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क्यों मनाया जाता है RakshaBandhan का त्योहार?

रक्षाबंधन RakshaBandhan का त्योहार सदियों से भारतीय जनमानस का हिस्सा रहा है। यहां रक्षा बंधन का तात्पर्य बांधने वाले एक ऐसे धागे से है, जिसमें बहनें अपने भाइयों के माथे पर तिलक लगाकर जीवन के हर संघर्ष तथा मोर्चे पर उनके सफल होने तथा निरन्तर प्रगति पथ पर अग्रसर रहने की ईश्वर से प्रार्थना करती हैं। भाई इसके बदले अपनी बहनों की हर प्रकार की विपत्ति से रक्षा करने का वचन देते हैं और उनके शील एवं मर्यादा की रक्षा करने का संकल्प लेते हैं।

किस दिन मनाया जाता है रक्षा बंधन (RakshaBandhan) ?

यह पर्व हर वर्ष श्रावण मास की पूर्णिमा को मनाया जाता है। भाई की कलाई पर बांधे जाने वाले इन्हीं कच्चे धागों से पक्के रिश्ते बनते हैं। पवित्रता तथा स्नेह का सूचक यह पर्व भाई-बहन को पवित्र स्नेह के बंधन में बांधने का पवित्र एवं यादगार दिवस है। इस पर्व को भारत के कई हिस्सों में श्रावणी के नाम से जाना जाता है।
रक्षाबंधन को और किन नामों से जाना जाता है ?
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रक्षाबंधन का यह त्योहार और भी नामों से जाना जाता है, जिनके बारे में कम ही लोगों को जानकारी होगी। दरअसल रक्षाबंधन को पश्चिम बंगाल में ‘गुरु महापूर्णिमा’, दक्षिण भारत में ‘नारियल पूर्णिमा’ और नेपाल में इसे ‘जनेऊ पूर्णिमा’ के नाम से जाना जाता है।
30 अगस्त को भद्रा खत्म होने के बाद राखी बांधने का शुभ मुहूर्त 09 बजकर 02 मिनट के बाद शुरू होगा। रात 12 बजे तक राखी बांधी जा सकेगी। इसके बाद 31 अगस्त को सूर्योदय से लेकर सुबह 07 बजकर 05 मिनट तक राखी का शुभ मुहूर्त रहेगा।
ज्‍योतिष शास्त्र के मुताबिक, भद्रा काल को अशुभ काल माना जाता है। ऐसा कहा जाता है कि भद्रा सूर्यदेव की बेटी है और शनिदेव की बहन। ऐसा माना जाता है कि भद्रा का स्वभाव शनि देव की तरह कठोर है। इनके इस स्वभाव पर काबू करने के लिए ब्रह्माजी ने उन्हें पंचांग में विष्टि करण के रूप में जगह दी थी।
क्यों मनाया जाता है यह रक्षा बंधन ?
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रक्षाबंधन मनाए जाने के संबंध में अनेक पौराणिक एवं ऐतिहासिक प्रसंगों का उल्लेख मिलता है। कहा जाता है कि देवराज इंद्र बार-बार राक्षसों से परास्त होते रहे। वह हर बार राक्षसों के हाथों देवताओं की हार से निराश हो गए। इसके बाद इन्द्राणी ने कठिन तपस्या की और अपने तपोबल से एक रक्षासूत्र तैयार किया। यह रक्षासूत्र इन्द्राणी ने देवराज इन्द्र की कलाई पर बांधा। तपोबल से युक्त इस रक्षासूत्र के प्रभाव से देवराज इन्द्र राक्षसों को परास्त करने में सफल हुए। तब से रक्षाबंधन पर्व की शुरुआत हुई।
