दिल्ली में कैग रिपोर्ट की अदायगी को लेकर विवाद, उपराज्यपाल ने मुख्यमंत्री Atishi को पत्र लिखा
दिल्ली में अगले साल होने वाले विधानसभा चुनाव से पहले राजनीति गरमाई हुई है। विशेष रूप से दिल्ली सरकार पर कैग (कंट्रोलर एंड ऑडिटर जनरल) रिपोर्ट को विधानसभा में पेश न करने के आरोप लग रहे हैं। इस मुद्दे को लेकर भाजपा और कांग्रेस ने दिल्ली सरकार पर कई बार सवाल उठाए हैं। विपक्ष का आरोप है कि Atishi सरकार अपने संवैधानिक कर्तव्यों से बचने के लिए कैग रिपोर्ट को विधानसभा के पटल पर नहीं रख रही है। यह आरोप और भी गंभीर हो जाता है जब उपराज्यपाल वीके सक्सेना ने मुख्यमंत्री आतिशी को एक पत्र लिखकर इस मुद्दे पर गंभीरता से ध्यान देने के लिए कहा।
उपराज्यपाल ने उठाया गंभीर मुद्दा
उपराज्यपाल वीके सक्सेना ने शुक्रवार को मुख्यमंत्री Atishi को पत्र लिखकर कहा कि सरकार की जवाबदेही तय करने के लिए कैग रिपोर्ट को विधानसभा में पेश करना संविधानिक दायित्व है। उन्होंने पत्र में स्पष्ट किया कि संविधान के अनुच्छेद 151, एनसीटी और दिल्ली एक्ट 1991 की धारा 48 और रेगुलेशन ऑन ऑडिट एंड अकाउंट 2007 के नियमों के तहत कैग रिपोर्ट को पेश करना आवश्यक है। उपराज्यपाल ने लिखा कि यह सरकार के लिए पारदर्शिता और जवाबदेही सुनिश्चित करने का एक महत्वपूर्ण पहलू है, जो जनता के विश्वास को बनाए रखने के लिए आवश्यक है।
पत्र में उल्लेखित किया गया कि कई बार कैग के दफ्तर से उपराज्यपाल कार्यालय को रिपोर्ट को विधानसभा में पेश करने के लिए पत्र मिल चुके हैं। लेकिन, दुर्भाग्यवश, दिल्ली सरकार इन रिपोर्ट्स को पेश करने में आनाकानी करती रही है। उपराज्यपाल का कहना है कि यह सरकार अपनी पारदर्शिता और जवाबदेही के दावे को साबित करने के लिए अपने कर्तव्यों से भाग रही है।
कैग रिपोर्ट्स की लंबित सूची
उपराज्यपाल के पत्र में यह भी बताया गया कि दिल्ली सरकार के विभिन्न विभागों से संबंधित कुल 12 कैग रिपोर्ट्स लंबित हैं। इन रिपोर्ट्स में वित्त, प्रदूषण नियंत्रण, शराब का विनियमन और आपूर्ति, सार्वजनिक उपक्रम, और सामाजिक एवं सामान्य क्षेत्रों के विभागों से संबंधित मुद्दे शामिल हैं। इनमें से कई रिपोर्ट्स तो वर्ष 2022 से लंबित हैं, जिससे यह स्पष्ट होता है कि सरकार ने अपनी जिम्मेदारियों को नजरअंदाज किया है।
विशेष रूप से, वर्ष 2017-18 से 2021-22 तक दिल्ली में शराब की खरीद-बिक्री से संबंधित ऑडिट रिपोर्ट को 4 मार्च 2024 को दिल्ली सरकार को भेजा गया था, लेकिन वह रिपोर्ट भी अब तक मुख्यमंत्री आतिशी के पास लंबित है। इस दौरान आतिशी वित्त मंत्री के पद पर थीं। यह बात भी महत्वपूर्ण है कि दिल्ली की आबकारी नीति में भ्रष्टाचार के आरोप लगने के बाद ही सरकार ने इसे वापस लिया था। इस मामले में दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल और उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया को जेल भी जाना पड़ा था।
