वैश्विक

Dublin में भारतीय पर बर्बर नस्लीय हमला: संतोष यादव की टूटी गाल की हड्डी, भारतीय समुदाय में आक्रोश

Dublin (आयरलैंड) – एक बार फिर विदेश में भारतीय मूल के नागरिक को नस्लीय नफरत का शिकार बनना पड़ा है। आयरलैंड की राजधानी डबलिन से एक बेहद दर्दनाक और चिंताजनक मामला सामने आया है, जहां भारतीय मूल के 33 वर्षीय संतोष यादव पर किशोरों के एक हिंसक गिरोह ने जानलेवा हमला किया। इस हमले में संतोष की गाल की हड्डी टूट गई और उन्हें गंभीर रूप से अस्पताल में भर्ती कराना पड़ा।

डिनर के बाद टहलते वक्त हुआ हमला, सोशल मीडिया पर सुनाई आपबीती

संतोष यादव ने इस भयावह हमले की जानकारी खुद सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म लिंक्डइन के जरिए दी। उन्होंने अपने चेहरे की खून से लथपथ तस्वीर शेयर करते हुए बताया कि घटना उस वक्त घटी जब वह डिनर के बाद अपने अपार्टमेंट के पास हल्की सैर कर रहे थे।

उन्होंने लिखा, “रात का खाना खाने के बाद मैं जैसे ही अपार्टमेंट से बाहर निकला, तभी 6 टीनएज लड़कों का एक झुंड पीछे से मुझ पर टूट पड़ा। उन्होंने मेरा चश्मा छीनकर तोड़ दिया और फिर मुझे सिर, चेहरा, गर्दन, छाती और पैरों पर इतनी बेरहमी से पीटा कि मैं फुटपाथ पर गिर पड़ा। मैं खून में सना हुआ था।”

चोट इतनी गंभीर कि अस्पताल में भर्ती, गाल की हड्डी टूटी

संतोष यादव ने आगे लिखा, “किसी तरह से मैंने हिम्मत जुटाकर इमरजेंसी कॉल की और एम्बुलेंस मुझे ब्लैंचर्डस्टाउन अस्पताल ले गई। वहां मेडिकल जांच में पुष्टि हुई कि मेरी गाल की हड्डी टूट गई है और अब मुझे विशेष सर्जिकल केयर के लिए रेफर किया गया है।”

डबलिन में नस्लीय हिंसा का बढ़ता ग्राफ: सरकार पर उठे सवाल

इस दुखद घटना के बाद संतोष ने जो बातें कही हैं, वो बेहद चिंताजनक संकेत देती हैं। उन्होंने लिखा, “यह कोई पहली घटना नहीं है। डबलिन में भारतीयों, एशियाई मूल के लोगों और अन्य अल्पसंख्यकों पर लगातार हमले हो रहे हैं। ये हमले बसों में, सार्वजनिक स्थलों पर और आवासीय इलाकों में हो रहे हैं। लेकिन सबसे दुखद बात ये है कि सरकार और पुलिस प्रशासन चुप्पी साधे बैठे हैं। हमलावर खुलेआम घूमते हैं, और किसी डर के बिना दोबारा हमला करते हैं।”

उन्होंने लिखा, “हमें भी सुरक्षित जीवन जीने का अधिकार है। सड़कों पर बिना डर के चलने का अधिकार हर नागरिक का है, लेकिन हमारी सुरक्षा के सवाल पर कोई जवाबदेही नहीं है।”

विदेश में भारतीयों पर बढ़ते हमलों की एक और कड़ी

इस घटना ने हाल ही में मेलबर्न (ऑस्ट्रेलिया) में घटी एक और घटना की याद दिला दी, जहां 19 जुलाई को सौरभ आनंद नामक भारतीय युवक पर पांच किशोरों ने धारदार हथियार से हमला किया था। सौरभ पर तब हमला हुआ जब वह सेंट्रल स्क्वायर शॉपिंग सेंटर से दवाइयां खरीदकर लौट रहे थे। गनीमत रही कि राहगीरों ने समय रहते मदद की और इमरजेंसी सेवा को बुलाकर उनकी जान बचाई जा सकी।

आयरलैंड में बढ़ता डर: प्रवासी समुदाय में असुरक्षा की भावना

डबलिन जैसे आधुनिक शहर में ऐसी घटनाएं लगातार यह इशारा कर रही हैं कि नस्लीय नफरत की जड़ें कितनी गहरी हैं। स्थानीय प्रशासन द्वारा कोई ठोस कार्रवाई न होने के चलते अल्पसंख्यकों, खासकर भारतीयों के मन में असुरक्षा और डर का माहौल पनपता जा रहा है।

हाल के महीनों में डबलिन के अलग-अलग हिस्सों से ऐसी खबरें आ चुकी हैं जहां भारतीय छात्रों, प्रोफेशनल्स और परिवारों को सार्वजनिक स्थानों पर निशाना बनाया गया है। मेट्रो, ट्राम, बस या सड़क – कहीं भी सुरक्षित नहीं महसूस किया जा रहा।

प्रवासी भारतीयों की मांग – ठोस एक्शन, दिखावटी बयान नहीं

संतोष यादव की आपबीती ने हजारों भारतीयों को झकझोर दिया है। प्रवासी भारतीय समुदाय अब यह सवाल उठा रहा है कि क्या विदेशों में हमारी जिंदगी इतनी सस्ती है कि कोई भी आकर मार-पीट कर चला जाए और सरकारें केवल सांत्वना के शब्दों में जवाब दें?

