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पंचांग: पाँच अंगो के माध्यम से ग्रहों की चाल की गणना

पंचांग अर्थात जिसके पाँच अंग है तिथि, नक्षत्र, करण, योग, वार। इन पाँच अंगो के माध्यम से ग्रहों की चाल की गणना होती है।

1.पंचांगो के क्या उपयोग है ?

पंचांग अपने प्रमुख पांच अंगों के अतिरिक्त हमारा और भी अनेक बातों से परिचय कराता है। जैसे ग्रहों का उदयास्त, उनकी गोचर स्थिति, उनका वक्री और मार्गी होना आदि। पंचांग देश में होने वाले व्रतोत्सवों, मेलों, दशहरा आदि का ज्ञान कराता है। इसलिए पंचांग का निर्माण सार्वभौम दृष्टिकोण के आधार पर किया जाता है।

काल के शुभाशुभत्व का यथार्थ ज्ञान भी पंचांग से ही होता है। साथ ही इसमें मौसम के साथ-साथ बाजार में तेजी तथा मंदी की स्थिति का उल्लेख भी रहता है।

ज्योतिषगणित के आधार पर निर्मित प्रतिष्ठित पंचांगों में संभावित ग्रहणों तथा विभिन्न योगों का विवरण रहता है। एक अच्छे पंचांग में विवाह मुहूर्त, यज्ञोपवीत, कर्णवेध, गृहारंभ, देवप्रतिष्ठा, व्यापार, वाहन क्रय, लेने-देन तथा अन्यान्य मुहूर्त और समय शुद्धि, आकाशीय परिषद में ग्रहों के चुनाव आदि का उल्लेख भी होता है। खेती करने के लिए और ओषधि बनाने के लिए भी मुहूर्त का जानना आवश्यक होता है।

2.पंचांगो का निर्माण कैसे करते है ?

पंचांग गणितीय विधि

पंचांग शब्द पाँच अंगो से मिलकर बना हैं जिसमे निम्न पाँच अंग होते हैं तिथि,वार,नक्षत्र,योग व करण |किसी भी कार्य करने हेतु उपयुक्त समय ज्ञात करना इन्ही पांचों अंगो पर निर्भर करता हैं जिसे मुहूर्त निकालना कहाँ जाता हैं |

आइए मुहूर्त के इन्ही पांचों अंगो को गणितीय विधि से निकालने का प्रयास करते हैं |

१)तिथि ….

अमावस्या के दिन से सूर्य ओर चन्द्र के भोगांशों का अंतर बढ्ने लगता हैं (अमावस्या को दोनों के भोगांश समान होते हैं ) इस अंतर का बढ़ना ही तिथि कहलाता हैं | जिसे गणितीय दृस्टी से निम्न सूत्र द्वारा ज्ञात किया जाता हैं |

तिथि=(चन्द्र भोगांश-सूर्य भोगांश)/12अंश
यदि चंद्रमा के भोगांश सूर्य भोगांश से कम हो तो चन्द्र भोगांश मे 12 राशियाँ जोड़ देते हैं |

आइये एक उदाहरण से तिथि निकालना सीखते हैं | चन्द्र भोगांश 2राशि 02अंश 26मिनट हैं तथा सूर्य भोगांश 11राशि 08अंश 14मिनट हैं तो तिथि होगी |
=(2-02-26)-(11-08-14)/12अंश
=(14-02-26)-(11-08-14)/12अंश
=(13-32-26)-(11-08-14)/12अंश
=(2-24-12)/12अंश
=(2*30=60)+24=84अंश 12मिनट/12अंश
(2 राशि यानि साठ अंश +24 अंश =84 अंश 12 कला को 12 से भाग देने पर हमें )
7-01 अर्थात “अष्टमी” तिथि प्राप्त होती हैं |

जैसे ही चन्द्र सूर्य से आगे बढ़ता हैं तो तिथि आरंभ होती हैं और जैसे ही इनका अंतर 12 अंश का हो जाता हैं तब तक पहली तिथि ही रहती हैं | जब तिथि का अंतर 0-180 होता हैं तब वह शुक्ल पक्ष की तिथि होती हैं जब यह अंतर 180-360 होता हैं तब तिथि कृष्ण पक्ष की होती हैं ll

उपरोक्त उदाहरण मे हमारी तिथि 84 अंश 12 कला की थी जो की 0-180 के मध्य मे आती हैं यानि यह तिथि शुक्ल पक्ष की अष्टमी हुई |

तिथियो के नाम- शुक्ल पक्ष तथा कृष्ण पक्ष मे तिथियो के नाम एक से ही रहते हैं परंतु शुक्ल पक्ष की 15वी तिथि पूर्णिमा तथा कृष्ण पक्ष की 15वी तिथि अमावस्या कहलाती हैं |कृष्ण पक्ष की तिथिया 1 से 15 के स्थान पर 16 से 30 भी लिखी जाती हैं |

तिथियो के नाम व संख्या….

