भगवान के रास्ते पर चलने का मार्ग हमें गुरु ही बताते हैंः विद्यासागर जी महाराज
प्रेमपुरी (मुजफ्फरनगर)। संत शिरोमणि आचार्य गुरुवर श्री विद्यासागर जी महाराज के परम प्रभावक शिष्य मुनि श्री १०८ प्रणम्य सागर जी महाराजी के द्वारा रत्नकरण्ड श्रावकाचार श्री की देशना प्रेमपूरी मे चल रही है।
जो वास्तविक भगवान होता है, उसका पुनर्जन्म नहीं होता। और जिसका पुनर्जन्म होता है, वह भगवान नहीं होता। भगवान कभी अवतार नहीं लेते क्योंकि एक बार भगवान संसार के दुखों से हटने के बाद पुनः संसार में नहीं आते।
मुनि श्री ने बताया कि भगवान एक बार भगवान बन जाने के बाद जन्म, मृत्यु के बंधन से छूट जाता है। भगवान एक नहीं बल्कि अनंत होते हैं। हम भगवान की पूजा इसलिए करते हैं क्योंकि हम भी भगवान जैसे बन पाऐ। उनके जैसे गुण हमारे अंदर भी आ पाऐ। भगवान बुढ़ापा, बीमारी, दुख, शोक, नींद, भूख ,प्यास आदि से रहित होते हैं।
जब दुख गहरा होता चला जाता है, तो वह दुख ही शौक बन जाता है। भगवान शास्त्र, अस्त्र से रहित होते हैं क्योंकि ना वो किसी से डरते हैं, ना ही किसी को डराते हैं।
मुनिश्री ने कहा कि एक बच्चा जब च्युइंगम चबाता है तो वह उसका रस समाप्त हो जाने पर भी वे इसी लोभ मे उसे चूसता रहता है
क्योंकि उससे उसे सुख मिलता है और वह उस सुख को छोड़ना नहीं चाहता। कितु कभी न कभी तो छूटता ही है, किंतु मोक्ष सुख कभी नहीं छूटता न कभी समाप्त होता है
ऐसा सुख भगवान के पास होता है। जो अपने में स्थित हो जाए वही व्यक्ति स्वस्थ है। स्वस्थ होने के लिए मात्र अपने में लीन होना ही पर्याप्त होता है हमें इच्छा करनी चाहिए कि भगवान मैं आप जैसा बन सकूँ।
और भगवान के रास्ते पर चलने का मार्ग हमें गुरु ही बताते हैं। इस अवसर पर विनोद जैन, जुगनू जैन, अनुज जैन, मनीष जैन, राजेश जैन, सुबोध जैन, अभिषेक जैन, सचिन जैन उपस्थित रहे।