ममता या मोह? एक मां के अवैध संबंधों की अधूरी कहानी जिसने बेटे की जिंदगी बदल दी- Love or Obsession (Part 1)
जब वही मां, जिसने जीवन दिया, अपने बेटे की पुकार सुनकर भी खुद को रोक लेती है क्योंकि समाज की नज़रों का डर उससे बड़ा लगता है? यह कहानी ऐसी ही एक औरत — रीना — और उसके बेटे ऋतुन्जय की है; एक ऐसी कहानी जो Love, त्याग, Obsession, अपराधबोध और समाज के बंधनों के बीच धीरे-धीरे दम तोड़ती ममता को दिखाती है।
मैं हूं डॉ. वेद प्रकाश, और आज आपके सामने पेश कर रहा हूं नवादा के एक छोटे से गांव की सच्ची कहानी — ऐसी कहानी जो इंसान के भीतर के रिश्तों और भावनाओं को झकझोर देती है।
खुशहाल परिवार, लेकिन अंदर पनपती दरारें
रीना अपने पति और दो बेटों — मृत्युन्जय और ऋतुन्जय — के साथ नवादा के एक छोटे से घर में रहती थी। उनका जीवन शांत और खुशहाल था। पति एक नामी डॉक्टर थे; घर में किसी चीज़ की कमी नहीं थी — न पैसे की, न प्यार की, न विश्वास की। पर ज़िंदगी हमेशा एक सी नहीं रहती। कभी-कभी तूफान वहीं से उठता है जहां से हम सुरक्षा की उम्मीद करते हैं।
रीना के जीवन में परिवर्तन तब आया जब गांव का एक व्यक्ति पाठक उसके जीवन में आया। वह उसका प्रशंसक था और धीरे-धीरे घर में आने-जाने लगा। शुरुआत में यह सब सामान्य था, पर समय के साथ रीना का उसके प्रति लगाव बढ़ने लगा। लोग बातें करने लगे, पति को बेचैनी महसूस होने लगी, और बड़ा बेटा मृत्युन्जय घर की खामोशी को महसूस कर रहा था।
जब घर टूटा और ममता ने रास्ता बदल लिया-Love or Obsession
एक दिन रीना ने फैसला किया — उसने पति और बड़े बेटे को छोड़ दिया और छोटे बेटे ऋतुन्जय के साथ शहर चली गई। वहां उसने किराये के एक छोटे मकान में नई ज़िंदगी शुरू की। बाहर से वह आज़ाद दिखती थी, पर अंदर से टूटी हुई थी। मां होकर भी उसने अपने बड़े बेटे से दूरी बना ली थी। समाज से भागते-भागते वह खुद से दूर हो गई थी।
बीमारी का साया और बिखरता परिवार
वर्ष 2024 की दीपावली थी। घर में दीये जल रहे थे पर मृत्युन्जय के जीवन में अंधेरा उतर रहा था। तेज़ बुखार, पीलिया और लगातार उल्टियों ने उसे कमज़ोर कर दिया। पिता जो खुद डॉक्टर थे, हर इलाज आजमा रहे थे लेकिन बेटे की हालत बिगड़ती जा रही थी। चेहरे पर मुस्कान थी पर भीतर भय था। एक रात मृत्युन्जय ने धीरे से कहा, “पापा… मैं ठीक हो जाऊंगा न?” पिता ने मजबूरी भरी मुस्कान के साथ उत्तर दिया, “कुछ नहीं होगा बेटा, मैं हूं ना।” पर उस मुस्कान के पीछे छिपे आंसू कोई नहीं देख पाया।
रिपोर्ट आई तो स्थिति गंभीर निकली। पिता ने अपने दोस्तों — डॉ. शशिकांत और चंदन — से मदद मांगी और एक बड़े अस्पताल में इलाज शुरू किया। पर बीमारी सिर्फ शरीर की नहीं थी; यह उन रिश्तों की बीमारी थी जो वर्षों से अंदर ही अंदर सड़ रही थी।
मां के नाम एक पुकार
अस्पताल के बिस्तर पर लेटे मृत्युन्जय ने कांपती आवाज़ में कहा, “पापा, क्या मैं मम्मी को फोन कर लूं? बहुत याद आ रही है।” पिता ने कठोर स्वर में कहा, “जो औरत इतने सालों में तुम्हें देखने नहीं आई, उस पर भरोसा मत करो बेटा।” लेकिन उनकी आंखों में छिपा दर्द बेटे ने महसूस कर लिया।
अगले दिन उसने खुद फोन किया — “मां… मैं बहुत बीमार हूं, बोल भी नहीं पा रहा… कुछ खा नहीं रहा…” फोन के उस पार रीना का दिल कांप उठा। उसने धीरे से कहा, “मैं तेरे बिना अधूरी हूं बेटा।” वह रो ना चाहती थी पर खुद को संभाल लिया।
मां का मन द्वंद्व में था — एक तरफ समाज का डर, दूसरी तरफ ममता की पुकार। उसने लोगों से, यहां तक कि पाठक से भी राय मांगी। किसी ने कहा, “मत जाओ, लोग बातें करेंगे।” किसी ने कहा, “इतने साल बाद वापस जाना ठीक नहीं।” पर ममता को कौन रोक सका है?
मिलन जो इलाज बन गया
आखिरकार रीना ने हिम्मत जुटाई। वह बिना कुछ लिए अस्पताल पहुँची — न फल, न फूल, सिर्फ कांपते कदम और आंखों में पछतावे का सागर। कमरा खाली था। उसे लगा, कहीं धोखा तो नहीं हुआ? तभी करीब आधे घंटे बाद दरवाज़े से मृत्युन्जय अंदर आया — बेहद कमज़ोर, पिता के सहारे। रीना ने उसे देखते ही सांसें रोक लीं, दौड़कर गले लग गई, उसके माथे को चूमा और फूट पड़ी। कई सालों का बर्फ उस एक पल में पिघल गया।
कमरे की हवा ठहर गई थी। मशीनों की बीप धीमी पड़ गई। डॉक्टर और नर्सें भी चुपचाप उस मां-बेटे को देख रहे थे।
समाज की बातें और ममता की जीत
अस्पताल के बाहर लोग फुसफुसा रहे थे — “अब आई है जब सब खत्म हो गया!” पर कोई नहीं जानता था कि मां की मौजूदगी ने बेटे में फिर से जीने की इच्छा जगा दी थी। रीना ने उसके माथे को सहलाते हुए कहा, “अब मैं हूं तेरे साथ, कुछ नहीं होगा।” पिता चुप थे — उनके भीतर का डॉक्टर हार गया था, पर पिता फिर से जाग उठा था।
और तभी… एक पल में सब बदल गया
सब कुछ शांत था। केवल मशीनों की बीप गूंज रही थी। अचानक वह आवाज़ धीमी पड़ी। नर्सें दौड़ीं, पिता चिल्लाए, “ऑक्सीजन बढ़ाओ!” रीना का दिल धड़कना भूल गया। उसने बेटे को हिलाया, “मृत्युन्जय… बेटा… आंखें खोल…” कमरा जम सा गया।
क्या हुआ उस रात? क्या ममता अपने बेटे को बचा पाई या समाज के पाप ने जीत ली?