एक उल्लेख यह भी है कि भगवान विष्णु ने वामन अवतार लेने के बाद ब्राह्मण का वेश धारण कर अपनी दानशील प्रवृत्ति के लिए तीनों लोकों में प्रसिद्ध राजा बलि से तीन पग भूमि दान में मांगी। बलि के मांग स्वीकार कर लिए जाने पर भगवान वामन ने अपने पग से सम्पूर्ण पृथ्वी को नापते हुए बलि को पाताल लोक भेज दिया। कहा जाता है कि उसी की याद में रक्षाबंधन पर्व मनाया गया।
रक्षाबंधन पर्व से ऐतिहासिक प्रसंग भी जुड़े है
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वहीं रक्षाबंधन पर्व से ऐतिहासिक प्रसंग भी जुड़े हैं। ऐतिहासिक दृष्टि से इस पर्व की शुरुआत मध्यकालीन युग से मानी जाती है। भारतीय इतिहास ऐसे प्रसंगों से भरा पड़ा है, जब राजपूत योद्धा अपनी जान की बाजी लगाकर युद्ध के मैदान में जाते थे तो उनके देश की बेटियां उनकी आरती उतारकर कलाई पर रक्षा सूत्र बांधा करती थीं। वीर रस के गीत गाकर हौसला अफजाई करते हुए उनसे राष्ट्र की रक्षा का प्रण भी कराती थीं।
कहा जाता है कि उस जमाने में अधिकांश मुस्लिम शासक हिन्दू युवतियों का बलपूर्वक अपहरण कर उन्हें अपने हरम की शोभा बनाने का प्रयास किया करते थे। इससे बचने के लिए राजपूत कन्याओं ने बलशाली राजाओं को राखियां भेजअपने शील की रक्षा करनी आरंभ कर दी थी। इस परम्परा ने बाद में रक्षाबंधन पर्व का रूप ले लिया।
वहीं चित्तौड़ की महारानी कर्मावती का प्रसंग तो इस संबंध में विशेष रूप से उल्लेखनीय है। कहा जाता है कि जब गुजरात के शासक बहादुरशाह ने चित्तौड़ पर आक्रमण कर दिया तो महारानी कर्मावती ने बादशाह हुमायूं को राखी के धागे में रक्षा का पैगाम भेजा। अपना भाई मानते हुए उनसे अपनी सुरक्षा की प्रार्थना की।
बादशाह हुमायूं यह रक्षासूत्र और संदेश पाकर भाव विभोर हो गए और अपनी इस अनदेखी बहन के प्रति अपना कर्तव्य निभाने तुरन्त अपनी विशाल सेना लेकर चित्तौड़ की ओर रवाना हो गए लेकिन जब तक वह चित्तौड़ पहुंचे, तब तक महारानी कर्मावती और चित्तौड़ की हजारों वीरांगनाएं अपने शील की रक्षा करते-करते अपने शरीर की अग्नि में आहुति दे चुकी थीं।
उसके बाद हुमायूं ने महारानी कर्मावती की चिता की राख से अपने माथे पर तिलक लगाकर बहन के प्रति अपने कर्तव्य का निर्वहन करने के लिए जो कुछ किया, वह इतिहास के पन्नों पर स्वर्णाक्षरों में अंकित हो गया तथा इसी के साथ रक्षाबंधन पर्व के इतिहास में एक अविस्मरणीय अध्याय भी जुड़ गया। इस ऐतिहासिक घटना के बाद ही यह परम्परा बनी कि कोई भी महिला या युवती जब किसी व्यक्ति को राखी बांधती है तो वह व्यक्ति उसका भाई माना जाता है।

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धर्म के गूढ़ रहस्यों और ज्ञान को जनमानस तक सरल भाषा में पहुंचा रहे श्री रवींद्र जायसवाल (द्वारिकाधीश डिवाइनमार्ट,वृंदावन) इस सेक्शन के वरिष्ठ सामग्री संपादक और वास्तु विशेषज्ञ हैं। वह धार्मिक और ज्योतिष संबंधी विषयों पर लिखते हैं।

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