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Delhi में प्रदूषण से बचने के लिए सरकार की Artificial Rain की योजना: क्या यह उपाय होगा प्रभावी?

Delhi में प्रदूषण के बढ़ते स्तर को नियंत्रित करने के लिए दिल्ली सरकार ने एक नई योजना की घोषणा की है, जिसके तहत कृत्रिम बारिश (Artificial Rain) की प्रक्रिया अपनाई जाएगी। इस योजना के तहत, सरकार प्रदूषण के स्तर को घटाने के लिए तकनीकी उपायों का सहारा लेगी, ताकि नागरिकों को वायु प्रदूषण और धुंए से होने वाली परेशानियों से राहत मिल सके।

दिल्ली के पर्यावरण मंत्री गोपाल राय ने केंद्रीय पर्यावरण मंत्री भूपेंद्र यादव को पत्र लिखकर कृत्रिम बारिश कराने की इस योजना पर चर्चा की है। उनका कहना है कि दिल्ली में प्रदूषण खतरनाक स्तर तक पहुंच चुका है, और इसे नियंत्रित करने के लिए कृत्रिम बारिश की आवश्यकता है।

गोपाल राय ने प्रदूषण के स्तर को ‘मेडिकल इमरजेंसी’ करार देते हुए कहा कि यह स्थिति अब सामान्य नहीं रही, और इसे नियंत्रित करने के लिए त्वरित और प्रभावी कदम उठाने की आवश्यकता है। हालांकि, इस कदम की सफलता को लेकर कई सवाल भी उठ रहे हैं, जैसे कि क्या यह तकनीक वाकई प्रभावी होगी, और प्रदूषण को लंबे समय तक नियंत्रित रखा जा सकेगा या नहीं।

क्या है Artificial Rain और कैसे होती है यह प्रक्रिया?

Artificial Rain एक वैज्ञानिक प्रक्रिया है, जिसे ‘क्लाउड सीडिंग’ (Cloud Seeding) कहा जाता है। इस प्रक्रिया में बादलों में एक रसायन जैसे सिल्वर आयोडाइड, ड्राई आइस या साधारण नमक का छिड़काव किया जाता है। यह काम विशेष विमानों, बैलून, रॉकेट या ड्रोन के जरिए किया जा सकता है। जब यह रसायन बादलों में मिल जाता है, तो वह पानी के कणों को इकट्ठा करके बारिश का रूप लेता है।

इसके लिए सबसे पहले सही प्रकार के बादल होने चाहिए, जिनमें पर्याप्त मात्रा में नमी और पानी हो। इसके अलावा, हवा की दिशा और गति का सही होना भी आवश्यक है, क्योंकि गलत हवा के कारण यह रसायन किसी और जगह बारिश करवा सकता है, जिससे दिल्ली में अपेक्षित परिणाम नहीं मिलेंगे।

क्या यह उपाय प्रदूषण से राहत दे सकता है?

Delhi सरकार द्वारा Artificial Rain की योजना को लेकर कुछ वैज्ञानिक और पर्यावरण विशेषज्ञों का मानना है कि यह प्रदूषण को कुछ दिन तक नियंत्रित कर सकती है, लेकिन यह प्रदूषण का स्थायी समाधान नहीं हो सकता। पिछले कुछ सालों में कृत्रिम बारिश के प्रयास किए गए हैं, लेकिन हर बार कुछ तकनीकी और मौसम संबंधित कारणों से यह योजना सफल नहीं हो सकी।

आईआईटी कानपुर द्वारा पिछले साल कृत्रिम बारिश की योजना तैयार की गई थी, लेकिन उस समय बादल और मौसम की स्थिति अनुकूल नहीं होने के कारण यह योजना पूरी नहीं हो सकी। इस बार, दिल्ली सरकार ने फिर से यह कदम उठाने का निर्णय लिया है। हालांकि, इसका सवाल यह भी उठता है कि क्या इस बार मौसम की स्थिति अनुकूल होगी और क्या यह प्रयास सफल हो पाएगा?

क्लाउड सीडिंग के परिणाम और जोखिम

कृत्रिम बारिश की प्रक्रिया में जो सबसे बड़ा जोखिम है, वह है गलत दिशा में बारिश होना। अगर हवा का रुख गलत दिशा में गया तो यह रसायन दिल्ली के बजाय आस-पास के जिलों जैसे मेरठ में बारिश करा सकता है, जिससे दिल्ली में प्रदूषण का स्तर तो नहीं घटेगा, लेकिन आसपास के क्षेत्रों में समस्याएं बढ़ सकती हैं।

इसके अलावा, वैज्ञानिकों का मानना है कि कृत्रिम बारिश से प्रदूषण में 4-10 दिन तक ही राहत मिल सकती है। फिर से प्रदूषण का स्तर बढ़ सकता है, खासकर जब मौसम में कोई बदलाव आता है। यह तकनीक केवल अस्थायी राहत दे सकती है, लेकिन वायु प्रदूषण को पूरी तरह से समाप्त करने का समाधान नहीं हो सकती।

कृत्रिम बारिश की प्रक्रिया को सफल बनाने के लिए वैज्ञानिकों ने इसके लिए कुछ विशेष स्थितियों का ध्यान रखा है। इसमें बादलों की नमी, हवा की दिशा और गति के साथ-साथ आसमान में कम से कम 40% बादल होना जरूरी है। अगर ये सभी शर्तें पूरी नहीं होतीं तो यह प्रयास असफल हो सकता है।

