ढोंगी का चमत्कार: कैसे बन गए मुरारी चचा Baba Mukeshwar Ji Maharaj? 😏
श्रीमति जी के आदेशानुसार महीने का कुछ राशन लेकर घर आ ही रहा था कि एक जगह सड़क के दूसरी तरफ पर काफी भीड़ लगी थी और लोग जय जयकार भी कर रहे थे।
अब भारतीय लोगों में यह तो कूट-कूट कर भरा ही है कि वे कौतूहलवश कही भी घुस जाते हैं। तो मैं भी भीड को चीरते हुए भीड़ के केन्द्र तक पहुंच ही गया।
पहुंचते ही एक झटका सा लगा और उसी के साथ आश्चर्य भी हुआ। झटका इस बात का कि जिसकी खुद की बीबी उसको नहीं पूजती आज इतने लोग कैसे जय जयकार कर रहे है। दरअसल सच कहूं तो जलन हो रही थी कि प्रसिद्ध हम होना चाहते है और हो वे गए जो बिना दाँत और आंत के घूमते रहते है। आश्चर्य भी इसी से जुड़ा था कि आखिर इन्होने ऐसा क्या कर दिया जो जीरो से हीरो बन गए।
और उस पर भी महाआश्चर्य भी मिला की जो पत्नी कल तक उनको गाली देती थी वही आज जयकारा लगवा रही हैं।
हम बोलना चाह रहे थे लेकिन भीड़ की आवाज में हमारी आवाज़ दब कर रह जा रही थी।
तभी भगवाधारी बाबा मुक्केश्वर जी महाराज की कृपा दृष्ट्रि हम पर पड़ी और हमे देखते हो न जाने क्यों उन्हे करंट सा लग गया।
दरअसल ये मुक्केश्वर महाराज कोई और नही हमारे पडोसी थे जो पूरे मोहल्ले के चचा हुआ करते थे, चचा मुरारी राम, कल रात तक तो थे ही। आज अचानक से कैसे बाबा मुक्केश्वर जी महाराज बन गए, ये हमें भी समझ नहीं आ रहा था। हम बोलने ही वाले थे कि मुरारी चचा ऊर्फ मुक्केश्वर महाराज (Baba Mukeshwar Ji Maharaj?) ने हमारे मुंह में बर्फी ठूंस दी।
और अपने तथाकथित चेलों को, जो वास्तव में उनकी ही औलाद थी, कुछ इशारा किया ।
इशारा मिलते ही उनके दोनों पुत्र, जो कल रात तक बाप की न सुनने वाले और काम से जी चुराने वाले थे, तुरंत काम पर लग गए, भीड़ को हटाने के लिए।
उनका कथन था कि बाबा मुक्केश्वर जी महाराज का विश्राम का समय हो गया है अब बाबा शाम सात बजे यही पर प्रकट होंगे।
मै आश्चर्य से इधर उधर देख ही रहा था कि एक हाथ मुझे लगभग घसीटने सा लगा। ये अपने चचा माफ कीजिए बाबा मुक्केशवर जी महाराज थे।
मौका मिलते ही हम बोले- क्या ड्रामा चला रहे हो चचा इतना सुनते ही उन्होने फिर से एक लड्डू हमारे मुँह में ठूंस दिया और चुप रहने का इशारा करते हुए बोले- ‘काहे गोबर फैला रहे है। और हमें अपने घर चलने के लिए कहने लगे। कौतूहल तो हम थे ही इसलिए कूद कर उनके पीछे-पीछे हो लिए।
घर पहुंचते ही चचा बिस्तर पर ऐसे लेटमलेट हुए जैसे अकेले ही पूरा बुर्ज खलीफ़ा तोड कर आ रहे हो।
अब हमारा सब्र का बांध लगभग टूट चुका था तो हम लगभग चिल्लाते हुए – “ओ चचा,….. चचा ढोंगी वाले बता रहे हो या नहीं”
“ये सब क्या था और इतना पैसा, फल, मेवा ये सब इतना समान किस से लूटा?”
