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Muzaffarnagar में कीटनाशकों पर प्रतिबंध: बासमती चावल के निर्यात को बढ़ावा देने के लिए महत्वपूर्ण कदम

मुजफ्फरनगर (Muzaffarnagar News): जिला कृषि रक्षा अधिकारी यतेन्द्र सिंह ने हाल ही में एक प्रेस विज्ञप्ति जारी की, जिसमें कीटनाशी अधिनियम 1968 की धारा 27 की उपधारा (1) के तहत प्रदत्त शक्तियों का उपयोग करते हुए उत्तर प्रदेश के 30 जिलों में कुछ विशिष्ट कीटनाशकों के प्रयोग, बिक्री, और वितरण पर 60 दिनों के लिए प्रतिबंध की घोषणा की गई है। यह प्रतिबंध बासमती चावल के गुणवत्ता मानकों को सुनिश्चित करने और उसके निर्यात को बढ़ावा देने के उद्देश्य से लागू किया गया है।

राज्य के जिन जिलों में यह प्रतिबंध लागू किया गया है उनमें प्रमुख रूप से आगरा, अलीगढ़, औरैया, बागपत, बरेली, बिजनौर, बदायूँ, बुलंदशहर, एटा, कासगंज, मथुरा, मेरठ, मुरादाबाद, मुजफ्फरनगर, सहारनपुर, और शाहजहांपुर जैसे जिले शामिल हैं। इन जिलों में प्रमुख कीटनाशक जैसे मेंट्राईसाइक्लाजोल, ब्यूप्लोजिन, एसीफेट, क्लोरोपाइरीफास, हेक्साकोनाजोल, प्रोपिकोनाजोल, थायोमेथाक्सान, प्रोफे नाफास, इमिडाक्लोप्रिड और कार्वेण्डाजिम पर रोक लगाई गई है।

कीटनाशकों के प्रभाव और उनके उपयोग पर प्रतिबंध का कारण

कीटनाशक, कृषि उत्पादन में उपयोग किए जाने वाले ऐसे रासायनिक तत्व होते हैं, जिनका उद्देश्य फसलों को कीटों से बचाना होता है। हालांकि, लंबे समय से इनके अत्यधिक उपयोग के कारण पर्यावरण और मानव स्वास्थ्य पर इसके नकारात्मक प्रभाव देखे गए हैं। बासमती चावल, जो भारत के प्रमुख निर्यात उत्पादों में से एक है, की गुणवत्ता पर भी इन कीटनाशकों के अवशेष नकारात्मक असर डाल सकते हैं।

इसलिए, बासमती चावल की उच्च गुणवत्ता को सुनिश्चित करने के लिए सरकार ने ऐसे कीटनाशकों पर प्रतिबंध लगाने का निर्णय लिया है। इन प्रतिबंधों का उद्देश्य बासमती चावल के निर्यात को बढ़ावा देना है, क्योंकि अंतर्राष्ट्रीय बाजार में रसायन रहित और जैविक उत्पादों की मांग तेजी से बढ़ रही है। कीटनाशकों के अवशेषों से मुक्त बासमती चावल न केवल स्वास्थ्यवर्धक होता है, बल्कि इससे फसल की गुणवत्ता भी बेहतर होती है, जिससे अंतर्राष्ट्रीय बाजार में भारतीय बासमती चावल की मांग बढ़ती है।

जिला कृषि अधिकारी की चेतावनी और निर्देश

जिला कृषि रक्षा अधिकारी यतेन्द्र सिंह ने स्पष्ट रूप से निर्देश दिया है कि जिले के सभी कीटनाशक विक्रेताओं को यह सुनिश्चित करना होगा कि वे प्रतिबंधित कीटनाशकों की बिक्री न करें। इसके अलावा, किसानों को भी निर्देशित किया गया है कि वे अपनी बासमती फसलों में इन कीटनाशकों का प्रयोग बंद करें।

यदि कोई विक्रेता या किसान इन प्रतिबंधों का उल्लंघन करते हुए पाया जाता है, तो उसके खिलाफ कड़ी कानूनी कार्यवाही की जाएगी। यह कार्यवाही कीटनाशी अधिनियम 1968 के तहत की जाएगी, जो कीटनाशकों के अनुचित उपयोग पर सख्त दंड का प्रावधान करता है।

