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Nobel peace prize 2024: परमाणु हथियारों के खिलाफ जंग लड़ने वाले जापानी संगठन Nihon Hidankyo सम्मानित

Nobel peace prize 2024 आज की दुनिया जहां यूक्रेन-रूस युद्ध और मिडिल ईस्ट के संघर्षों में उलझी हुई है, वहीं शांति के लिए काम करने वाली आवाज़ें भी मुखर हो रही हैं। इन्हीं आवाज़ों को सम्मानित करते हुए इस वर्ष के नोबेल शांति पुरस्कार का ऐलान किया गया। 2024 का यह प्रतिष्ठित पुरस्कार जापान की एक अद्वितीय संस्था, निहोन हिडानक्यो (Nihon Hidankyo) को दिया गया है, जो परमाणु हथियारों से मुक्त दुनिया की वकालत करती है।

निहोन हिडानक्यो: परमाणु विनाश के खिलाफ लड़ाई का प्रतीक

निहोन हिडानक्यो की स्थापना 1956 में हुई थी और इसे आमतौर पर हिबाकुशा के नाम से भी जाना जाता है। यह संस्था उन लोगों का प्रतिनिधित्व करती है, जो द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान हिरोशिमा और नागासाकी पर किए गए परमाणु बम हमलों से बच निकले थे। हिबाकुशा शब्द का जापानी में अर्थ होता है “बम से बचे हुए लोग” या “रेडियोधर्मिता से प्रभावित व्यक्ति”। इन लोगों का जीवन परमाणु हथियारों की भयावहता की जीवित गवाही है।

नोबेल शांति पुरस्कार समिति ने निहोन हिडानक्यो की परमाणु हथियारों के खिलाफ लड़ाई को सराहा और कहा कि इस संस्था का योगदान परमाणु युद्ध की रोकथाम और शांति की स्थापना में बेहद अहम रहा है। आने वाले साल 2025 में, हिरोशिमा और नागासाकी पर परमाणु बम गिराए जाने के 80 साल पूरे हो जाएंगे। इस दौरान बम विस्फोटों से तत्काल एक लाख 20 हजार लोग मारे गए थे, जबकि बाद में रेडिएशन के कारण हजारों लोगों की मौत हुई।

हिबाकुशा का दर्द: एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी तक

निहोन हिडानक्यो हिरोशिमा और नागासाकी में परमाणु बम से बचे हुए लोगों का एकमात्र राष्ट्रव्यापी संगठन है। इसके सभी 47 जापानी प्रांतों में इसकी सदस्यता है, जो लगभग सभी हिबाकुशा का प्रतिनिधित्व करता है। संगठन के सभी सदस्य और अधिकारी स्वयं हिबाकुशा हैं। 2023 के आंकड़ों के अनुसार, जापान में 174,000 से अधिक हिबाकुशा जीवित हैं, जबकि जापान के बाहर भी सैकड़ों लोग इस भयानक इतिहास के साक्षी हैं।

इनके जीवन की कहानियां और परमाणु हथियारों से हुए नुकसान का दर्द दुनिया भर के लोगों को जागरूक करने के लिए साझा किया जाता है। इन कहानियों ने परमाणु हथियारों के खिलाफ एक वैश्विक विरोध को जन्म दिया, और अन्य लोगों को इन हथियारों के विनाशकारी प्रभावों के बारे में गहराई से सोचने पर मजबूर किया।

नोबेल पुरस्कार: शांति की दिशा में एक और कदम

नोबेल शांति पुरस्कार के साथ जुड़ी 11 मिलियन स्वीडिश क्राउन की राशि केवल एक आर्थिक मदद नहीं है, बल्कि यह विश्व मंच पर शांति की दिशा में एक मजबूत संदेश है। इस साल के नोबेल शांति पुरस्कार की घोषणा के बाद दुनिया भर के शांति समर्थक इस कदम की सराहना कर रहे हैं।

पिछले साल, यह पुरस्कार ईरान की मानवाधिकार कार्यकर्ता नरगिस मोहम्मदी को दिया गया था, जिन्होंने अपने संगठन डिफेंडर्स ऑफ ह्यूमन राइट्स सेंटर के माध्यम से ईरान में मानवाधिकारों की रक्षा की लड़ाई लड़ी थी। उनके संगठन पर ईरान में प्रतिबंध लगा हुआ है, फिर भी उन्होंने मानवाधिकारों के लिए अपनी लड़ाई जारी रखी।