विपक्षी पार्टियों के आरोप और सरकार का बचाव
भाजपा और कांग्रेस दोनों ही पार्टियां इस मुद्दे पर सरकार की आलोचना कर रही हैं। भाजपा ने कहा कि सरकार अपने गहरे भ्रष्टाचार को छुपाने के लिए कैग रिपोर्ट्स को विधानसभा में पेश नहीं कर रही है। पार्टी ने यह भी आरोप लगाया कि मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल और उनकी टीम, जो पहले हमेशा पारदर्शिता और जवाबदेही की बात करती थी, अब उन पर खरा उतरने में विफल रही है।
कांग्रेस ने भी इस मामले में सरकार पर हमला बोलते हुए कहा कि यह सरकार अब अपनी विश्वसनीयता खो चुकी है। कांग्रेस ने मांग की कि मुख्यमंत्री आतिशी को जनता के विश्वास को पुनः स्थापित करने के लिए जल्दी से जल्दी इन रिपोर्ट्स को विधानसभा के पटल पर रखना चाहिए।
कैग रिपोर्ट्स का महत्व
कैग रिपोर्ट्स, जो कि सरकार की वित्तीय गतिविधियों और प्रशासनिक निर्णयों की समीक्षा करती हैं, पारदर्शिता और जवाबदेही के लिए महत्वपूर्ण मानी जाती हैं। इन रिपोर्ट्स के जरिए यह समझने में मदद मिलती है कि सरकारी धन का उपयोग किस प्रकार किया जा रहा है, और क्या वह कानून और नियमों के अनुसार हो रहा है या नहीं।
सरकार का अपनी वित्तीय गतिविधियों को सार्वजनिक रूप से प्रस्तुत करना संविधानिक दायित्व है। जब सरकार इन रिपोर्ट्स को विधानसभा में पेश नहीं करती, तो यह एक गंभीर मुद्दा बन जाता है, क्योंकि इससे आम जनता में असंतोष और अविश्वास पैदा हो सकता है।
क्या होगा आगे?
अब सवाल यह उठता है कि क्या दिल्ली सरकार उपराज्यपाल द्वारा दिए गए निर्देशों का पालन करेगी और कैग रिपोर्ट्स को विधानसभा में पेश करेगी? या फिर सरकार इस विवाद को बढ़ाने के लिए किसी अन्य रणनीति का सहारा लेगी?
विधानसभा चुनाव 2025 की कगार पर हैं और ऐसे में यह मुद्दा चुनावी माहौल को और गरमा सकता है। यदि सरकार इस मुद्दे पर पारदर्शिता नहीं दिखाती, तो विपक्ष इसका उपयोग अपनी राजनीतिक धार को मजबूत करने के लिए कर सकता है।
जनता की राय
दिल्ली की जनता इस मामले को लेकर मिश्रित प्रतिक्रियाएं दे रही है। एक ओर जहां कुछ लोग सरकार के बचाव में हैं और मानते हैं कि रिपोर्ट्स को पेश करने में कोई बुराई नहीं है, वहीं दूसरी ओर कई लोग इस मामले में सरकार की खिंचाई कर रहे हैं और इसे पारदर्शिता के मूल सिद्धांतों की अवहेलना मानते हैं।
दिल्ली सरकार के लिए यह एक गंभीर चुनौती है। कैग रिपोर्ट्स को पेश करने के लिए उपराज्यपाल द्वारा दिए गए निर्देश और विपक्ष के आरोप सरकार के लिए गंभीर स्थिति उत्पन्न कर सकते हैं। आगामी चुनावों के मद्देनजर यह मुद्दा और भी महत्वपूर्ण हो जाता है। अब देखना यह है कि मुख्यमंत्री आतिशी और उनकी टीम इस मामले में क्या कदम उठाते हैं और क्या वे अपने संवैधानिक दायित्वों को निभाते हुए जनता के विश्वास को बनाए रख सकते हैं।