वैश्विक

परमाणु जंग के मुहाने पर अमेरिका-ईरान! Muscat में ‘गुप्त डील’, ओमान बना जासूसी पुल

Muscat/तेहरान/वॉशिंगटन: पश्चिम एशिया की कूटनीतिक जमीन एक बार फिर गर्म हो गई है। एक तरफ अमेरिका का परमाणु ‘हथौड़ा’, दूसरी तरफ ईरान की ‘परमाणु आत्मनिर्भरता’ – और इन दोनों के बीच खामोशी से खड़ा है ओमान, जो बिना शोर किए एक बार फिर इतिहास रचने की तैयारी में है।

शनिवार को ओमान की राजधानी मस्कट में जो कुछ हुआ, वह जितना शांत था, उतना ही विस्फोटक भी। ईरान और अमेरिका के प्रतिनिधि एक ही शहर में, लेकिन अलग-अलग कमरों में। बातचीत सीधी नहीं थी – ‘अप्रत्यक्ष’ थी, लेकिन उसका असर सीधे वैश्विक राजनीति पर पड़ने वाला है।

🤝 खामोश मध्यस्थता: ओमान की भूमिका एक ‘सीक्रेट ब्रिज’

ओमान के विदेश मंत्री बद्र अल-बुसैदी इन दोनों ताकतवर देशों के बीच गुप्त संवाद का केंद्र बन गए हैं। यह पहली बार नहीं है – इससे पहले भी ओमान 2015 की JCPOA डील (जॉइंट कॉम्प्रिहेंसिव प्लान ऑफ एक्शन) में अहम भूमिका निभा चुका है। लेकिन इस बार मामला कहीं अधिक संवेदनशील है।

अमेरिकी प्रतिनिधिमंडल का नेतृत्व कर रहे हैं मिडिल ईस्ट मामलों के स्पेशल एन्कॉय, स्टीव विटकॉफ, जिनकी पहचान ट्रंप प्रशासन के आक्रामक रणनीतिकारों में होती है। जबकि ईरान की तरफ से आए हैं विदेश उपमंत्री सईद अब्बास अराघची, जिनकी पहचान है – साफगोई और सख्त तेवर।

🛑 तेहरान का कड़ा संदेश: “डील चाहिए तो धमकी बंद करो!”

ईरान ने मस्कट की बैठक में बहुत स्पष्ट शब्दों में कहा कि अमेरिका यदि वाकई डील चाहता है, तो धमकियों की भाषा छोड़नी होगी। सईद अराघची ने कहा,

“हम अमेरिका से सम्मानजनक और गंभीर बातचीत के लिए तैयार हैं, लेकिन अगर वाशिंगटन फिर से ‘अधिकतम दबाव’ की रणनीति अपनाएगा, तो कोई संवाद संभव नहीं।”

ईरान ने यह भी दोहराया कि उसका परमाणु कार्यक्रम पूरी तरह से शांतिपूर्ण है और वह IAEA (अंतरराष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी) के निरीक्षण के लिए भी तैयार है। लेकिन ट्रंप की हालिया टिप्पणियों ने फिर से तनाव बढ़ा दिया है।

💥 ट्रंप का ट्रिगर: “डील नहीं तो ‘अभूतपूर्व हमला'”

पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप, जो एक बार फिर से चुनावी दौड़ में हैं, ने हाल ही में धमकी भरे लहजे में कहा था:

“यदि ईरान बातचीत की टेबल पर नहीं आया, तो उसे सैन्य परिणाम भुगतने होंगे – और वो अभूतपूर्व होंगे।”

ट्रंप की ‘शेर की दहाड़’ वाली भाषा और ‘मैक्सिमम प्रेशर’ की पुरानी रणनीति 2018 में भी नाकाम रही थी, जब उन्होंने एकतरफा JCPOA से अमेरिका को बाहर निकाल लिया था। तब से अब तक तनाव की आग बुझने के बजाय और सुलगती रही है।

🔍 बातचीत के पीछे की खुफिया कहानी

सूत्रों के अनुसार, मस्कट की यह वार्ता कई हफ्तों की गुप्त कूटनीति का नतीजा है। ओमान की सरकार ने दोनों पक्षों को चुपचाप बातचीत के लिए राजी किया, ताकि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर बिना प्रचार के एक प्रभावी समाधान खोजा जा सके।

माना जा रहा है कि यह बातचीत आने वाले महीनों में एक नई परमाणु डील की नींव रख सकती है, जिसे JCPOA 2.0 कहा जा सकता है। इस बार फोकस सिर्फ यूरेनियम संवर्धन पर नहीं, बल्कि ड्रोन, मिसाइल और साइबर क्षमताओं पर भी रहेगा।

🌐 क्या बदल सकता है यह ‘सीक्रेट टॉक’?

अगर यह बातचीत सफल होती है, तो इसके असर दूरगामी होंगे:

  1. तेल बाजार में स्थिरता: अमेरिका और ईरान के बीच तनाव घटने से कच्चे तेल की कीमतों पर नियंत्रण आ सकता है।

  2. मिडिल ईस्ट में शांति: इस समय यमन, इराक और लेबनान में ईरानी प्रभाव है – शांति समझौते से इन क्षेत्रों में तनाव घटेगा।

  3. चीन-रूस की भूमिका घटेगी: अमेरिका अगर ईरान से सीधे समझौता करता है, तो इन दोनों देशों की ‘पॉवर प्ले’ कमजोर होगी।

🔄 इतिहास खुद को दोहरा रहा है?

2013 में भी कुछ ऐसा ही हुआ था। तब अमेरिका के तत्कालीन राष्ट्रपति बराक ओबामा ने ओमान की मदद से ईरान से गुप्त बातचीत शुरू की थी। नतीजा – JCPOA डील। अब 2025 करीब है और एक बार फिर इतिहास उसी मोड़ पर खड़ा है।

लेकिन इस बार समीकरण बदल चुके हैं। ईरान ज्यादा आत्मनिर्भर है, अमेरिका ज्यादा अस्थिर, और ओमान पहले से ज्यादा निर्णायक।


🔮 आगे क्या?

अब सबकी नजर इस पर है कि मस्कट की वार्ता का अगला चरण कब और कैसे होगा। क्या दोनों देश अपने कड़े रुख में नरमी दिखाएंगे? क्या परमाणु मुद्दा फिर से वैश्विक राजनीति की मेज पर प्रमुख एजेंडा बनेगा?

यह बात तो तय है – ओमान की खामोश कूटनीति ने एक बार फिर दुनिया को चौंका दिया है। और परमाणु डिप्लोमेसी की यह जंग अब पूरी दुनिया की निगाह में है।


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