🔴 India-China Border Dispute: चार साल बाद देपसांग और डेमचोक से सैनिकों की वापसी, क्या रिश्तों में आएगी गर्माहट?
चार साल से जारी India-China Border Dispute में अब बड़ी प्रगति देखने को मिली है। पूर्वी लद्दाख के देपसांग और डेमचोक इलाकों से दोनों देशों की सेनाओं ने पूरी तरह से वापसी कर ली है। इस फैसले से संकेत मिल रहा है कि दोनों देश तनाव कम करने और संबंधों को पटरी पर लाने की दिशा में आगे बढ़ रहे हैं। लेकिन बड़ा सवाल यह है कि क्या चीन पर भरोसा किया जा सकता है? क्या यह सैन्य वापसी स्थायी शांति की ओर इशारा करती है, या फिर यह चीन की नई रणनीति का हिस्सा है?
चार साल बाद हलचल क्यों?
पूर्वी लद्दाख में 2020 से जारी सैन्य गतिरोध के कारण भारत और चीन के रिश्ते तनावपूर्ण बने हुए थे। गलवान घाटी में हुई हिंसक झड़प के बाद दोनों देशों ने सीमा पर सैनिकों की तैनाती बढ़ा दी थी। हालांकि, अब लगभग चार वर्षों के बाद देपसांग और डेमचोक इलाकों से सेना की वापसी पूरी हो गई है।
चीन के रक्षा मंत्रालय के प्रवक्ता, वरिष्ठ कर्नल वु कियान ने गुरुवार को जानकारी दी कि “भारत और चीन के बीच सीमा विवाद को समाप्त करने के लिए उठाए गए कदम प्रभावी ढंग से लागू किए जा रहे हैं। हम भारत के साथ मिलकर सीमावर्ती क्षेत्रों में शांति बनाए रखने के लिए प्रतिबद्ध हैं।”
क्या हुआ था देपसांग और डेमचोक में?
- देपसांग क्षेत्र भारत के लिए बेहद रणनीतिक रूप से अहम है क्योंकि यह दौलत बेग ओल्डी हवाई पट्टी के पास स्थित है, जहां भारतीय सेना की गतिविधियां महत्वपूर्ण हैं।
- डेमचोक इलाका हमेशा से विवादित रहा है, जहां चीन लगातार अतिक्रमण करने की कोशिश करता रहा है।
इन दोनों इलाकों में चीन की सेना (PLA) ने 2020 में घुसपैठ की थी, जिससे भारत को कड़ा रुख अपनाना पड़ा। अब इस इलाके से सैनिकों की वापसी से संकेत मिल रहे हैं कि भारत की कूटनीतिक और सैन्य दृढ़ता ने चीन को झुकने पर मजबूर कर दिया।
भारत की सख्त रणनीति से झुका चीन?
भारत ने पहले ही साफ कर दिया था कि जब तक सीमा पर पूरी तरह से शांति नहीं होगी, तब तक द्विपक्षीय संबंधों में सुधार संभव नहीं है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग की 23 अक्टूबर को रूस के कज़ान में हुई बैठक में भी भारत ने यह संदेश स्पष्ट रूप से दिया था।
इसके अलावा, राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार (NSA) अजीत डोभाल और चीन के विदेश मंत्री वांग यी के बीच 18 दिसंबर को बीजिंग में हुई बैठक में भी भारत ने यह स्पष्ट किया कि LAC पर यथास्थिति बहाल किए बिना कोई संबंध सामान्य नहीं होंगे।
चीन पर भरोसा करना सही?
