की।

पीडीपी का संयमित दृष्टिकोण

पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी (पीडीपी) के वरिष्ठ नेता नईम अख्तर ने एग्जिट पोल पर कोई विशेष भरोसा नहीं जताया। उन्होंने कहा, “हमने देखा है कि एग्जिट पोल विश्वसनीय नहीं होते। मतगणना के अंत में आने वाले आंकड़े ही मायने रखते हैं।”

यह पूछे जाने पर कि क्या पीडीपी जरूरत पड़ने पर कांग्रेस-नेकां गठबंधन का समर्थन करेगी, अख्तर ने कहा कि इस पर टिप्पणी करना जल्दबाजी होगी। उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि पीडीपी ‘इंडिया’ गठबंधन का हिस्सा है और इस गठबंधन के भीतर ही सारे फैसले लिए जाएंगे।

एग्जिट पोल की विश्वसनीयता पर संदेह

एग्जिट पोल का भारतीय राजनीति में एक अलग ही महत्व है। यह वह तरीका है, जिससे चुनाव परिणामों का पहले से अंदाजा लगाया जाता है, लेकिन पिछले कुछ वर्षों में एग्जिट पोल की विश्वसनीयता पर सवाल उठते रहे हैं। कई बार एग्जिट पोल के अनुमान वास्तविक नतीजों से मेल नहीं खाते।

जम्मू-कश्मीर में भी इस बार के एग्जिट पोल को लेकर मिश्रित प्रतिक्रिया सामने आई है। जहां कुछ राजनीतिक दल एग्जिट पोल को लेकर सकारात्मक हैं, वहीं कई दल इसे केवल एक अनुमान मान रहे हैं। उमर अब्दुल्ला, नईम अख्तर जैसे नेता स्पष्ट रूप से इस बात पर जोर दे रहे हैं कि केवल आठ अक्टूबर की मतगणना ही असली परिणाम को दिखाएगी।

जम्मू-कश्मीर का राजनीतिक परिदृश्य

जम्मू-कश्मीर का राजनीतिक परिदृश्य हमेशा से ही विशेष रहा है। राज्य का विशेष दर्जा हटाए जाने और इसे केंद्रशासित प्रदेश बनाए जाने के बाद यह पहला बड़ा चुनाव है। ऐसे में राजनीतिक दलों के लिए यह चुनाव केवल सत्ता प्राप्ति का माध्यम नहीं है, बल्कि जनता के लिए अपनी नीतियों को स्पष्ट करने और जम्मू-कश्मीर के भविष्य को लेकर एक नई दिशा देने का अवसर है।

भाजपा, कांग्रेस-नेकां गठबंधन और पीडीपी के बीच कांटे की टक्कर देखी जा रही है। वहीं, छोटे-छोटे दल भी अपने क्षेत्रीय प्रभाव के आधार पर चुनावी समीकरणों में एक अहम भूमिका निभा सकते हैं।

क्या कहता है इतिहास?

जम्मू-कश्मीर का चुनावी इतिहास हमेशा से ही अनिश्चितताओं से भरा रहा है। यहां के लोग कई बार राज्य की अलग-अलग पार्टियों और नेताओं को सत्ता सौंप चुके हैं। इस बार का चुनाव इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि यह राज्य का दर्जा खत्म होने और केंद्रशासित प्रदेश बनने के बाद का पहला बड़ा चुनाव है। जनता की प्राथमिकताएं और चुनावी मुद्दे भी इस बार पहले से काफी अलग हैं।

भविष्य की उम्मीदें और नतीजों का प्रभाव

जैसे-जैसे मतगणना की तारीख करीब आ रही है, राजनीतिक दलों और जनता दोनों की उम्मीदें बढ़ती जा रही हैं। चुनाव के नतीजे केवल राज्य के राजनीतिक परिदृश्य को नहीं, बल्कि केंद्र के साथ राज्य के संबंधों को भी प्रभावित करेंगे।

आठ अक्टूबर की मतगणना के बाद यह साफ हो जाएगा कि जम्मू-कश्मीर के लोग किस पार्टी पर अपना भरोसा जताते हैं। एग्जिट पोल के बावजूद, सभी की नजरें अंतिम परिणामों पर टिकी हुई हैं, जो इस राज्य की भविष्य की राजनीति को नई दिशा देंगे।

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