इतना सुनते ही चचा एकदम से ऐसे बैठे जैसे रिंग में गिरा हुआ अन्डरटेकर बैठा करता था ।
और अपनी त्यौरियां चढाते हुए बोले- अबे ओ अलबेला, तुझे क्या मैं चोर डाकू दिखता हूँ जो किसी को लूटेगा ।
मन में तो आई कि बोल दूं, “हाँ” वरना मेरे से उधार लिए 20000/- न लौटा देते कभी का” पर पता नहीं क्यों मुंहें ही नहीं खुला।
मुझे चुप देख शायद उनको हौसला मिला इसलिए शुरू हो गए। बच्चा हम सिद्ध बाबा है और ये सब हमारे शिष्यों ने स्वेच्छा से भेंट किया है।”
मैं आश्चर्य से उनका मुंह देखने लगा कि जो इन्सान आज तक अपने को 12 वीं पास सिद्ध नहीं कर पाया वो रातोंरात सिद्धबाबा कैसे बन गया इन्हें तो ढंग से अपना नाम तक नहीं लिखना आता ।
मेरी ऐसी हालत देख शायद उन्हें तरस आया इसलिए खुद ही बताना शुरू किया कि दरअसल सुबह सुबह रामलाल दूध देने घर आया था तब उसके पीठ में मसकोड़ की वजह से दर्द था और वो झुक कर ड्रम में से दूध निकाल ही रहा था कि पता नही कैसे फर्श पर पानी होने की वजह से मैं बैलेंस नहीं बना पाया और ऐसे गिरा कि रामलाल की पीठ पर मेरा मुक्का लग गया और किस्मत से उसकी कमर का दर्द ठीक भी हो गया
मै बोला तो उसमें ऐसा क्या कि बाबा मुक्केश्वर जी महाराज बन गए।”
अबे अलबेले- बाबा जी लगभग चिल्लाते हुए बोले, दूध ले कर अन्दर आया ही था कि फिर से घंटी बजी और क्योंकि सुबह से कुछ बच्चे दुखी कर रहे थे तो मुझे लगा वे ही होंगे इसलिए मैने गेट खोलते ही मुंह पर मुक्का जड़ दिया।
सामने खन्ना जी खडे थे, वे श्रीमति के प्रसिद्ध पापड़ लेने आए थे, मुक्का लगते ही वे भड़क गए और हम भीगी बिल्ली लेकिन फिर एकदम से वे खुशी से झूमने लगे ।
अब उम्र में तो वे हमारे बच्चे जैसे ही है। और बोलते हमें ‘बाबा’ भी है
वे चिल्लाने लगे कि वाह बाबा चमत्कार कर दिया डॉक्टर भी मेरे दाँत का जो दर्द ठीक नहीं कर पा रहे थे आपके एक मुक्के से ठीक हो गया
मैं बोला तो इससे क्या?
“चुप बुडबक”, इतना सुनते ही महाराज क्रोधित हो उठे।
तो हम चुप हो गए।
फिर बाबा मुक्केश्वर जी महाराज उर्फ मुरारी चचा आगे बोले हां तो खन्ना झूम ही रहा था कि पड़ोस में दूध दे रहा रामलाल भी आकर बोलने लगा कि मेरा कमर का दर्द भी बाबा के मुक्के से ठीक हो गया।
ये सुनकर पास से जा रहे कुछ लोगे इक्कठा हो गए और बात की खुसर फुसर बनते बनते इतनी बनी के आते जाते सारे अन्जान लोग भी रूक गए और भीड़ में से ही किसी ने ‘बाबा मुक्केश्वर जी महाराज’ नाम दे दिया।
और धीरे धीरे चढ़ावा भी आने लगा। भीड़ में से एक दो ने और अपनी समस्या रखी मैने तो भगाने के लिए मुक्का मार दिया। मगर किस्मत से उनका भी इलाज हो गया तो और भी शोर मच गया कि सिद्धी प्राप्त है
कहते हुए चचा शरारती नज़रो से मुझे देख रहे थे।
मै बोला मगर कभी न कभी तो पोल खुल जाएगी तब क्या?
इस पर चचा बोले कि अरे इतने तो मेरे अनुयायी बड़े बड़े नेता-अधिकारी बन चुके होंगे। और आम जनता तो मेरे सपोर्ट में रहेगी ही मेरे लिए धरना प्रदर्शन तक करने उतर जाएगी , यहां तक कि कानून से टकराने तक से पीछे नहीं हटेगी।
मैं बोला कि मतलब आप लम्बे बने रहोगें, ऐसा सोचते हो?
तो चचा खुश होते हुए बोले ये मैं नहीं कह रहा हूँ पगले बालक, ये तो ईश्वर का आदेश है।
अभी मेरे लिए पास में ही 500 गज के एक प्लाट पर भव्य आश्रम का निर्माण शुरू हो जाएगा, हम वही निवास करेंगे।
अब मैं और भी सकते में था कि किराये के पैसे न चुका पाने वाले पर इतना पैसा। इसलिए बोल उठा – मगर पैसे?
फिर चचा इतराने लगे उस भीड़ में जिसका इलाज गलती से हो गया था ना, वो प्लाट उसका है। वही उसको बनवा कर मेरे नाम करने वाला है।
मै इतने में और सवाल पूछता कि श्रीमति का फोन आ गया।
फोन देखते ही याद आया कि राशन का समान भी मेरे पास ही था तो वहां से निकलना ही उचित लगा। लेकिन मन ही मन में सोचने भी लगा कि वाकई काम तो अच्छा है। जिस पर खाने के लिए तंगी लगी रहती थी आज वो औरों को बांट रहा है और तो और किराए के घर से बिना पैसा खर्च किए सीधे बंगले में जाने वाला है। इसी को कहते हैं हींग लगे न फिटकरी और रंग चोखा ही चोखा।।