उत्तर प्रदेश

Kanpur: बेटी ने मां को काशी के घाट पर अकेला छोड़ा, पूरा मोहल्ला सन्न! जानिए क्या हुआ था रोंगटे खड़े कर देने वाला पूरा मामला

Kanpur से एक ऐसी घटना सामने आई है जिसने न सिर्फ शहर बल्कि पूरे समाज को झकझोर कर रख दिया। यह कहानी है एक मां की, जिसने अपनी बेटी को पाल-पोसकर बड़ा किया, लेकिन जवाब में उसी बेटी ने उसे काशी के घाट पर अकेला छोड़ दिया। यह घटना सिर्फ एक परिवार की नहीं, बल्कि पूरे समाज की नैतिकता पर सवाल खड़ा करती है।

क्या हुआ था पूरा वाकया?

मामला कानपुर के शिवाला मोहल्ले का है, जहां रहने वाली रीता और उसके पति ने 70 वर्षीय मां इंदिरा देवी को धार्मिक यात्रा के बहाने वाराणसी ले जाकर काशी के घाट पर अकेला छोड़ दिया। 13 अप्रैल की वह शाम इंदिरा देवी के लिए कभी न भूलने वाली बन गई, जब उनकी ही बेटी ने उन्हें एक आश्रम के बाहर छोड़कर वापस कानपुर लौट गई।

कुछ स्थानीय लोगों ने इंदिरा देवी को घाट पर बैठे देखा और उनसे बात की। उनकी हालत देखकर सभी की आंखें नम हो गईं। किसी ने इस पूरे वाकये को वीडियो में कैद कर सोशल मीडिया पर डाल दिया। देखते ही देखते वीडियो आग की तरह फैल गया और कानपुर के शिवाला मोहल्ले में तहलका मच गया।

मोहल्ले वालों को नहीं था यकीन

जब इस घटना की जानकारी मोहल्ले वालों को मिली, तो किसी को विश्वास ही नहीं हुआ। रीता को बचपन से देखने वाले रिंकू ने कहा, “हमने कभी नहीं सोचा था कि रीता ऐसा करेगी। इंदिरा आंटी ने उसे बड़े प्यार से पाला था। यह कैसा बदला है?”

पुलिस ने की त्वरित कार्रवाई

जैसे ही यह मामला कोतवाली पुलिस के संज्ञान में आया, थाना प्रभारी ने तुरंत रीता और उसके पति को वाराणसी भेजकर इंदिरा देवी को वापस लाने का आदेश दिया। पुलिस ने साफ कहा कि यह मामला सिर्फ परिवारिक नहीं, बल्कि एक गंभीर अपराध है और इसकी कानूनी जांच की जाएगी।

बेटी का बयान – “मैं परेशान थी”

रीता से जब इस बारे में पूछा गया, तो उसने अपनी गलती स्वीकार करने की बजाय मां के व्यवहार को ही दोष दिया। उसका कहना था, “मां हमेशा झगड़ा करती थी। मैंने उन्हें एक अच्छे आश्रम में छोड़ा था, लेकिन वहां से वह कैसे भाग आईं, यह मुझे नहीं पता।”

फिल्म ‘वनवास’ की याद दिला गई यह घटना

यह मामला बॉलीवुड फिल्म ‘वनवास’ की याद दिलाता है, जिसमें नाना पाटेकर को उनके बेटे काशी में छोड़ देते हैं। फर्क सिर्फ इतना है कि यहां बेटी ने मां को धोखा दिया। यह कोई कहानी नहीं, बल्कि कड़वी हकीकत है।

समाज के लिए एक सबक

यह घटना सिर्फ एक खबर नहीं, बल्कि हमारी सामाजिक व्यवस्था पर एक बड़ा सवाल है। आज के दौर में जहां बुजुर्गों को बोझ समझा जाने लगा है, वहीं ऐसे मामले हमें याद दिलाते हैं कि रिश्ते सिर्फ खून के नहीं, बल्कि इंसानियत के होते हैं।

क्या कहता है कानून?

भारतीय कानून के तहत बुजुर्गों को त्यागना एक दंडनीय अपराध है। मेंटेनेंस एंड वेलफेयर ऑफ पेरेंट्स एंड सीनियर सिटिजन्स एक्ट, 2007 के अनुसार, अगर कोई अपने माता-पिता की देखभाल नहीं करता है, तो उसे 3 महीने से 5 साल तक की जेल हो सकती है।

समाज को जागने की जरूरत

ऐसी घटनाएं सिर्फ कानून से नहीं, बल्कि समाज की सोच बदलने से रुकेंगी। अगर आपके आसपास कोई बुजुर्ग अकेला या उपेक्षित महसूस कर रहा है, तो उसकी मदद करें। क्योंकि आज वह दिन किसी के भी जीवन में आ सकता है।


यह खबर सिर्फ एक घटना नहीं, बल्कि हमारे मानवीय मूल्यों पर एक चिंतन है। अगर आपको यह जानकारी महत्वपूर्ण लगी, तो इसे शेयर करें ताकि ऐसी घटनाओं को रोका जा सके।

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