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Chhattisgarh बीजापुर में माओवादी दहशत! प्रेशर बम ब्लास्ट में जवान शहीद, जंगल बना मौत का जाल

Chhattisgarh के बीजापुर जिले से एक बार फिर दिल दहला देने वाली खबर आई है, जहां नक्सलियों की ओर से बिछाए गए प्रेशर बम की चपेट में आकर एक बहादुर जवान ने अपनी जान गंवा दी। छत्तीसगढ़ सशस्त्र बल (CAF) की 19वीं बटालियन के जांबाज जवान मनोज पुजारी (उम्र 26 वर्ष) की शहादत ने एक बार फिर यह साबित कर दिया कि जंगलों में तैनात हर सैनिक हर पल मौत से जूझ रहा है।

🔥 घटना की पूरी तस्वीर: मौत के जाल में फंसा काफिला

घटना तोयनार से फरसेगढ़ के बीच स्थित मोरमेड गांव के जंगलों में हुई, जहां निर्माणाधीन सड़क की सुरक्षा में तैनात CAF की टुकड़ी को गश्त के लिए भेजा गया था। जब टीम जंगल के भीतर लगभग चार किलोमीटर तक पहुंची, तभी जवान मनोज पुजारी का पैर एक प्रेशर बम पर पड़ गया। ज़ोरदार धमाका हुआ, और मौके पर ही वह वीरगति को प्राप्त हो गए।

प्रत्यक्षदर्शियों के अनुसार, धमाका इतना ज़बरदस्त था कि पास में खड़े अन्य जवान भी कुछ समय तक स्तब्ध रह गए। विस्फोट के बाद माओवादियों की उपस्थिति की आशंका को देखते हुए पूरे क्षेत्र में अलर्ट घोषित कर दिया गया और सर्च ऑपरेशन शुरू कर दिया गया।

कायराना हमला या योजनाबद्ध साजिश?

पुलिस अधिकारियों का कहना है कि यह माओवादियों की एक सुनियोजित रणनीति थी। ये प्रेशर बम, जो अक्सर ज़मीन में गहराई से दबाए जाते हैं, पैदल चल रहे सुरक्षा बलों को निशाना बनाने के लिए इस्तेमाल किए जाते हैं। ऐसे बम माओवादी जंगल के रास्तों और ग्रामीण इलाकों में छिपाकर रखते हैं, ताकि जवानों की गतिविधियों को बाधित किया जा सके।

पुलिस का यह भी कहना है कि इस तरह की घटनाएं उनकी कायरता और निर्दयता को उजागर करती हैं। निर्दोष जवानों को इस तरह निशाना बनाना नक्सलियों की बौखलाहट को दिखाता है।

🧨 नक्सल प्रभावित इलाकों में बढ़ रही है गतिविधि

छत्तीसगढ़, झारखंड, ओडिशा और महाराष्ट्र के कुछ हिस्सों में नक्सली गतिविधियों में इधर तेजी देखी जा रही है। खासतौर पर बीजापुर, सुकमा, दंतेवाड़ा, नारायणपुर जैसे जिलों में सुरक्षाबलों और नक्सलियों के बीच लगातार मुठभेड़ें होती रही हैं।

2024 और 2025 की शुरुआत से ही नक्सलियों ने अपनी रणनीति में बदलाव करते हुए फिर से आईईडी और प्रेशर बम का उपयोग बढ़ा दिया है। बीते दो महीनों में यह तीसरी घटना है जब प्रेशर बम के कारण किसी जवान की जान गई है।

🔥 शहीद मनोज पुजारी: एक वीर सपूत की कहानी

मनोज पुजारी, जो CAF की 19वीं बटालियन में तैनात थे, महज 26 वर्ष के थे और बेहद कर्मठ और समर्पित जवान माने जाते थे। उनके परिवार में माता-पिता, एक बहन और छोटा भाई है। शहीद मनोज की शहादत से पूरे इलाके में शोक की लहर दौड़ गई है।

स्थानीय लोग उनके साहस और समर्पण को सलाम कर रहे हैं। बीजापुर पुलिस लाइन में आयोजित शोक सभा में उन्हें श्रद्धांजलि दी गई, जहां उनके साथियों की आंखें नम थीं।

🚨 नक्सल मुक्त भारत की ओर कदम

गृह मंत्री अमित शाह ने पहले ही घोषणा की थी कि 2026 तक देश को नक्सल मुक्त बनाने का लक्ष्य रखा गया है। इस दिशा में सरकार लगातार नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में सुरक्षाबलों की तैनाती, तकनीकी निगरानी और स्थानीय सहयोग के माध्यम से माओवादियों की जड़ें काटने का प्रयास कर रही है।

हाल ही में केंद्रीय गृह मंत्रालय ने विशेष फोर्स, ड्रोन तकनीक, नाइट विज़न उपकरण और ट्रैकिंग सिस्टम को ग्रामीण क्षेत्रों में मुहैया कराने की योजना शुरू की है ताकि ऐसी घटनाओं को रोका जा सके।

🧠 प्रेशर बम – एक अदृश्य खतरा

प्रेशर बम, जिसे ‘आईईडी’ (इम्प्रोवाइज्ड एक्सप्लोसिव डिवाइस) भी कहा जाता है, माओवादी अक्सर खुद ही तैयार करते हैं। इन बमों को जंगल की मिट्टी में बड़ी चालाकी से छिपाया जाता है, ताकि किसी भी गश्त दल को इसका अंदाजा न लगे।

सुरक्षाबलों को इन्हें पहचानने के लिए मेटल डिटेक्टर, स्निफर डॉग्स और ड्रोन कैमरों का सहारा लेना पड़ता है, लेकिन कई बार ये प्रयास असफल हो जाते हैं क्योंकि बम बेहद गहराई में और प्राकृतिक छुपाव में रहते हैं।

🚔 मिशन पर निकले हैं जवान, जनता से भी सहयोग की अपील

बीजापुर एसपी ने जनता से अपील की है कि वे किसी भी संदिग्ध गतिविधि की सूचना तुरंत दें। साथ ही उन्होंने यह भी कहा कि सुरक्षाबलों की ओर से हर संभव प्रयास किया जा रहा है ताकि स्थानीय नागरिकों की सुरक्षा सुनिश्चित की जा सके।

गांवों में पुलिस की सिविक एक्शन प्रोग्राम भी चल रही है, जहां स्वास्थ्य शिविर, शिक्षा, और रोजगार संबंधित कार्यक्रमों के ज़रिए ग्रामीणों को माओवादियों की विचारधारा से दूर रखने की कोशिश की जा रही है।


📌 समापन बिंदु नहीं, बल्कि सवाल – कब थमेगा यह सिलसिला?

हर बार जब कोई जवान शहीद होता है, एक परिवार टूट जाता है, एक गांव वीर सपूत खो देता है, और देश की आत्मा पर चोट होती है। बीजापुर में हुए इस ताजा प्रेशर बम धमाके ने यह सवाल फिर से खड़ा कर दिया है—आखिर कब तक?

सरकार के पास रणनीति है, सुरक्षाबलों के पास साहस है, लेकिन ज़मीन पर बदलाव तभी आएगा जब हर नागरिक माओवादियों के खिलाफ एकजुट होकर खड़ा होगा।

News-Desk

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