परमाणु हथियारों का खतरा: आज भी बड़ा मुद्दा

हालांकि 80 वर्षों से किसी भी युद्ध में परमाणु हथियारों का उपयोग नहीं हुआ है, लेकिन इस समय कई देश अपने परमाणु शस्त्रागार का आधुनिकीकरण कर रहे हैं, जिससे इस मुद्दे पर नए खतरे उत्पन्न हो रहे हैं। नोबेल समिति ने भी यह माना कि दुनिया में परमाणु निषेध पर भारी दबाव है। यही कारण है कि निहोन हिडानक्यो जैसे संगठनों का काम आज भी उतना ही महत्वपूर्ण है जितना कि पहले था।

परमाणु हथियारों के उन्मूलन की दिशा में कार्यरत यह संगठन परमाणु हथियारों पर एक अंतरराष्ट्रीय समझौते की मांग करता है, जिसमें उनका पूर्ण प्रतिबंध और युद्ध शुरू करने वाले देशों की जिम्मेदारी तय करने के मुद्दे शामिल हैं। साथ ही, यह संगठन परमाणु हमलों से प्रभावित लोगों के लिए मुआवजे की भी मांग करता है।

निहोन हिडानक्यो का संघर्ष और भविष्य

जापान में नई पीढ़ी के लोग अब इस संगठन की विरासत को आगे बढ़ा रहे हैं। हिबाकुशा के मिशन को जारी रखते हुए, वे दुनिया को शिक्षित कर रहे हैं कि परमाणु हथियार न केवल देशों के लिए बल्कि पूरी मानवता के लिए खतरा हैं।

इस संगठन की एक बड़ी उपलब्धि यह है कि यह स्मरण की संस्कृति को जीवित रखता है। स्मरण का यह सिलसिला सुनिश्चित करता है कि हिरोशिमा और नागासाकी के दर्दनाक इतिहास को कभी भुलाया न जाए, और यह भावी पीढ़ियों के लिए चेतावनी बनी रहे।

निहोन हिडानक्यो का मिशन: परमाणु मुक्त दुनिया का सपना

निहोन हिडानक्यो का मुख्य मिशन परमाणु हथियारों के उन्मूलन पर केंद्रित है। यह संगठन चाहता है कि एक ऐसा वैश्विक सम्मेलन आयोजित किया जाए, जिसमें परमाणु हथियारों पर पूर्ण प्रतिबंध की दिशा में ठोस कदम उठाए जाएं। इसके अलावा, हिबाकुशा की सहायता और सुरक्षा पर वर्तमान नीतियों में सुधार की भी मांग की जा रही है।

दुनिया भर में इस समय परमाणु युद्ध का खतरा नए सिरे से बढ़ता जा रहा है। यूक्रेन-रूस युद्ध, मिडिल ईस्ट में तनाव और कई देशों द्वारा परमाणु शस्त्रागार को बढ़ाने की कोशिशें चिंता का विषय हैं। ऐसे में निहोन हिडानक्यो जैसी संस्थाओं का कार्य बहुत महत्वपूर्ण हो जाता है।

नोबेल शांति पुरस्कार 2024: शांति के लिए एक प्रेरणादायक कदम

नोबेल शांति पुरस्कार समिति ने निहोन हिडानक्यो को सम्मानित करते हुए यह साफ संदेश दिया है कि दुनिया को परमाणु हथियारों के खतरे से मुक्त करना अनिवार्य है। इस पुरस्कार के माध्यम से हिबाकुशा के संघर्ष और उनके द्वारा उठाई गई आवाज़ों को वैश्विक स्तर पर सराहा गया है।

2024 का नोबेल शांति पुरस्कार न केवल निहोन हिडानक्यो के लिए बल्कि पूरे विश्व के लिए एक प्रेरणादायक कदम है। इससे यह संदेश मिलता है कि शांति और सुरक्षा के लिए परमाणु हथियारों का उन्मूलन जरूरी है, और इसके लिए हमें हर स्तर पर कोशिशें जारी रखनी होंगी।

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