वैकल्पिक समाधान और जैविक कीटनाशकों का प्रयोग

सरकार द्वारा जारी इस अधिसूचना में किसानों को विभिन्न जैविक और वैकल्पिक कीटनाशकों के उपयोग के लिए प्रोत्साहित किया गया है। जैविक कीटनाशकों का प्रयोग न केवल फसलों को सुरक्षित रखता है, बल्कि यह पर्यावरण के लिए भी अनुकूल है। इनमें प्रमुख रूप से नीम ऑइल, ट्राइकोडर्मा, ब्युवेरिया बेसियाना, स्यूडोमोनास, मैटाराइजियम, बीटी (बेसिलस थुरिन्जेन्सिस), और एनपीवी (न्यूक्लियो पॉलीहेड्रो वायरस) का नाम शामिल है।

इन जैविक कीटनाशकों का प्रयोग न केवल फसलों को कीटों से बचाने में मदद करता है, बल्कि यह कीटनाशक अवशेषों के बिना फसल उगाने में भी सहायक होता है, जिससे फसल की गुणवत्ता और उसकी बाजार में मांग दोनों बढ़ती हैं।

इसके अतिरिक्त, सरकार ने किसानों को वैकल्पिक उपायों जैसे कि लाइट ट्रैप, फेरोमोन ट्रैप, स्टिकी ट्रैप, और ट्राईकोकार्ड के उपयोग का सुझाव दिया है। ये सभी तकनीकें बिना रसायन के कीट नियंत्रण में सहायक होती हैं और पर्यावरण के लिए भी सुरक्षित हैं।

पेस्टीसाइड्स और उनके स्वास्थ्य पर नकारात्मक प्रभाव

पेस्टीसाइड्स के अत्यधिक और अनियंत्रित उपयोग से फसलों में इनके अवशेष रह जाते हैं, जो अंततः मानव स्वास्थ्य के लिए हानिकारक हो सकते हैं। कई शोधों में यह पाया गया है कि लंबे समय तक पेस्टीसाइड्स के अवशेषों से प्रभावित खाद्य पदार्थों का सेवन करने से कैंसर, हॉर्मोनल विकार, तंत्रिका तंत्र की समस्याएं, और अन्य गंभीर बीमारियों का खतरा बढ़ जाता है।

इसके अलावा, पेस्टीसाइड्स का अत्यधिक उपयोग मृदा की गुणवत्ता को भी खराब करता है। मृदा में इन रसायनों के अवशेष रह जाने से उसकी उपजाऊ क्षमता कम हो जाती है, जिससे दीर्घकाल में कृषि उत्पादन प्रभावित होता है।

बासमती चावल की विशेषता और इसकी मांग

बासमती चावल की खुशबू, लंबी और पतली दाने वाली संरचना इसे विश्वभर में खास बनाती है। भारतीय बासमती चावल की गुणवत्ता और उसकी प्राकृतिक सुगंध के कारण अंतर्राष्ट्रीय बाजार में इसकी भारी मांग है।

हालांकि, कीटनाशकों के अत्यधिक उपयोग के कारण बासमती चावल की गुणवत्ता पर असर पड़ता है, और इससे उसके निर्यात में गिरावट हो सकती है। इसलिए, सरकार द्वारा लागू किए गए यह प्रतिबंध आवश्यक और समयोचित हैं, ताकि भारतीय बासमती चावल की गुणवत्ता को संरक्षित किया जा सके और उसकी वैश्विक मांग को बनाए रखा जा सके।

कृषकों के लिए आवश्यक सुझाव

कृषकों को यह सलाह दी जाती है कि वे फसल कटाई के एक माह पूर्व से सभी प्रकार के रासायनिक कीटनाशकों का उपयोग बंद कर दें। इससे यह सुनिश्चित होगा कि फसल कटाई के समय चावल में कीटनाशकों के अवशेष नहीं रहेंगे, और इससे उसकी गुणवत्ता भी उच्चतम स्तर पर बनी रहेगी।

इसके अलावा, कृषकों को जैविक कृषि पद्धतियों की ओर बढ़ावा देने की आवश्यकता है, ताकि उनकी फसलें पर्यावरणीय रूप से अनुकूल हों और अंतर्राष्ट्रीय बाजार में उनकी स्वीकार्यता बढ़े।

बासमती चावल के निर्यात को बढ़ावा देने के उद्देश्य से कीटनाशकों पर प्रतिबंध लगाना एक महत्वपूर्ण और आवश्यक कदम है। इससे न केवल फसल की गुणवत्ता बढ़ेगी, बल्कि किसानों को भी अंतर्राष्ट्रीय बाजार में अपनी पैठ बढ़ाने का अवसर मिलेगा। जैविक कीटनाशकों और वैकल्पिक उपायों का प्रयोग फसल उत्पादन के लिए एक स्वस्थ और टिकाऊ तरीका है, जिससे पर्यावरण, मानव स्वास्थ्य और कृषि दोनों को लाभ होगा।

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