इतिहास गवाह है कि चीन अक्सर समझौतों का उल्लंघन करता रहा है। चाहे 1962 का युद्ध हो या 2017 का डोकलाम विवाद, चीन ने हमेशा ‘दो कदम आगे, एक कदम पीछे’ की नीति अपनाई है। इसलिए भारत इस बार पूरी सतर्कता बरत रहा है।
- विशेषज्ञों का मानना है कि चीन ने सैनिकों की वापसी केवल कूटनीतिक दबाव के कारण की है, लेकिन यह पूरी तरह से भरोसेमंद नहीं हो सकता।
- चीनी सेना कई बार पहले भी पीछे हटने के बाद अचानक घुसपैठ कर चुकी है।
- चीन की रणनीति अक्सर ‘टाइम गेन’ करने की रही है, यानी वह एक ओर वार्ता करता है और दूसरी ओर अपनी सैन्य स्थिति मजबूत करता है।
भारत ने क्या कदम उठाए?
- भारत ने LAC पर बुनियादी ढांचे को तेजी से विकसित किया।
- पूर्वी लद्दाख में सड़क, पुल और हवाई पट्टी का निर्माण किया गया।
- सेना की तैनाती स्थायी रूप से मजबूत की गई।
- चीन पर आर्थिक दबाव डालते हुए चीनी ऐप्स बैन किए गए और चीनी निवेश पर निगरानी बढ़ाई गई।
क्या भारत-चीन रिश्तों में सुधार होगा?
हालांकि, दोनों देशों के बीच हाल के महीनों में राजनयिक और सैन्य स्तर पर वार्ताओं में तेजी आई है, लेकिन भारत की स्थिति स्पष्ट है – सीमा पर पूरी शांति के बिना कोई रिश्ते सामान्य नहीं हो सकते।
26 जनवरी को विदेश सचिव विक्रम मिस्री ने बीजिंग की यात्रा कर चीन के उप विदेश मंत्री सुन वेइदोंग से मुलाकात की। यह यात्रा संकेत देती है कि वार्ता का सिलसिला जारी रहेगा, लेकिन भारत सतर्क रहेगा।
क्या आगे फिर तनाव बढ़ सकता है?
विशेषज्ञों की मानें, तो चीन की नीयत पर हमेशा संदेह रहता है।
- PLA पहले भी कई बार शांति वार्ता के बाद LAC पर आक्रामक कदम उठा चुका है।
- अरुणाचल प्रदेश में चीन लगातार विवादित बयान देता रहता है।
- चीन ताइवान मुद्दे पर भी आक्रामक होता जा रहा है, जिससे संकेत मिलते हैं कि वह नई रणनीति पर काम कर सकता है।
निष्कर्ष: क्या भारत को सतर्क रहने की जरूरत है?
बेशक, सैनिकों की वापसी एक सकारात्मक कदम है, लेकिन चीन के इतिहास को देखते हुए भारत को सतर्क रहने की जरूरत है। प्रधानमंत्री मोदी और राष्ट्रीय सुरक्षा तंत्र ने स्पष्ट कर दिया है कि सीमा विवाद हल होने तक चीन से कोई ‘नॉर्मल’ रिश्ते संभव नहीं।
आगे क्या होगा?
- भारत अपनी सैन्य स्थिति मजबूत बनाए रखेगा।
- LAC पर सतर्कता और निगरानी जारी रहेगी।
- आर्थिक और तकनीकी क्षेत्र में चीन पर निर्भरता कम करने की नीति जारी रहेगी।
नजरें 2025 की रणनीति पर
भारत अब 2025 तक अपनी सीमाओं को और मजबूत करने की रणनीति बना रहा है। आने वाले समय में चीन पर निर्भरता कम करने, सीमा पर निगरानी बढ़ाने और आत्मनिर्भर रक्षा क्षेत्र को मजबूत करने पर भारत का पूरा ध्यान रहेगा।
क्या चीन इस बार अपनी बात पर कायम रहेगा, या फिर कोई नई चाल चलेगा? यह देखना दिलचस्प होगा।
🔥 भारत और चीन के बीच यह नया समीकरण कहां तक जाएगा? हमें आपकी राय कमेंट में बताएं! 🔥