दिल्ली में कृत्रिम बारिश की लागत और लाभ

दिल्ली में कृत्रिम बारिश कराने की लागत करीब 10 से 15 लाख रुपये प्रति बार बताई जा रही है। यह राशि एक बार के प्रयास के लिए है, और अगर बारिश का प्रयास कई बार किया जाता है, तो यह खर्च बढ़ सकता है। हालांकि, दिल्ली में प्रदूषण का स्तर बहुत अधिक है, और ऐसे में यह खर्च कुछ हद तक उचित माना जा सकता है, ताकि प्रदूषण से राहत मिल सके।

इस तकनीक का उपयोग पूरी दुनिया में किया जा चुका है। अब तक 53 देशों ने कृत्रिम बारिश की प्रक्रिया को अपनाया है, और इसके जरिए प्रदूषण के स्तर को घटाने का प्रयास किया है। हालांकि, हर जगह यह प्रक्रिया सफल नहीं हो पाई है, और इसे लेकर कई विशेषज्ञों की राय मिली-जुली रही है।

क्या दिल्ली में कृत्रिम बारिश का प्रयास सफल होगा?

दिल्ली सरकार का कहना है कि वह प्रदूषण को नियंत्रित करने के लिए हर संभव प्रयास करेगी, और कृत्रिम बारिश एक कदम हो सकता है। हालांकि, इसके परिणाम को लेकर कोई गारंटी नहीं दी जा सकती है। मौसम की स्थिति, हवा की दिशा और बादलों की उपलब्धता के कारण यह प्रक्रिया कभी सफल हो सकती है तो कभी नहीं। इसके अलावा, यह अस्थायी उपाय है, और प्रदूषण को स्थायी रूप से खत्म करने के लिए और भी गंभीर कदम उठाने की आवश्यकता है।

इस प्रकार, दिल्ली सरकार द्वारा प्रदूषण से राहत पाने के लिए कृत्रिम बारिश की योजना एक दिलचस्प प्रयास है, लेकिन इसके सफलता की संभावना और दीर्घकालिक प्रभाव पर अभी भी कई सवाल बने हुए हैं। आने वाले दिनों में यह देखना होगा कि क्या यह प्रयास दिल्ली के प्रदूषण को नियंत्रित करने में प्रभावी साबित हो पाता है या नहीं।

 

कृत्रिम बारिश: प्रदूषण से राहत का एक नया उपाय

कृत्रिम बारिश एक वैज्ञानिक प्रक्रिया है, जिसे “क्लाउड सीडिंग” (Cloud Seeding) कहा जाता है। यह तकनीक बादलों में रसायनों को छिड़कने से बारिश उत्पन्न करती है। इस प्रक्रिया में आमतौर पर सिल्वर आयोडाइड, ड्राई आइस या साधारण नमक का उपयोग किया जाता है, जो बादलों के पानी को कणों में बदलकर बारिश का रूप लेते हैं। इसे छोटे विमानों, बैलून, रॉकेट या ड्रोन के माध्यम से किया जा सकता है।

दूसरे देशों से उदाहरण
कृत्रिम बारिश का इस्तेमाल दुनिया के कई देशों में किया गया है। उदाहरण के लिए, सऊदी अरब, चीन, और संयुक्त अरब अमीरात में भारी बारिश और सूखा नियंत्रण के लिए इस तकनीक का प्रयोग सफलतापूर्वक किया गया है। चीन ने बीजिंग के आस-पास कृत्रिम बारिश से प्रदूषण को नियंत्रित करने की कोशिश की थी, जबकि सऊदी अरब ने रेगिस्तानी इलाकों में पानी की कमी को दूर करने के लिए इसका उपयोग किया है।

सफलता दर और जोखिम
कृत्रिम बारिश की सफलता दर 60-70% के बीच हो सकती है, लेकिन इसका परिणाम मौसम की स्थिति पर निर्भर करता है। यदि बादल और हवा की स्थिति अनुकूल न हो तो यह प्रयास विफल हो सकता है। इसके अलावा, ज्यादा बारिश होने से बाढ़ जैसे खतरे भी पैदा हो सकते हैं, और अगर रसायन सही स्थान पर नहीं गिरते तो यह आस-पास के इलाकों में समस्याएं उत्पन्न कर सकता है।

कैसे काम करती है कृत्रिम बारिश?
कृत्रिम बारिश के लिए बादलों में रसायन छिड़का जाता है, जो बादलों में पानी के कणों को जोड़कर उन्हें भारी बना देता है। इससे बादल बारिश का रूप ले लेते हैं। यह प्रक्रिया खासकर तब उपयोगी होती है जब बादलों में पर्याप्त नमी होती है लेकिन वे बारिश करने के लिए तैयार नहीं होते।

कृत्रिम बारिश प्रदूषण के अस्थायी समाधान के रूप में उपयोगी हो सकती है, लेकिन यह प्रदूषण का स्थायी समाधान नहीं है। इसके बावजूद, यह तकनीक प्रदूषण नियंत्रित करने और सूखा राहत देने के लिए एक प्रभावी विकल्प साबित हो सकती है।

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