भारत सरकार से भी अब यह मांग तेज हो रही है कि वह विदेशों में रहने वाले नागरिकों की सुरक्षा को लेकर कूटनीतिक स्तर पर दबाव बनाए और आयरलैंड सरकार से तत्काल कार्रवाई की मांग करे।

नस्लीय हिंसा के शिकार संतोष का साहस, पर क्या यह काफी है?

संतोष यादव ने जिस बहादुरी से यह बात सार्वजनिक की, वह काबिल-ए-तारीफ है। लेकिन क्या ऐसी एकजुट आवाजें उन सरकारों की नींद तोड़ पाएंगी जो अपने नागरिकों की सुरक्षा की जिम्मेदारी उठाने में विफल हैं?

डबलिन पुलिस प्रशासन और सरकार की चुप्पी पर अब कई सवाल उठने लगे हैं। क्या अपराधियों को राजनीतिक संरक्षण मिला हुआ है? क्या नस्लीय हिंसा को लेकर वहां कोई सख्त कानून नहीं है या फिर उसे लागू करने की इच्छाशक्ति नहीं है?

इन सभी सवालों का जवाब वहां की सरकार को देना ही होगा, क्योंकि एक-एक ऐसी घटना भारत समेत पूरे विश्व के करोड़ों प्रवासी नागरिकों के मन में डर और आक्रोश भर रही है।

क्या भारतीय नागरिकों के लिए सुरक्षित नहीं है विदेश?

हर साल लाखों भारतीय छात्र, प्रोफेशनल्स और टूरिस्ट विदेशों का रुख करते हैं। लेकिन जब बार-बार ऐसी घटनाएं सामने आती हैं, तो यह सवाल उठना लाजिमी है – क्या हमारी सुरक्षा की गारंटी सिर्फ पासपोर्ट या वीजा से पूरी हो जाती है?

डबलिन जैसी राजधानी में खुलेआम हमला और प्रशासन की चुप्पी से यह साफ हो चुका है कि अब समय आ गया है जब भारतीय सरकार, प्रवासी भारतीय संगठन और अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार मंच इस गंभीर मुद्दे को प्राथमिकता दें।

सरकार, कूटनीति और समाज – सबकी जिम्मेदारी है

एक सभ्य समाज में किसी व्यक्ति को उसकी त्वचा के रंग, जातीय पहचान या राष्ट्रीयता के आधार पर हिंसा का शिकार नहीं होना चाहिए। यह केवल एक व्यक्ति पर हमला नहीं, पूरी मानवता पर हमला है। और इस लड़ाई में हमें न सिर्फ आवाज उठानी है, बल्कि दबाव बनाना होगा कि सरकारें केवल बयानबाज़ी से आगे बढ़ें और ठोस कदम उठाएं।


डबलिन में हुए इस नस्लीय हमले ने एक बार फिर साबित कर दिया है कि विदेशों में भारतीयों की सुरक्षा केवल कागज़ों पर है। जब तक अपराधियों को सजा नहीं मिलती और सरकारें अपनी जिम्मेदारी नहीं निभातीं, तब तक संतोष यादव जैसे निर्दोष लोग ऐसे हमलों का शिकार होते रहेंगे। अब वक्त है कि हम खामोश न रहें, बल्कि आवाज़ बुलंद करें – ताकि हर भारतीय नागरिक, चाहे वह कहीं भी हो, खुद को सुरक्षित महसूस कर सके।

 

News-Desk

News Desk एक समर्पित टीम है, जिसका उद्देश्य उन खबरों को सामने लाना है जो मुख्यधारा के मीडिया में अक्सर नजरअंदाज हो जाती हैं। हम निष्पक्षता, सटीकता, और पारदर्शिता के साथ समाचारों को प्रस्तुत करते हैं, ताकि पाठकों को हर महत्वपूर्ण विषय पर सटीक जानकारी मिल सके। आपके विश्वास के साथ, हम खबरों को बिना किसी पूर्वाग्रह के आप तक पहुँचाने के लिए प्रतिबद्ध हैं। किसी भी सवाल या जानकारी के लिए, हमें संपर्क करें: [email protected]

News-Desk has 19661 posts and counting. See all posts by News-Desk

Avatar Of News-Desk

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

three × 4 =