Spain के प्रसिद्ध कैथेड्रल में ‘ड्रेस कोड विवाद’ ने मचाई हलचल: युवती ने सोशल मीडिया पर बयां की पीड़ा
धार्मिक स्थलों की अपनी गरिमा और नियम होते हैं, जिनका पालन करना हर आगंतुक के लिए अनिवार्य होता है। यह न केवल भारत के मंदिरों में बल्कि विश्व के अन्य प्रसिद्ध पूजा स्थलों पर भी लागू होता है। ऐसा ही एक नियम Spain के प्रसिद्ध सेविला कैथेड्रल (Catedral de Sevilla) में भी लागू है। हाल ही में इस कैथेड्रल में एक ड्रेस कोड विवाद ने जोर पकड़ लिया, जिसमें एक महिला, अरान्त्क्सा गोमेज़ (Arantxa Gomez), ने अपने अनुभव साझा किए।
क्या है पूरा मामला?
अरान्त्क्सा गोमेज़ और उनकी दोस्त जब सेविला कैथेड्रल घूमने पहुंचीं, तो उन्होंने टिकट खरीदकर लाइन में लगने के बाद प्रवेश की कोशिश की। लेकिन स्टाफ ने उन्हें यह कहकर रोक दिया कि उनका पहनावा कैथेड्रल के ड्रेस कोड के अनुरूप नहीं है। यह मामला तब और बढ़ गया जब दोनों महिलाओं ने खुद को ढंकने की कई कोशिशें कीं लेकिन इसके बावजूद उन्हें प्रवेश की अनुमति नहीं दी गई।
अरान्त्क्सा ने बताया कि उन्होंने रूमाल खरीदा ताकि अपने पैर ढंक सकें। उन्होंने जैकेट को कमर पर बांधने की पेशकश भी की, लेकिन स्टाफ अडिग रहा। आखिरकार, नाराज होकर अरान्त्क्सा ने सोशल मीडिया का सहारा लिया और एक लाइव वीडियो के जरिए अपनी आपबीती सुनाई।
ड्रेस कोड विवाद की वजह
अरान्त्क्सा ने वीडियो में दिखाया कि उन्होंने नेवी ब्लू प्लेटेड स्कर्ट, जम्पर और घुटनों तक के बूट्स पहने थे। उनकी दोस्त ने सफेद स्कर्ट और क्रॉप टॉप के साथ जैकेट कैरी की थी। इन दोनों के पहनावे में घुटनों के ऊपर के हिस्से खुले थे, जो धार्मिक स्थल के ड्रेस कोड के खिलाफ थे।
अरान्त्क्सा ने सवाल उठाया, “मेरे कपड़ों में ऐसा क्या आपत्तिजनक था? मैं कैथेड्रल की गरिमा को समझती हूं और उसका सम्मान भी करती हूं, लेकिन क्या इस तरह रोकना जायज है?”
सोशल मीडिया पर छिड़ा विवाद
अरान्त्क्सा के इस वीडियो ने इंटरनेट पर बहस छेड़ दी। कुछ लोगों ने उनका समर्थन किया, तो कुछ ने उनके पहनावे की आलोचना की। समर्थन करने वालों का कहना है कि सभी को धार्मिक स्थलों पर जाने का अधिकार है और पहनावे पर इस तरह की पाबंदी अनुचित है। वहीं, विरोध करने वालों ने इसे धार्मिक स्थल की गरिमा के लिए सही ठहराया।
कैथेड्रल के ड्रेस कोड की आवश्यकता
सेविला कैथेड्रल दुनिया के सबसे बड़े और प्रसिद्ध कैथेड्रल्स में से एक है। यह यूनेस्को विश्व धरोहर स्थल भी है। ऐसे स्थलों पर ड्रेस कोड लागू करना वहां की संस्कृति और धार्मिक मान्यताओं के सम्मान के लिए जरूरी माना जाता है। लेकिन सवाल यह है कि क्या इन नियमों को लागू करते वक्त सख्ती दिखाना सही है?
पहले भी हो चुके हैं ऐसे विवाद
यह पहली बार नहीं है जब किसी धार्मिक स्थल पर ड्रेस कोड को लेकर विवाद हुआ हो।
- थाईलैंड का गोल्ड टेम्पल: यहां महिलाओं को मंदिर में प्रवेश से पहले चादर दी जाती है ताकि वे अपने शरीर को ढंक सकें।
- इटली के सेंट पीटर बेसिलिका: यहां शॉर्ट्स और स्लीवलेस कपड़ों में प्रवेश पूरी तरह प्रतिबंधित है।
- भारत के मंदिर: भारत में भी कुछ मंदिरों में साड़ी या पारंपरिक पहनावे के बिना प्रवेश की अनुमति नहीं है।
धर्म और आधुनिकता के बीच का टकराव
यह विवाद आधुनिकता और धार्मिक आस्थाओं के बीच के टकराव को भी उजागर करता है। सोशल मीडिया पर कई लोगों ने सवाल उठाए कि क्या धार्मिक स्थलों को आधुनिक समय के साथ कदम नहीं बढ़ाना चाहिए? वहीं, कुछ लोगों ने कहा कि धार्मिक स्थलों की अपनी मर्यादा होती है, जिसे सभी को मानना चाहिए।
पर्यटन और ड्रेस कोड का प्रभाव
सेविला कैथेड्रल जैसे स्थान हर साल लाखों पर्यटकों को आकर्षित करते हैं। ऐसे में सवाल उठता है कि क्या सख्त ड्रेस कोड नियम इन स्थलों की लोकप्रियता को प्रभावित कर सकते हैं? अरान्त्क्सा जैसे मामले न केवल सोशल मीडिया पर बहस छेड़ते हैं, बल्कि पर्यटकों के अनुभव पर भी गहरा असर डालते हैं।
क्या है समाधान?
धार्मिक स्थलों को अपने नियमों और ड्रेस कोड को स्पष्ट रूप से संप्रेषित करना चाहिए।
- प्रवेश द्वार पर ऐसे संकेत और निर्देश होने चाहिए जो हर किसी को समझ आएं।
- पर्यटकों को भी धार्मिक स्थलों की गरिमा का ध्यान रखना चाहिए और ऐसे कपड़े पहनने चाहिए जो विवाद का कारण न बनें।
ड्रेस कोड विवाद धार्मिक स्थलों और पर्यटकों के बीच संतुलन बनाने की आवश्यकता को रेखांकित करता है। अरान्त्क्सा गोमेज़ का मामला केवल सेविला कैथेड्रल तक सीमित नहीं है, बल्कि यह वैश्विक मुद्दा है। इसे सुलझाने के लिए संवाद और जागरूकता की जरूरत है ताकि धार्मिक स्थलों की गरिमा बनी रहे और पर्यटकों का अनुभव भी सकारात्मक हो।