प्रतिपदा (1,16), द्वितीया (2,17),तृतीया (3,18), चतुर्थी (4,19), पंचमी (5,20), षष्ठी (6,21), सप्तमी (7,22), अष्टमी (8,23), नवमी (9,24), दशमी (10,25),एकादशी (11,26),द्वादशी (12,27),त्रियोदशी (13,28),चतुर्दशी (14,29),पुर्णिमा/अमावस्या (15,30

2)वार….

सूर्योदय से अगले सूर्योदय तक के समय को वार कहाँ जाता हैं जिससे उस दिन के स्वामी की गणना की जाती हैं | वार मुख्यत; सात माने जाते हैं जिन्हे रवि,सोम,मंगल,बुध,गुरु,शुक्र व शनि वारो के नाम से बुलाया जाता हैं |

यह वार पृथ्वी से इन ग्रहो की दूरियो के अनुसार रखे गए हैं |सूर्य (1),बुध (4),शुक्र (6),चन्द्र (2),मंगल (3),गुरु (5),शनि (7).ll

वार ज्ञात करने की गणितीय विधि इस प्रकार से हैं ……

एक वर्ष मे सप्ताह निकालने पर एक दिन तथा लीप वर्ष मे दो दिन शेष मिलते हैं (365/7=52 शेष 1)जिससे 100 वर्षो मे 5 दिन अधिक हो जाते हैं (100+24 लीप दिन /7=17 शेष 5)

आइये इसे एक उदाहरण से सीखते हैं | 3 अप्रैल 2010 का वार क्या होगा ?
2000 वर्षो मे अधिक दिन =00
9 वर्षो मे अधिक दिन (9/7)=02
लीप वर्षो मे अधिक दिन =02
जनवरी 2010 के दिन (31/7)=03
फरवरी 2010 के दिन (28/7)=00
मार्च 2010 के दिन (31/7)=03
अप्रैल 2010 के दिन =03
कुल दिनो का योग =13 जिसे 7 से भाग देने पर हमें 6 शेष मिला जो की सोमवार से गिनने पर शनिवार का दिन हुआll

प्रस्तुत तरीके मे हम दिन सोमवार से ही गिनेंगे क्यूंकी एडी(एंटी डोमिनो) का आरम्भ सोमवार से माना गया हैं सोमवार को 1,मंगल को 2,………..तथा शनि को 6 गिना जाता हैं |

वार निकालने का एक अन्य सूत्र इस प्रकार से हैं –इसके लिए हमे एक ध्रुवांक सारणी की ज़रूरत पड़ती हैं |

क्रम माह जन फर मा अ म जू जु अ सि अ न दि
1 समान्य १ 4 4 0 2 5 0 3 6 1 4 6
2 लीपवर्ष 0 3 3 0 2 5 0 3 6 1 4 6
1)सर्वप्रथम दिये गए सन के दहाई अंक को 4 से भाग करे |(शताब्दी वर्ष मे 100 को भी जोड़ेंगे )
2) भागफल मे दिया गया वर्ष जोड़े (केवल दहाई )
3)इसमे दि गयी तारीख जोड़े |
4)फिर माह का ध्रुवांक जोड़े |
5) अब इसमे 7 का भाग कर शेष को रविवार से गिने |

आइए इसे एक उदाहरण से समझते हैं | 15-8-1947 का वार इस प्रकार देखेंगे ?
दहाई के अंक 47 को 4 से भाग देने पर भागफल 11 आया
इसमे दिया गया वर्ष 47 जोड़ा तो (11+47=58)आया
इसमे दि गयी तारीख जोड़ने पर 58+15=73 आया
जिसमे अगस्त माह का ध्रुवांक जोड़ने पर 73+3=76 आया
इसे 7 से भाग देने पर 6 शेष आया जो की रविवार से गिनने पर शुक्रवार आया यानि 15-8-1947 को शुक्रवार का दिन था |

