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नताशा नरवाल, देवांगना कालिता और जामिया छात्र आसिफ इकबाल तन्हा को जमानत

दिल्ली उच्च न्यायालय ने पिछले साल हुए उत्तर-पूर्व दिल्ली दंगे के एक मामले में जवाहरलाल नेहरु विश्वविद्यालय की छात्राओं नताशा नरवाल, देवांगना कालिता और जामिया मिल्लिया इस्लामिया के छात्र आसिफ इकबाल तन्हा को मंगलवार को जमानत दे दी। दिल्ली उच्च न्यायालय ने इस मामले की सुनवाई करते हुए कहा कि प्रदर्शन करना आतंकवाद नहीं हैं।

न्यायमूर्ति सिद्धार्थ मृदुल और न्यायमूर्ति एजे भंभानी की पीठ ने निचली अदालत के इन्हें जमानत ना देने के आदेश को खारिज करते हुए तीनों को नियमित जमानत दे दी। अदालत ने पिंजड़ा तोड़ कार्यकर्ताओं नताशा नरवाल, देवांगना कालिता और जामिया के छात्र आसिफ तन्हा को अपने-अपने पासपोर्ट जमा करने, गवाहों को प्रभावित न करने और सबूतों के साथ छेड़खानी न करने का निर्देश भी दिया।

अदालत ने 50-50 हजार रुपये के निजी मुचलके पर रिहा करने का निर्देश दिया। उच्च न्यायालय ने कहा कि तीनों आरोपी किसी भी गैर-कानूनी गतिविधियों में हिस्सा ना लें और रिकॉर्ड में दर्ज पते पर ही रहें।

हाईकोर्ट ने प्रदर्शन के अधिकारों के हनन पर चिंता जताई। जस्टिस सिद्धार्थ मृदुल और एजे भंभानी की पीठ ने जमानत देते हुए कहा कि हमें यह कहने के लिए मजबूर होना पड़ रहा है कि ऐसा लगता है कि सरकार विरोध प्रदर्शन को दबाने की चिंता में संवैधानिक अधिकारों के तहत दिए गए प्रदर्शन के अधिकार और आतंकवादी गतिविधियों में फर्क नहीं कर पा रही है। अगर ऐसी मानसिकता का दबदबा आने वाले दिनों में होगा तो तो यह लोकतंत्र के लिए एक दुखद दिन होगा।

जामिया के छात्र आसिफ तन्हा ने निचली अदालत के 26 अक्टूबर, 2020 के उसे आदेश को चुनौती दी थी, जिसमें अदालत ने यह कहते हुए उसकी जमानत याचिका खारिज कर दी थी कि आरोपी ने साजिश के तहत कथित रूप से दंगों में सक्रिय भूमिका निभाई थी और उसके खिलाफ पर्याप्त सबूत हैं।

वहीं नरवाल और कालिता ने निचली अदालत के 28 अक्टूबर के उस फैसले को चुनौती दी थी जिसमें अदालत ने यह कहते हुए उनकी याचिका को खारिज कर दिया था कि उनके खिलाफ लगे आरोप सही हैं और कहा था कि इस मामले में लगे आतंकवाद विरोधी कानून अधिनियम सही हैं।

उन्होंने दंगों से संबंधित गैरकानूनी गतिविधि (रोकथाम) अधिनियम (यूएपीए) के एक मामले में अपनी जमानत याचिका खारिज करने के निचली अदालत के आदेश को चुनौती देते हुए अपनी अपील दायर की थी।

इन लोगों को पिछले साल फरवरी में दंगों से जुड़े एक मामले में गैरकानूनी गतिविधियां (रोकथाम) कानून के तहत गिरफ्तार किया गया था। गौरतलब है कि 24 फरवरी 2020 को उत्तर-पूर्व दिल्ली में संशोधित नागरिकता कानून के समर्थकों और विरोधियों के बीच हिंसा भड़क गई थी

जिसने सांप्रदायिक टकराव का रूप ले लिया था। हिंसा में कम से कम 53 लोगों की मौत हो गई थी तथा करीब 200 लोग घायल हो गए थे। (From Online Sources)

 

News Desk

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