Religious

अनंत चतुर्दशी

पूरे दस दिनों तक चले गणेशोत्सव के बाद  भाद्रपद माह के शुक्लपक्ष के चतुर्दशी को भगवान गणेश की विदाई की जाती है और इसी दिन अनंत चतुर्दशी का व्रत भी मनाया जाता है. इस दिन अनंत भगवान जी की पूजा की जाती है. ऐसी मान्यता है कि अनंत भगवान की पूजा करने के बाद संकटों से सबकी रक्षा करने वाला अनंतसूत्र भी बांधा जाता है, इससे सभी कष्टों का निवारण होता है| अनंत चतुर्दशी या अनंत चौदस जैन धर्मावलंबियों के लिए सबसे पवित्र तिथि है| यह मुख्य जैन त्यौहार, पर्यूषण पर्व का आख़री दिन होता है। अग्नि पुराण के अनुसार व्रत करनेवाले को एक सेर आटे की मालपुआ अथवा पूड़ी बनाकर पूजा करनी चाहिये तथा उसमें से आधी ब्राह्मण को दान दे दें और शेष को प्रसाद के रूप में बंधु-बाँधवों के साथ ग्रहण करें । इस व्रत में नमक का उपयोग निषेध बताया गया है । ऐसी मान्यता है कि यदि किसी व्यक्ति को अनंत रास्ते में पड़ा मिल जाये तो उसे भगवान की इच्छा समझ कर, अनंत व्रत तथा पूजन करना चाहिये ।
यह व्रत पुरुषों और स्त्रियों के समस्त पापों को नष्ट करने वाला माना गया है । इस व्रत के प्रभाव से ही पाण्डवों ने अपने भाईयों सहित महाभारत का युद्ध जीत अपना खोया हुआ साम्राज्य तथा मान सम्मान पाया ।

पहली बार अनंत पूजा
यह माना जाता है की जब महाभारत में पाण्डव अपना सारा राज-पाट जुवे में हारकर वनवास के दौरान में कष्टदायक जीवन व्यतीत कर रहे थे, तब भगवान श्रीकृष्ण ने पाण्डवों को अनंत चतुर्दशी का व्रत करने को कहा था| तब धर्मराज युधिष्ठिर ने अपने सभी  भाइयों एवं द्रौपदी के साथ पूरे विधि-विधान के साथ अनंत चतुर्दशी का व्रत किया. कहा जाता है की इस अनंत चतुर्दशी का व्रत करने का बाद  पाण्डव पुत्र एवं द्रौपदी सभी संकटो से मुक्त हो गए.

कैसे करें  व्रत
इस व्रत को करने वाले को सुबह स्नान करने के बाद व्रत करने का संकल्प करें. शास्त्रों में कहा गया है की व्रत का संकल्प और पूजन किसी पवित्र नदी या फिर तलाब के तट पर ही करना चाहिए. यदि ये संभव न हो सके तो फिर घर में भी कलश स्थापित कर सकते है. कलश पर शेषनाग के ऊपर लेटे भगवान विष्णु जी की मूर्ति या फोटो स्थापित कर सकते हैं|भगवन श्री विष्णु जी के सामने चौदह गांठों वाला अनंत सूत्र (डोरा) को एक जल पत्र खीरा से लप्पेट कर ऐसे घुमाएं. कहते हैं की इसी तरह समुद्र मंथन किया गया था, जिससे अनंत भगवान मिले थे|मंथन के बाद ॐ अनंतायनम: मंत्र से भगवान विष्णु और अनंत सूत्र की पूरी विधि से पूजा करें. पूजा के बाद अनंत सूत्र को मंत्र पढ़ने के बाद पुरुष अपने दाहिने हाथ में और स्त्री बाएं हाथ में बांध लें.

अनंत सूत्र  मंत्र
अनंन्त सागर महासमुद्रे मग्नान्समभ्युद्धर वासुदेव.
अनंत रूपे विनियोजितात्माह्यनन्त रूपायनमोनमस्ते.