नक्षत्र…

वैदिक ज्योतिष मे नक्षत्र का विशेष स्थान हैं प्रत्येक नक्षत्र का भोगांश 360/27=13 अंश 20 मिनट होता हैं कोई भी ग्रह किस नक्षत्र मे हैं इसका पता लगाने के लिए ग्रह के भोगांशों को 13 अंश 20 मिनट से भाग देकर भागफल मे एक जोड़ देना चाहिए जिससे ग्रह का नक्षत्र ज्ञात हो जाता हैं |

हमारे यहाँ (भारत मे )चंद्रमा के नक्षत्र को जन्म नक्षत्र कहाँ गया हैं अत; इसी जन्म नक्षत्र से शेष भोग्य दशा की गणना होती हैं |

यदि चन्द्र का भोगांश 236 अंश 43 मिनट हैं (चन्द्र राशि को 30 से गुना किया गया हैं ) तो नक्षत्र होगा |
(236*60)+43/(13*60)+20=14203/800=17.75375 अर्थात 18वा नक्षत्र जो की ज्येष्ठा नक्षत्र हैं जिसका चौथा चरण चल रहा हैं (नक्षत्र के चार चरण होते हैं ) यदि दशमलव 0 से 25 हो तो पहला चरण 25 से 50 हो तो दूसरा चरण 50 से 75 हो तो तीसरा चरण और 75 से ऊपर हो तो चौथा या अंतिम चरण होता हैं |

नक्षत्रो के नाम व स्वामी इस प्रकार से हैं |

1)अश्वनी10) मघा,19) मूल स्वामी {केतू}|
2)भरणी 11) पूर्वाफाल्गुनी 20) पूर्वाषाढ़ा स्वामी {शुक्र}|
3)कृतिका 12) उत्तराफाल्गुनी21) उत्तराषाढ़ा स्वामी {सूर्य}|
4)रोहिणी 13) हस्त 23) श्रवण स्वामी {चन्द्र}|
5)मृगशिरा 14) चित्रा 23) धनिष्ठा स्वामी {मंगल}|
6)आद्रा 15) स्वाति 24) शतभिषा स्वामी {राहू}|
7)पुनर्वसु 16) विशाखा 25) पूर्वा भाद्रपद स्वामी {गुरु}|
8)पुष्य 17) अनुराधा 26) उत्तरा भाद्रपद स्वामी {शनि}|
9)आश्लेषा 18) ज्येष्ठा 27) रेवती स्वामी {बुध}|

आइए अब एक उदाहरण देखते हैं | चन्द्र का भोगांश 2राशि 2अंश तथा 26मिनट हैंनक्षत्र बताए ?चन्द्र दो राशि चल चुका हैं इसलिए (2*30)+2=62 अंश 26 मिनट=(62*60)+26/800=3746/800=4.68 अर्थात 5 वा नक्षत्र जो की “मृगशिरा” हैं चूंकि दशमलव 50 से 75 के बीच हैं इसलिए तीसरा चरण चल रहा हैं |

योग….

कुल योगो की संख्या 27 हैं जो सूर्य और चन्द्र के भोगांश से जुड़कर समन्वय बनाते हैं | योग ज्ञात करने के लिए सूर्य व चन्द्र के भोगांशों को जोड़कर 13अंश 20मिनट अर्थात 800 मिनट से भाग देते हैं जो भागफल आता हैं उसमे एक जोड़ देते हैं |

यदि सूर्य का भोगांश 4राशि 23अंश 34मिनट हैं और चन्द्र का भोगांश 5राशि 16अंश 12मिनट हैं तो योग =(4राशि 23अंश 34मिनट +5राशि 16अंश 12मिनट )=10 राशि 9अंश 46मिनट हुआ, इसे 13 अंश 20मिनट अर्थात 800 मिनट से भाग देने पर हमें 23॰2325 प्राप्त होता हैं |
{(10*30)+9=309अंश 46मिनट/13अंश 20मिनट=(309*60)+46/800=18586/800=23.2325 }
इस 23 मे एक जोड़ने पर 24 हुआ जो की 24वा योग अर्थात “शुक्ल” योग हुआ |

योगो के नाम निम्न हैं |

1)विषकुंभ 10) गण्ड 19) परिधि
2)प्रीति 11) वृद्धि 20) शिव
3)आयुष्मान 12) ध्रुव 21) सिद्धा
4) सौभाग्य 13) व्याघात 22) साध्य
5)शोभन 14) हर्षना 23) शुभ
6) अतिगण्ड 15) वज्र 24) शुक्ल
7) सुकर्मा 16) सिद्धि 25) ब्रह्म
8 घृती 17) व्यतिपात 26) इंद्र
9) शूल 18) वरियान 27) वैधृति

