Khatauli में वकीलों का उग्र प्रदर्शन: गाजियाबाद में पुलिस लाठीचार्ज के विरोध में सड़क जाम, सुरक्षा की मांग में सरकार को घेरा
सोमवार की सुबह Khatauli तहसील परिसर में एक गंभीर और उग्र विरोध प्रदर्शन देखने को मिला, जब स्थानीय अधिवक्ताओं ने गाजियाबाद में वकीलों पर हुए पुलिस लाठीचार्ज के विरोध में सड़क जाम कर दिया। इस विरोध ने न केवल तहसील के आसपास के इलाकों को ठप कर दिया, बल्कि पूरे क्षेत्र में अफरा-तफरी का माहौल भी बना दिया। इस विरोध प्रदर्शन का मुख्य कारण गाजियाबाद जिला जज अनिल कुमार के आदेश पर वकीलों पर की गई पुलिस की बर्बर लाठीचार्ज कार्रवाई थी, जिसके खिलाफ वकील समुदाय में जबरदस्त आक्रोश है।
गाजियाबाद में क्या हुआ था?
कुछ दिन पहले गाजियाबाद में एक ऐसी घटना घटी, जिसने पूरे वकील समुदाय को हिलाकर रख दिया। वहां एक कोर्ट रूम के अंदर वकीलों पर पुलिस द्वारा लाठीचार्ज किया गया, जब वे न्यायिक कार्यों में संलिप्त थे। इस घटना ने न केवल वकीलों की सुरक्षा को लेकर कई सवाल उठाए, बल्कि यह भी साफ किया कि न्याय व्यवस्था में वकील भी अब असुरक्षित महसूस कर रहे हैं। इस घटना के बाद से गाजियाबाद में वकील सड़कों पर उतर आए और प्रशासन से तुरंत कार्रवाई की मांग करने लगे।
खतौली में वकीलों का आक्रोश
Khatauli में, वकील गाजियाबाद की घटना को लेकर गुस्से में थे। सोमवार सुबह, तहसील परिसर के बाहर वकील समुदाय ने सड़क जाम कर दिया और तहसील के कार्यों को पूरी तरह से ठप कर दिया। तहसील बार एसोसिएशन खतौली के समस्त अधिवक्ता न्यायिक कार्यों से विरत रहते हुए कलमबंद हड़ताल पर थे। उनकी इस हड़ताल में दस्तावेज लेखकों, टाइपिस्टों और अन्य न्यायिक कर्मचारियों ने भी उनका समर्थन किया।
इस प्रदर्शन के कारण, तहसील में काम करने आए कई फरियादी निराश होकर बिना काम किए वापस लौट गए। प्रदर्शनकारियों ने जोरदार तरीके से गाजियाबाद की घटना की निंदा की और यह मांग की कि दोषी पुलिसकर्मियों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की जाए। इसके अलावा, उन्होंने सरकार से अधिवक्ताओं की सुरक्षा सुनिश्चित करने की अपील की।
वकीलों की सुरक्षा को लेकर चिंता
वकील समुदाय का कहना है कि वे तब तक विरोध जारी रखेंगे जब तक गाजियाबाद के जिला जज और लाठीचार्ज करने वाले पुलिसकर्मियों के खिलाफ कार्रवाई नहीं होती। इस घटना ने वकील समुदाय को यह सोचने पर मजबूर कर दिया कि अगर न्याय व्यवस्था में ही वकील सुरक्षित नहीं रहेंगे, तो आम नागरिकों को किस तरह का न्याय मिलेगा? उनके अनुसार, यह केवल एक पुलिस बर्बरता का मामला नहीं है, बल्कि यह न्यायिक स्वतंत्रता और सुरक्षा के अधिकार पर हमला है।
विरोध प्रदर्शन में बड़ी संख्या में वकील
Khatauli में आयोजित इस विरोध प्रदर्शन में बड़ी संख्या में वकील शामिल हुए। इस दौरान तहसील बार एसोसिएशन के अध्यक्ष सरदार जितेंद्र सिंह, कार्यवाहक अध्यक्ष रतन सिंह, और अन्य प्रमुख वकील जैसे जगदीश आर्य, राजवीर सिंह, रामचंद्र सैनी, अशोक अहलावत, सुभाष चन्द्र, और अन्य कई वकीलों ने इस आंदोलन में भाग लिया। उन्होंने अपनी एकजुटता और आक्रोश को स्पष्ट करते हुए न्यायिक स्वतंत्रता और वकीलों की सुरक्षा को लेकर कड़ा रुख अपनाया।
इसके अलावा, कई दस्तावेज लेखक और अंकलक जैन जैसे अन्य सहयोगी भी इस प्रदर्शन में शामिल हुए। वकील समुदाय ने चेतावनी दी कि अगर उनकी मांगों को नजरअंदाज किया गया, तो वे और भी उग्र आंदोलन कर सकते हैं। उनका कहना था कि यह आंदोलन केवल गाजियाबाद या खतौली तक सीमित नहीं रहेगा, बल्कि पूरे प्रदेश में फैल सकता है, अगर सरकार ने जल्दी ही कोई ठोस कदम नहीं उठाया।
आम नागरिकों को परेशानी का सामना
हालाँकि वकील समुदाय का यह विरोध अपने उद्देश्यों के लिए था, लेकिन कुछ लोगों ने इस पर असंतोष भी व्यक्त किया। आम नागरिकों का कहना था कि इस प्रकार के प्रदर्शन से उन्हें अनावश्यक परेशानी का सामना करना पड़ता है, क्योंकि वे न्यायिक कार्यों के लिए वहां पहुंचे थे, लेकिन उन्हें बिना किसी समाधान के वापस लौटना पड़ा।
वहीं वकील समुदाय का कहना था कि उनका प्रदर्शन न्याय और सुरक्षा की मांग के लिए है, और इस प्रकार के हमले केवल उनके अधिकारों का उल्लंघन नहीं बल्कि एक गंभीर सुरक्षा संकट का कारण बनते हैं। उनका यह भी कहना था कि अगर सरकार ने उनकी मांगों पर ध्यान नहीं दिया तो वे प्रदर्शन को और उग्र बना सकते हैं और उनकी आवाज को दबाने का प्रयास कभी सफल नहीं होगा।
इस घटना ने यह साफ कर दिया कि वकील समुदाय अपने अधिकारों की रक्षा के लिए किसी भी हद तक जा सकता है। अगर सरकार और प्रशासन समय रहते ठोस कदम नहीं उठाते, तो यह विरोध पूरे राज्य में फैल सकता है और यह एक गंभीर मुद्दे का रूप ले सकता है। वहीं, यह भी जरूरी है कि सुरक्षा के मुद्दे पर गंभीरता से विचार किया जाए, ताकि भविष्य में इस प्रकार की घटनाओं से बचा जा सके।
वकील समुदाय का यह प्रदर्शन केवल गाजियाबाद के लाठीचार्ज की प्रतिक्रिया नहीं है, बल्कि यह न्यायिक स्वतंत्रता, सुरक्षा, और वकीलों के अधिकारों की रक्षा के लिए एक स्पष्ट संदेश है। अब देखना यह है कि सरकार इस मुद्दे पर कब और किस तरह से कार्रवाई करती है।

