Moradabad में लिव इन रिलेशनशिप का बढ़ता मामला: शादी का झांसा, विवाद और हृदयविदारक घटनाएं
Moradabad में लिव इन रिलेशनशिप के मामलों में पिछले कुछ समय में तेजी से इजाफा हुआ है। केवल पिछले पंद्रह दिनों में ही तीन ऐसे मामले स्थानीय थानों तक पहुंचे हैं, जिनमें से दो मामलों में एफआईआर दर्ज की गई है। यह घटनाएं समाज में लिव इन रिलेशनशिप को लेकर बढ़ती चिंताओं को दर्शाती हैं। आमतौर पर इन मामलों में युवतियों का आरोप होता है कि उन्हें शादी का झांसा देकर शारीरिक संबंध बनाए गए, जबकि युवक दावा करते हैं कि यह केवल सहमति से चल रही एक साझेदारी है, बिना शादी के दबाव के।
यह नया चलन न केवल मुरादाबाद में, बल्कि देश के कई छोटे-बड़े शहरों में तेजी से बढ़ रहा है। दिल्ली, मुंबई, नोएडा जैसे महानगरों में जहां लिव इन रिलेशनशिप सामान्य हो चुका है, वहीं मुरादाबाद जैसे शहरों में भी अब यह सामाजिक विवादों का विषय बनने लगा है।
लिव इन रिलेशनशिप के बढ़ते मामले और कानूनी पहलू
मुरादाबाद में दो मामलों में एफआईआर दर्ज की जा चुकी है, जबकि तीसरे मामले में महिला ने खुद कार्रवाई करने से इनकार कर दी। नारी उत्थान केंद्र में भी इन विवादों की काउंसलिंग चल रही है, जहां ऐसे जोड़ों को समझाया जाता है और उन्हें कानूनी व सामाजिक जानकारी दी जाती है।
काउंसलर एमपी सिंह ने बताया कि कई बार युवक-युवती दोनों सहमति से लिव इन में रहते हैं, लेकिन बाद में कई बार महिला आरोप लगाती है कि शादी का झांसा दिया गया था। वहीं, युवक कहते हैं कि यह एक समझौता था कि वे केवल साथ रहेंगे और शादी की कोई बात नहीं होगी।
नारी उत्थान केंद्र में उठ रहे मुद्दे
नारी उत्थान केंद्र में दो महीने पहले एक मामला आया, जहां पति अपने गांव में रहता था और पत्नी अपने बच्चे के साथ शहर में किराये के मकान में। पति ने आरोप लगाया कि उसकी पत्नी किसी युवक के साथ लिव इन में रह रही है। इस मामले में काउंसलिंग के दौरान महिला ने लिव इन को स्वीकार किया, लेकिन गांव लौटने से मना कर दिया। काउंसलिंग के बाद दोनों पक्षों के लोग समझौते पर पहुंचे और पति-पत्नी फिर साथ रहने को तैयार हुए।
यह घटना स्पष्ट रूप से दर्शाती है कि लिव इन रिलेशनशिप सामाजिक और पारिवारिक रिश्तों में जटिलताएं ला रही है, जहां पारंपरिक मान्यताएं टकरा रही हैं।
केस 1: शादी की बात आई तो युवक ने 50 लाख की मांग कर दी!
रामपुर की एक युवती, जो काशीपुर (उत्तराखंड) की एक फैक्टरी में नौकरी करती थी, उसका नाम सामने आया है। युवती और उसके साथी रिंकू के बीच संबंध हो गए और दोनों लिव इन में रहने लगे। 8 जुलाई की सुबह युवती ने अपने परिवार को फोन कर बताया कि रिंकू शादी के लिए राजी हो गया है और वे मंदिर जाकर शादी करने वाले हैं।
हालांकि, कुछ ही देर बाद युवती ने अपनी बहन को फोन कर घबराहट जताई और बताया कि उसे मंदिर में प्रसाद खिलाया गया है। परिजन जब अस्पताल पहुंचे तो उसकी मौत हो चुकी थी। इस दुखद मामले में रिंकू, उसकी मां रामवती, पिता चंद्रपाल, बहन मीरा, सुषमा और भाई जगत के खिलाफ हत्या का केस दर्ज किया गया है।
यह मामला मुरादाबाद में लिव इन रिलेशनशिप की काली सच्चाई को उजागर करता है, जहां विश्वासघात और धोखे ने एक युवती की जान ले ली।
केस 2: दुष्कर्म का आरोप और पुलिस थाने में हंगामा
सिविल लाइंस क्षेत्र की एक महिला ने 17 जुलाई की रात अपने लिव इन पार्टनर पर दुष्कर्म का आरोप लगाते हुए पुलिस थाने पहुंचकर हंगामा किया। उसने कार्रवाई की मांग की, लेकिन जब पुलिस कार्रवाई करने लगी तो महिला ने आरोप वापस ले लिया और अपने पार्टनर को साथ ले गई।
यह मामला लिव इन रिलेशनशिप में महिलाओं की सुरक्षा और उनके अधिकारों को लेकर गंभीर सवाल उठाता है। कानूनी तौर पर लिव इन रिलेशनशिप मान्यता प्राप्त है, लेकिन व्यवहार में इसके कई नकारात्मक पहलू सामने आते हैं।
लिव इन रिलेशनशिप: आधुनिकता या सामाजिक संकट?
नई पीढ़ी शादी की कठोर जिम्मेदारियों से बचने के लिए लिव इन को प्राथमिकता दे रही है। लेकिन क्या यह तरीका वास्तव में सुरक्षित और सम्मानजनक है? शादी सिर्फ दो व्यक्तियों का मेल नहीं, बल्कि दो परिवारों के बीच भी एक सामाजिक समझौता होता है।
लिव इन रिलेशनशिप में जन्मे बच्चों का भविष्य भी कई बार अनिश्चित रहता है। कई बार ऐसे बच्चे सामाजिक अस्वीकृति, मानसिक तनाव और आर्थिक अनिश्चितता का सामना करते हैं।
महिलाओं के लिए तो यह स्थिति और भी जटिल हो जाती है क्योंकि वे अक्सर आर्थिक और सामाजिक सुरक्षा के अभाव में परेशानियों से जूझती हैं।
मुरादाबाद में लिव इन रिलेशनशिप की बढ़ती चर्चाएं: सामाजिक और कानूनी कदम जरूरी
मुरादाबाद जैसे शहरों में जहां परंपरागत सोच अभी भी प्रबल है, वहां लिव इन रिलेशनशिप के मामले धीरे-धीरे बढ़ रहे हैं। इससे उत्पन्न विवाद न केवल परिवारों को प्रभावित कर रहे हैं, बल्कि पुलिस और सामाजिक संस्थाओं की भूमिका भी चुनौतीपूर्ण हो गई है।
नारी उत्थान केंद्र जैसी संस्थाएं महिलाओं को जागरूक करने और विवादों को सुलझाने का प्रयास कर रही हैं। इसके साथ ही, प्रशासन को भी इन मामलों की गंभीरता को समझते हुए उपयुक्त कानूनी और सामाजिक कदम उठाने की आवश्यकता है।

