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Meerapur By-Election 2024: फर्जी वोटिंग, पथराव और प्रशासन पर सवाल – लोकतंत्र की परीक्षा या तमाशा?

Muzaffarnagar उत्तर प्रदेश के मीरापुर विधानसभा सीट पर हो रहे उपचुनाव (Meerapur By-Election 2024) में बुधवार को मतदान के दौरान हंगामे ने पूरे राज्य का ध्यान खींचा। ककरौली गांव में दो समुदायों के बीच झड़प और पथराव की घटनाओं ने न केवल प्रशासन की तैयारियों पर सवाल खड़े किए बल्कि लोकतांत्रिक प्रक्रिया की पारदर्शिता पर भी गंभीर बहस छेड़ दी।

क्या हुआ ककरौली में?

ककरौली गांव में दोपहर के समय मतदान के दौरान हिंसा की खबरें सामने आईं। राष्ट्रीय लोक दल (रालोद) की उम्मीदवार मिथलेश पाल ने आरोप लगाया कि बाहर से बुलाए गए लोगों ने फर्जी वोटिंग की। उन्होंने कहा, “हमारे पास पक्की सूचना है कि कुछ बाहरी लोग मदरसों और स्कूलों में ठहरे हुए हैं। इन लोगों का इस्तेमाल फर्जी वोटिंग के लिए किया जा रहा है। खासतौर पर बुर्का पहने महिलाओं द्वारा मतदान प्रक्रिया को प्रभावित किया जा रहा है।”

स्थिति तब और बिगड़ी जब दो समुदायों के बीच कहासुनी ने हिंसक रूप ले लिया। इसके बाद पथराव शुरू हुआ। मौके पर पहुंची पुलिस ने हल्का बल प्रयोग कर भीड़ को तितर-बितर किया।

पुलिस की सफाई

वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक (एसएसपी) अभिषेक सिंह ने मामले पर सफाई देते हुए कहा, “पथराव की सूचना मिलते ही पुलिस तुरंत मौके पर पहुंची और स्थिति को नियंत्रण में लिया गया। मतदान फिलहाल शांतिपूर्ण तरीके से जारी है। हालांकि, घटना के कारणों की जांच की जा रही है।”

सोशल मीडिया पर वायरल हो रहे एक वीडियो ने स्थिति को और उलझा दिया, जिसमें पुलिसकर्मी महिलाओं को धमकाते और पिस्टल दिखाते हुए नजर आए। एसएसपी ने इसे साजिश करार दिया और कहा, “उपद्रवियों ने जानबूझकर महिलाओं को आगे कर पुलिस पर दबाव बनाने की कोशिश की। यह वीडियो आधी अधूरी जानकारी के साथ वायरल किया गया है।”

 

 

राजनीतिक बयानबाज़ी की बाढ़

उपचुनाव के इस घटनाक्रम ने राजनीतिक बयानबाजी का भी दौर शुरू कर दिया। समाजवादी पार्टी (सपा) के अध्यक्ष अखिलेश यादव ने सीधे-सीधे बीजेपी पर निशाना साधते हुए कहा, “बीजेपी सरकार प्रशासन का दुरुपयोग कर रही है। यह चुनाव लोकतंत्र का नहीं, बल्कि सरकार का चुनाव है। हमारे मतदाताओं को रोका जा रहा है, लेकिन सपा कार्यकर्ता हर बूथ पर डटे हुए हैं।”

अखिलेश ने अपने समर्थकों को सतर्क रहने की सलाह देते हुए कहा कि गड़बड़ी की आशंका हो तो उसका वीडियो बनाकर चुनाव आयोग को भेजें। उन्होंने कहा, “हमारी सरकार आने पर ऐसे अधिकारियों पर कड़ी कार्रवाई होगी।”

प्रेस कॉन्फ्रेंस करके अखिलेश यादव ने कहा, ”बीजेपी प्रशासन पर दबाव बना रही है. वोटरों को रोका जा रहा है. बीजेपी चुनाव वोट से नहीं खोट से जीतना चाहती है. हमारे कार्यकर्ता बूथ पर डटे हुए हैं. बीजेपी को हार का डर सता रहा है. सपा के लोगों को वोट डालने से रोका जा रहा है. पुलिस वोट करने से रोक रही है. पुलिस मतदान के दौरान आईडी चेक नहीं कर सकती है.” उन्होंने अपने कार्यकर्ताओं से अपील की कि यदि गड़बड़ी की आशंका लगे तो मोबाइल से वीडियो बना लें. यादव ने कहा, ”हमारी सरकार आई तो बेईमान अधिकारियों पर कार्रवाई की जाएगी.”

हंगामे के बीच सपा नेता अखिलेश यादव ने सोशल मीडिया प्लेटफार्म एक्स पर लिखा- उत्तर प्रदेश में जिन मतदाताओं को पुलिस-प्रशासन द्वारा वोट डालने से रोका गया है, वो एक बार फिर से जाएं. चुनावी गड़बड़ी की सूचना हर तरफ फैल गई है. चुनाव आयोग भी सतर्क हो गया है. अब आयोग की तरफ से ये आश्वासन मिल रहा है कि जिन लोगों को वोट डालने से रोका गया है, वो एक बार फिर से जाएं. अपने मताधिकार का प्रयोग जरूर करें. अब कोई गड़बड़ी नहीं होने दी जाएगी. यदि फिर से कोई रोके तो आप वहां मौजूद चुनाव आयोग के अधिकारियों से शिकायत करें.

