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सरकारी आवास सेवारत अधिकारियों के लिए है न कि रिटायर लोगों के लिए: सुप्रीम कोर्ट

सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि सरकारी आवास सेवारत अधिकारियों के लिए है न कि ‘‘परोपकार’’और उदारता के रूप में रिटायर लोगों के लिए। शीर्ष अदालत ने पंजाब और हरियाणा हाई कोर्ट के उस आदेश को खारिज करते हुए यह टिप्पणी की जिसमें एक रिटायर लोक सेवक को इस तरह के परिसर को बनाये रखने की अनुमति दी गई थी।

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि राइट टू शेल्टर का मतलब सरकारी आवास का अधिकार नहीं है। अदालत ने कहा कि एक रिटायर लोक सेवक को अनिश्चितकाल के लिए ऐसे परिसर को बनाए रखने की अनुमति देने का निर्देश बिना किसी नीति के राज्य की उदारता का वितरण है। केंद्र की अपील को मंजूर करते हुए, जस्टिस हेमंत गुप्ता और जस्टिस एएस बोपन्ना की बेंच ने हाई कोर्ट का आदेश रद्द कर दिया और एक कश्मीरी प्रवासी रिटायर खुफिया ब्यूरो अधिकारी को 31 अक्टूबर, 2021 को या उससे पहले परिसर का खाली भौतिक कब्जा सौंपने का निर्देश दिया।

बेंच ने केंद्र को 15 नवंबर, 2021 तक हाई कोर्ट के आदेशों के आधार पर उन रिटायर सरकारी कर्मचारियों के खिलाफ की गई कार्रवाई की एक रिपोर्ट प्रस्तुत करने का भी निर्देश दिया, जो रिटायर होने के बाद सरकारी आवास में हैं।

अधिकारी को फरीदाबाद स्थानांतरित कर दिया गया था, जहां उन्हें एक सरकारी आवास आवंटित किया गया था। अधिकारी ने 31 अक्टूबर, 2006 को रिटायर हुए थे। बेंच ने पिछले सप्ताह पारित अपने फैसले में कहा, ‘‘आश्रय के अधिकार का मतलब सरकारी आवास का अधिकार नहीं है। सरकारी आवास सेवारत अधिकारियों के लिए है, न कि ‘‘परोपकार’’और उदारता के रूप में रिटायर लोगों के लिए।’’

शीर्ष अदालतने हाई कोर्ट के खंडपीठ के जुलाई 2011 के उस आदेश के खिलाफ अपील पर यह फैसला सुनाया जिसने अपने एकल न्यायाधीश के आदेश के खिलाफ एक याचिका खारिज कर दी थी।

एकल न्यायाधीश ने कहा था कि रिटायर अधिकारी का अपने राज्य में लौटना संभव नहीं है, जिसके कारण आवास खाली कराये जाने का आदेश स्थगित रखा जाएगा। हाई कोर्ट ने भी कहा था कि अधिकारी उन्हें फरीदाबाद में मामूली लाइसेंस शुल्क पर वैकल्पिक आवास प्रदान करने के लिए स्वतंत्र हैं।

News Desk

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