अनंतसूत्र बांध के बाद ब्राह्मणों को नैवेद्य (भोग) में निवेदित पकवान देने के बाद ही स्वयं सपरिवार प्रसाद ग्रहण करें |  पूजा के बाद व्रत की कथा को  पढें या फिर सुनें|इस पूजा में यमुना (नदी ), शेष (नाग ) तथा अनंत ( श्री हरि ) की पूजा की जाती है । इस में कलश को यमुना के प्रतीक के रूप में, दूर्बा को शेष का प्रतीक तथा 14 गांठों वाले अनंत धागे को भगवान श्री हरि के प्रतीक के रूप में पूजा की जाती है । इस में फूल, पत्ती, नैवैद्य सभी सामग्री को 14 के गुणक के रूप में उपयोग किया जाता है ।

ऐसा कहा जाता है कि यदि यह व्रत 14 वर्षों तक किया जाए, तो व्रती विष्णु लोक की प्राप्ति करता है।

सामग्री
पत्ते – 14 प्रकार के वृक्षों के
कलश (मिट्टी का )- एक        कलश पात्र (मिट्टी का )- एक    दूर्बा    चावल – 250ग्राम         कपूर- एक पैकेट        धूप – एक पैकेट       पुष्पों की माला – चार      फल – सामर्थ्यानुसार         पुष्प (14 प्रकार के)        अंग वस्त्र –एक
नैवैद्य( मालपुआ )                  मिष्ठान्न – सामर्थ्यानुसार          अनंत सूत्र ( 14 गाँठों वाले ) – नये         अनंत सूत्र ( 14 गाँठों वाले ) – पुराने        यज्ञोपवीत( जनेऊ) – एक जोड़ा          वस्त्र         तुलसी दल              पान- पाँच       सुपारी- पाँच
लौंग – एक पैकेट                   इलायची – एक पैकेट              पंचामृत(दूध,दही,घृत,शहद,शक्कर)       शेषनाग पर लेटे हुए श्री हरि की मूर्ति अथवा तस्वीर       आसन ( कम्बल )

 व्रत कथा
एक समय की बात हे कौण्डिन्य मुनि की दृष्टि अपनी पत्नी के बाएं हाथ में बंधे अनंत सूत्र पर पड़ी, हाथ में बधे अनंत सूत्र को देखकर वह आश्चर्चकित हो गए और उन्होंने अपनी पत्नी से पूछा-क्या तुमने मुझे अपने वश में करने हेतु यह सूत्र बांधा है? उनकी पत्नी ने विनम्रतापूर्वक कौण्डिन्य मुनि को उत्तर दिया जी नहीं, यह भगवन अनंत का पवित्र सूत्र है|कौण्डिन्य मुनि को लगा की उनकी पत्नी झूठ बोल रही है और कौण्डिन्य मुनि ने अनंतसूत्र को वशी में करने वाला डोरा समझकर तोड़ दिया और अनंतसूत्र को आग में डालकर नष्ट कर दिया. इसका परिणाम भी शीघ्र ही कौण्डिन्य मुनि के सामने आ गया. उनकी सारी धन और संपत्ति नष्ट हो गई. बुरी स्थिति में जीवन-व्यतीत करने लगे|कौण्डिन्य मुनि को जब समझ में आया तो उन्होंने प्रायश्चित करने की ठान ली. कौण्डिन्य मुनि भगवान अनंत से क्षमा मांगने के लिए वन में चले गए. मुनि को रास्ते में जो भी मिलता वे उससे अनंतदेव का पता पूछते हुए जा रहे थे|कौण्डिन्य मुनि के बहुत खोजने पर भी जब अनंत भगवान का दर्शन नहीं हुआ, तब कौण्डिन्य मुनि ने निराश होकर प्राण त्यागने की ठान ली. तभी एक ब्राह्मण ने कौण्डिन्य मुनि को रोक दिया और पूछा आखिर आत्महत्या क्यों कर रहे हो और फिर एक गुफा में ले जाकर चतुर्भुज अनंत देव के दर्शन कराया|भगवान ने कौण्डिन्य मुनि से कहा की तुमने जो अनंतसूत्र का अपमान किया था, यह सब उसी अपमान का फल है. इसका प्रायश्चित करने का लिए  तुम चौदह वर्ष तक निरंतर अनंत-व्रत का पालन करो. इस व्रत को करने के बाद तुम्हारी नष्ट हुई सम्पत्ति तुम्हें फिर से प्राप्त हो जाएगी और तुम फिर से सुखी जीवन बिता सकोगे|भगवान ने कहा की जीव अपने पूर्ववत् दुष्कर्मों का फल ही दुर्गति के रूप में हमेशा भोगता है. कौण्डिन्य मुनि ने इस आज्ञा को मान लिया. अनंत-व्रत को करने से पाप नष्ट हो जाते हैं और मनुष्य के जीवन में सुख-शांति प्राप्त होती है. कौण्डिन्य मुनि ने चौदह वर्ष तक अनंत-व्रत करके खोई हुई समृद्धि को पुन:प्राप्त कर लिया.

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