एआईएमआईएम और रालोद ने लगाए गंभीर आरोप

ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (एआईएमआईएम) के उम्मीदवार मोहम्मद अरशद ने कहा कि पुलिस मतदाताओं को परेशान कर रही है और उनके कार्यकर्ताओं को हिरासत में लिया गया है। उन्होंने कहा, “ककरौली इलाके में मतदान प्रतिशत कम है क्योंकि पुलिस लोगों को बाहर निकलने नहीं दे रही है। यह लोकतंत्र का नहीं, सरकार का पर्व बन गया है।”

वहीं, रालोद की उम्मीदवार मिथलेश पाल ने चुनावी प्रक्रिया पर सवाल खड़े करते हुए कहा कि प्रशासन की ढिलाई से फर्जी वोटिंग हो रही है। उन्होंने कहा, “पुलिस जानबूझकर हमारी शिकायतों को अनसुना कर रही है। हमें सटीक जानकारी है कि क्षेत्र के बाहर से आए लोगों का इस्तेमाल हो रहा है।”

चुनाव आयोग की सक्रियता

चुनाव आयोग ने घटनाओं का संज्ञान लेते हुए स्थिति पर नियंत्रण के निर्देश दिए। आयोग ने कहा कि जिन लोगों को मतदान से रोका गया है, उन्हें फिर से वोट डालने का मौका दिया जाएगा। आयोग ने यह भी सुनिश्चित किया कि प्रशासन निष्पक्ष रूप से काम करे और किसी भी प्रकार की गड़बड़ी न हो।

मीरापुर सीट का ऐतिहासिक महत्व

मीरापुर विधानसभा सीट पश्चिमी उत्तर प्रदेश की राजनीति में हमेशा से महत्वपूर्ण रही है। यहां का चुनाव न केवल स्थानीय मुद्दों, बल्कि राज्य और राष्ट्रीय राजनीति के लिए भी एक संकेतक के रूप में देखा जाता है।

इस बार के उपचुनाव में यह सीट इसलिए भी अहम है क्योंकि सपा-रालोद गठबंधन ने इसे प्रतिष्ठा का मुद्दा बना दिया है। वहीं बीजेपी इसे विकास और कानून-व्यवस्था के नाम पर जीतना चाहती है। एआईएमआईएम की सक्रियता ने भी मुकाबले को त्रिकोणीय बना दिया है।

पुलिस और प्रशासन पर दबाव?

हंगामे और झड़पों के बाद यह सवाल उठ रहा है कि क्या पुलिस और प्रशासन राजनीतिक दबाव में काम कर रहे हैं? सपा और रालोद का आरोप है कि बीजेपी ने प्रशासन का इस्तेमाल कर मतदाताओं को डराने और सपा समर्थकों को रोकने का काम किया है।

मतदान प्रतिशत पर असर

ककरौली और आस-पास के क्षेत्रों में हंगामे के कारण मतदान प्रतिशत पर असर पड़ा है। जहां एक तरफ सपा और एआईएमआईएम ने इसे प्रशासन की विफलता बताया, वहीं बीजेपी ने इन आरोपों को खारिज करते हुए कहा कि विपक्ष हार के डर से झूठे आरोप लगा रहा है।

क्या कहता है राजनीतिक समीकरण?

मीरापुर का उपचुनाव सिर्फ एक सीट की लड़ाई नहीं है। यह पश्चिमी उत्तर प्रदेश में जाट-मुस्लिम समीकरण और भाजपा के प्रभाव की परीक्षा है।

रालोद और सपा ने जाट और मुस्लिम वोटरों को साथ लाने की कोशिश की है, जबकि बीजेपी ने हिंदुत्व और विकास को अपना आधार बनाया है। एआईएमआईएम का क्षेत्र में बढ़ता प्रभाव भी चुनावी नतीजों को प्रभावित कर सकता है।

 क्या यह लोकतंत्र का असली चेहरा है?

मीरापुर उपचुनाव में झड़प, फर्जी वोटिंग और राजनीतिक दबाव के आरोपों ने एक बार फिर यह सवाल खड़ा कर दिया है कि क्या हमारी लोकतांत्रिक प्रक्रिया सही दिशा में है?

इस घटनाक्रम ने यह साबित कर दिया कि चाहे राजनीतिक दल कुछ भी कहें, आम जनता के लिए यह चुनाव उनके अधिकारों की लड़ाई बन गया है। परिणाम चाहे जो भी हो, यह देखना दिलचस्प होगा कि उपचुनाव के नतीजे पश्चिमी उत्तर प्रदेश और राज्य की राजनीति को किस दिशा में ले जाते हैं।

मीरापुर उपचुनाव में हंगामा और आरोप-प्रत्यारोप यह साफ दिखाता है कि उत्तर प्रदेश की राजनीति में अब भी चुनाव प्रक्रिया पारदर्शिता से दूर है। पुलिस और प्रशासन पर राजनीतिक दबाव और बाहरी हस्तक्षेप ने मतदाताओं का विश्वास कमजोर किया है। यह देखना दिलचस्प होगा कि इस उपचुनाव का परिणाम किस ओर जाता है और यह घटनाएं राज्य की राजनीति को किस दिशा में ले जाएंगी।

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