आइए अब एक उदाहरण देखते हैं | सूर्य भोगांश 11राशि 8अंश14 मिनट हैं तथा चन्द्र भोगांश 2राशि 2अंश 26मिनट हैं योग बताए ?
(सूर्य भोगांश व चन्द्र भोगांश)जोड़ने पर={11राशि 8अंश 14मिनट+ 2राशि 2अंश 26मिनट}/13अंश 20मिनट =(13राशि 10अंश 40मिनट)/13राशि 20मिनट
=1राशि 10अंश 40मिनट/13अंश 20मिनट (12 राशियो से ज़्यादा होने पर 12 राशिया घटाए )
=(1*30)+10=40 अंश 40 मिनट =(40*60)+40/800=2440/800=3.05
=3+1=4 अर्थात चौथा योग जो की “सौभाग्य” नामक योग हुआ |

करण…..

एक तिथि के आधे भाग को “करण” कहते हैं (एक तिथि मे दो करण होते हैं ) इसे चन्द्र के भोगांश से सूर्य के भोगांश को घटाकर शेषफल को 6 अंशो से भाग देकर जाना जाता हैं |
करण=(चन्द्र भोगांश-सूर्य भोगांश)/6अंश

करण मुख्यत;11 होते हैं जिनमे 7 चर करण (बव,बालव,कौलव,तैतिल,गर,वनिज व विष्टि) तथा 4 स्थिर (शकुनि,चतुष्पाद,नाग व किन्तुघ्न) करण होते हैं |

यह 7 चर करण एक महीने मे 8 बार आते हैं जबकि स्थिर करण 4 बार आते हैं जिनसे कुल 60 (7*8+4=60) करण हो जाते हैं |

करणो का क्रम-
1)बव,2)
बालव,
3) कौलव,
4) तैतिल,
5) गर, 6)
वनिज,
7) विष्टि
8 शकुनि(कृष्णपक्ष की चतुर्दशी का दूसरा भाग),
9) चतुष्पाद(अमावस्या का पहला भाग ),
10) नाग(अमावस्या का दूसरा भाग ),
11) किन्तुघ्न(शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा का पहला भाग )
किन्तुघ्न से गणना आरंभ करने पर 7 (चर करण) 8 बार पुनरावरत होते हैं अर्थात दोबारा आते हैं (शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से कृष्णपक्ष की चतुर्दशी तक) अंत मे तीन स्थिर करण (कृष्ण पक्ष चतुर्दशी के दूसरे भाग से शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा के पहले भाग तक) आते हैं |

आइए इसे एक उदाहरण से समझते हैं | 23-3-2010 को सूर्य भोगांश 11राशि 8अंश 14मिनट हैं तथा चन्द्र भोगांश 2राशि 2अंश 26मिनट हैं तो करण बताए ?
=(2राशि 2अंश 26मिनट)-(11राशि 8अंश 14मिनट)/12अंश
=(14राशि 2अंश 26मिनट)-(11राशि 8अंश 14मिनट)/12अंश
=2राशि 24अंश 12मिनट /12अंश
=84अंश 12मिनट /12 अंश
=7.01(अष्टमी तिथि )
करण=84अंश 12मिनट /6अंश
=14.02 (पंद्रहवा करण) जो की किन्तुघ्न शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से गिनने पर “विष्टि” करण हुआ |

यदि भोगांश अंतर 0 से 180 के बीच आए तो तिथि शुक्लपक्ष की तथा 180 से 360 के बीच आए तो तिथि कृष्ण पक्ष की होगी इसी प्रकार यदि तिथि 12:00 बजे से पहले की हो तो दिन का पहला करण व तिथि 12:00 से अधिक की हो तो दिन का दूसरा करण होगा |

इस प्रकार हम पंचांग के पांचों तत्वो को गणितीय दृस्टी से निकाल कर मुहूर्त स्वयं प्राप्त कर सकते हैं।

Religious Desk

धर्म के गूढ़ रहस्यों और ज्ञान को जनमानस तक सरल भाषा में पहुंचा रहे श्री रवींद्र जायसवाल (द्वारिकाधीश डिवाइनमार्ट,वृंदावन) इस सेक्शन के वरिष्ठ सामग्री संपादक और वास्तु विशेषज्ञ हैं। वह धार्मिक और ज्योतिष संबंधी विषयों पर लिखते हैं।

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