पश्चिमी यूपी को दिल्ली में मिलाने की मांग: Muzaffarnagar में रामपाल मांडी का बड़ा बयान, जन्तर-मन्तर पर होगा प्रदर्शन
Muzaffarnagar: पश्चिमी उत्तर प्रदेश के जिलों के भविष्य को लेकर एक बड़ा सवाल खड़ा करते हुए नवराज्य निर्माण महासंघ के कार्यवाहक राष्ट्रीय अध्यक्ष एवं सुहैलदेव भारतीय समाज पार्टी के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष रामपाल मांडी ने ज़ोरदार बयान दिया है। उन्होंने कहा कि शामली, मुजफ्फरनगर, मेरठ, बागपत और हापुड़ जैसे जनपदों को या तो दिल्ली राज्य में मिला दिया जाए या फिर इन्हें एनसीआर (राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र) से बाहर किया जाए।
एनसीआर का बोझ, लेकिन लाभ कहां?
रामपाल मांडी ने स्पष्ट रूप से आरोप लगाया कि एनसीआर में शामिल होने के बावजूद इन जिलों को इसका कोई ठोस लाभ नहीं मिल रहा है।
- डिज़ल गाड़ियों की समस्या: यहां 10 साल की सीमा निर्धारित की गई है, जबकि बाकी जिलों में गाड़ियां 15 साल तक चल सकती हैं।
- ईंट भट्टों का संकट: प्रदूषण की आड़ में ईंट भट्टों को सही समय पर संचालन की अनुमति नहीं मिलती, जिससे ईंटों की कीमत दोगुनी हो चुकी है।
- उद्योगों पर असर: इन जिलों में स्थित इकाइयों पर एनसीआर के प्रदूषण मानकों का अतिरिक्त दबाव है।
पश्चिमी यूपी के लिए अलग राज्य की मांग
श्री मांडी ने यह भी मांग उठाई कि उत्तर प्रदेश को तीन हिस्सों में बांटा जाए:
- पूर्वांचल
- पश्चिमालंचल
- रोहेलखंड
उनका मानना है कि छोटे प्रदेश बनने से इन क्षेत्रों का बेहतर विकास हो सकेगा।
11 दिसंबर को जंतर-मंतर पर होगा धरना प्रदर्शन
नवराज्य निर्माण महासंघ ने ऐलान किया है कि वे इन मांगों को लेकर 11 दिसंबर को दिल्ली के जंतर-मंतर पर विशाल धरना प्रदर्शन करेंगे।
- इस प्रदर्शन में केवल उत्तर प्रदेश ही नहीं, बल्कि 9 अन्य प्रदेशों के कार्यकर्ता भी हिस्सा लेंगे।
- श्री मांडी ने कहा कि महासंघ का लक्ष्य पश्चिमी यूपी के 17 जिलों को दिल्ली में शामिल करना है, ताकि उन्हें समुचित विकास का लाभ मिल सके।
नए नियुक्तियां और समर्थन
रामपाल मांडी ने प्रेसवार्ता के दौरान संगठन की नई नियुक्तियों का भी ऐलान किया:
- शिवकुमार पंवार (अंतर्राष्ट्रीय एथलीट प्रियंका पंवार के पिता) को उत्तर प्रदेश का वरिष्ठ महामंत्री नियुक्त किया गया।
- एडवोकेट चंद्रदीप बालियान को सहारनपुर मंडल की जिम्मेदारी सौंपी गई।
पश्चिमी यूपी की समस्याएं: एक विश्लेषण
शामली, मुजफ्फरनगर, मेरठ और अन्य जिलों में रहने वाले लोग वर्षों से यह महसूस कर रहे हैं कि एनसीआर में शामिल होने के बाद भी उन्हें अपेक्षित सुविधाएं नहीं मिल रहीं।
- आवास और भूमि की समस्या: एनसीआर में भूमि की कीमतें आसमान छू रही हैं, जिससे स्थानीय लोग घर बनाने में सक्षम नहीं हैं।
- यातायात और प्रदूषण: एनसीआर क्षेत्र की ट्रैफिक समस्याएं और प्रदूषण नियंत्रण नियम पश्चिमी यूपी के निवासियों पर अनावश्यक दबाव डाल रहे हैं।
- शिक्षा और स्वास्थ्य सुविधाएं: दिल्ली से निकटता के बावजूद, इन जिलों में उच्च-स्तरीय शिक्षा और स्वास्थ्य सुविधाओं की कमी है।
राजनीतिक मायने और संभावनाएं
पश्चिमी यूपी को दिल्ली में मिलाने की मांग ने राजनीतिक हलकों में हलचल मचा दी है।
- राज्य विभाजन का मुद्दा: उत्तर प्रदेश का विभाजन लंबे समय से चर्चा में है, लेकिन इस बार महासंघ का सीधा फोकस पश्चिमी यूपी को अलग राज्य बनाने पर है।
- केंद्र और राज्य सरकार की भूमिका: केंद्र और यूपी सरकार इस मांग पर क्या रुख अपनाएगी, यह आने वाले दिनों में स्पष्ट होगा।
क्या दिल्ली में शामिल होना समाधान है?
यदि पश्चिमी यूपी के जिले दिल्ली राज्य में शामिल होते हैं, तो इसके कई फायदे और नुकसान होंगे:
फायदे:
- दिल्ली के उच्च स्तरीय बुनियादी ढांचे का लाभ।
- रोजगार के अधिक अवसर।
- बेहतर स्वास्थ्य और शिक्षा सुविधाएं।
नुकसान:
- स्थानीय सांस्कृतिक और प्रशासनिक संरचना में बदलाव।
- दिल्ली में संसाधनों पर बढ़ता दबाव।
प्रेसवार्ता में मौजूद नेता और कार्यकर्ता
प्रेसवार्ता में महासंघ के कई वरिष्ठ नेता और कार्यकर्ता उपस्थित थे, जिनमें धर्मवीर बालियान (पश्चिमी यूपी प्रवक्ता), बिल्लू चौधरी, जितेंद्र किनौनी, और विपिन शर्मा प्रमुख थे।
क्या होगा पश्चिमी यूपी का भविष्य?
रामपाल मांडी के बयान ने पश्चिमी यूपी के जिलों के भविष्य को लेकर एक नई बहस छेड़ दी है। क्या ये जिले दिल्ली का हिस्सा बनेंगे, या फिर एनसीआर से बाहर होकर अलग पहचान बनाएंगे? यह देखना दिलचस्प होगा कि 11 दिसंबर को होने वाला प्रदर्शन इस मुद्दे को कहां तक ले जाता है।