UP: लापरवाही में बर्खास्त हुए होम्योपैथी निदेशक अरविंद कुमार वर्मा, प्रशासन में मचा हड़कंप
UP में स्वास्थ्य व्यवस्थाओं को लेकर उठते सवालों के बीच एक बड़ा प्रशासनिक कदम देखने को मिला है। होम्योपैथी विभाग के निदेशक अरविंद कुमार वर्मा को लापरवाही के गंभीर आरोपों के चलते पद से हटा दिया गया है। शासन ने तत्काली प्रभाव से यह निर्णय लेते हुए वर्मा को गाजीपुर मेडिकल कॉलेज से संबद्ध कर दिया है, जहां वह निलंबन अवधि में रहेंगे। इस बर्खास्तगी ने चिकित्सा शिक्षा विभाग और स्वास्थ्य महकमे में हड़कंप मचा दिया है।
होम्योपैथी निदेशक पर लगे क्या थे आरोप?
अधिकारियों के अनुसार, निदेशक अरविंद कुमार वर्मा के खिलाफ कई स्तरों पर प्रशासनिक लापरवाही और कार्य में उदासीनता की शिकायतें लम्बे समय से लंबित थीं। कहा जा रहा है कि वर्मा द्वारा विभागीय बैठकों में उपस्थिति ना देना, फाइलों के निस्तारण में अत्यधिक विलंब, और नीतिगत योजनाओं के क्रियान्वयन में रुचि न दिखाना जैसे कृत्य उनके विरुद्ध कार्रवाई का आधार बने।
विभागीय सूत्रों की मानें तो हाल ही में हुई एक महत्वपूर्ण समीक्षा बैठक में जब वर्मा की अनुपस्थिति देखी गई और उनके कार्य निष्पादन की समीक्षा की गई, तब आला अधिकारियों ने इस पूरे मामले को गंभीरता से लिया। नतीजन शासन स्तर पर तत्काल कार्रवाई करते हुए उन्हें उनके पद से हटा दिया गया।
गाजीपुर मेडिकल कॉलेज में तैनाती – अस्थायी या दंडात्मक?
शासन द्वारा अरविंद कुमार वर्मा को गाजीपुर मेडिकल कॉलेज से संबद्ध किया गया है, लेकिन यह तैनाती केवल निलंबन अवधि के दौरान अस्थायी बताई जा रही है। हालांकि यह भी एक तरह से संकेत है कि शासन उनके कार्यकलापों से नाखुश है और यह स्थानांतरण उनके लिए दंडात्मक भी माना जा रहा है।
निदेशक पद पर अगला कौन? आईएएस या पीसीएस अफसर को मिल सकता है चार्ज
एक और रोचक बात यह सामने आ रही है कि होम्योपैथी विभाग में इस समय कोई भी प्रधानाचार्य इस पद के लिए उपयुक्त नहीं हैं। ऐसे में शासन विभागीय आईएएस या वरिष्ठ पीसीएस अधिकारी को निदेशक का कार्यभार सौंप सकता है। इससे यह स्पष्ट हो रहा है कि शासन अब चिकित्सा विभागों में प्रोफेशनलिज्म और जवाबदेही को सर्वोच्च प्राथमिकता देना चाहता है।
चिकित्सा शिक्षा विभाग पहले भी रहा विवादों में
गौरतलब है कि उत्तर प्रदेश का चिकित्सा शिक्षा विभाग पूर्व में भी ऐसे विवादों का गवाह बन चुका है। सरकारी कॉलेजों में फैकल्टी की कमी, इन्फ्रास्ट्रक्चर की खराब स्थिति, और समय पर पाठ्यक्रम पूरा न होना जैसे मुद्दों ने विभाग की साख को पहले भी नुकसान पहुंचाया है। अब जब निदेशक जैसे शीर्ष पद पर बैठे अधिकारी की लापरवाही सामने आई है, तो यह सवाल उठने लगे हैं कि क्या बाकी विभागों की भी जांच होनी चाहिए?
राजनीतिक हलकों में भी हलचल
अरविंद कुमार वर्मा की बर्खास्तगी की खबर राजनीतिक हलकों में भी चर्चा का विषय बन गई है। विपक्ष ने सरकार पर सवाल उठाते हुए पूछा है कि “जब इतनी लापरवाही वर्षों से चल रही थी, तब तक सरकार क्यों चुप थी?” समाजवादी पार्टी और कांग्रेस जैसे दलों ने इसे “सरकारी ढांचे की विफलता” बताया और कहा कि केवल बर्खास्तगी से काम नहीं चलेगा, पूरे विभाग की जांच जरूरी है।
स्वास्थ्य सेवाओं में जवाबदेही और पारदर्शिता की जरूरत
यह मामला एक बार फिर यह दिखाता है कि सरकारी पदों पर बैठे अधिकारी यदि अपने दायित्वों को ईमानदारी से न निभाएं, तो उसका खामियाजा सीधे आम जनता को भुगतना पड़ता है। स्वास्थ्य विभाग से जुड़ी लापरवाहियां न केवल सरकारी धन की बर्बादी हैं, बल्कि यह जन स्वास्थ्य के साथ भी खिलवाड़ है। ऐसे में जरूरी है कि सभी चिकित्सा विभागों में सख्त निगरानी तंत्र और पारदर्शिता सुनिश्चित की जाए।
होम्योपैथी छात्रों और चिकित्सकों में चिंता का माहौल
अरविंद कुमार वर्मा के हटाए जाने की खबर के बाद होम्योपैथी कॉलेजों और संस्थानों में चिंता का माहौल है। छात्र और फैकल्टी इस बात को लेकर चिंतित हैं कि निदेशक स्तर पर बदलाव से कहीं उनके कोर्स, परीक्षा या इंटर्नशिप प्रभावित न हो जाए। कई छात्रों ने सोशल मीडिया पर अपनी चिंता भी जताई है और सरकार से अपील की है कि स्थायित्व और पारदर्शिता के साथ नया निदेशक नियुक्त किया जाए।
लापरवाह अफसरों पर अब होगी सख्त कार्रवाई – स्वास्थ्य मंत्री का बयान
स्वास्थ्य मंत्री द्वारा दिए गए एक बयान में स्पष्ट किया गया है कि, “सरकार अब किसी भी स्तर की लापरवाही बर्दाश्त नहीं करेगी।” उन्होंने कहा कि अरविंद कुमार वर्मा के विरुद्ध कार्रवाई इसका संकेत है कि भविष्य में भी अगर कोई अधिकारी अपने कर्तव्यों से विमुख पाया गया, तो उसके खिलाफ सख्त कदम उठाए जाएंगे। उन्होंने यह भी जोड़ा कि शासन अब डिजिटल मॉनिटरिंग सिस्टम लागू करने की दिशा में भी तेजी से काम कर रहा है।

