शारदीय नवरात्र-2018
शारदीय नवरात्र (आज) से शुरू हो रहे हैं. नौ दिनों तक चलने वाली इस पूजा में मां दुर्गा के नौ रूपों की पूजा की जाती है. हिन्दू परंपरा के अनुसार इन 9 दिनों का विशेष महत्व होता है. मां दुर्गा की पूजा में विशेष पूजा स्थल पर ध्यान दिया जाता है| इन नौ दिनों में मां दुर्गा के नौ रूपों की पूजा की जाती है। अश्विन पक्ष में आने वाले नवरात्रे शारदीय नवरात्रे भी कहलाते हैं। नवरात्रों की शुरूआत सनातन काल से हुई थी। सबसे पहले भगवान रामचंद्र ने समुंद्र के किनारे नौ दिन तक दुर्गा मां का पूजन किया था और इसके बाद लंका की तरफ प्रस्थान किया था। फिर उन्होंने युद्ध में विजय भी प्राप्त की थी, इसलिए दसवें दिन दशहरा मनाया जाता है और माना जाता है कि अधर्म की धर्म पर जीत, असत्य की सत्य पर जीत के लिए दसवें दिन दशहरा मनाते हैं। मां दुर्गा का विशेष आशीर्वाद लेने की अगर कामना करते हैं तो आपको कुछ बातें विशेष तौर पर अपनानी होंगी। जिसमें सबसे पहले हैं शुभ मुहूर्त में पूजा करना। नवरात्र में लोग अपने घरों में कलश स्थापना करते हैं। ये कलश शुभ मुहूर्त में स्थापित करने से आपके जीवन में आने वाली परेशानियां खत्म हो जाती हैं। इस बार नवरात्रि का शुभ मुहूर्त सुबह 6 बजकर 3 मिनट से 8 बजकर 22 मिनट तक रहेगा। इसके बाद नौ दिन तक रोजाना मां दुर्गा का पूजन और उपवास किया जाता है। शारदीय (आश्विन) नवरात्र व्रत 10 अक्टूबर से शुरू होंगे और 19 अक्टूबर तक रहेंगें. नवरात्र में सबसे पहले व्रत का संकल्प लेना चाहिए. क्योंकि लोग अपने सामर्थ्य अनुसार दो, तीन या पूरे नौ के नौ दिन उपवास रखते हैं. इसलिए संकल्प लेते समय उसी प्रकार संकल्प लें जिस प्रकार आपको उपवास रखना है. इसके बाद ही घट स्थापना की प्रक्रिया आरंभ की जाती है.
घट–स्थापना का मुहूर्त 2018- घट स्थापना: सिर्फ एक घंटा दो मिनट
नवरात्रि कलश स्थापना शुभ मुहूर्त 10 अक्टूबर 2018 को बुधवार के दिन होगा. इस बार कलश स्थापना का शुभ मुहूर्त सिर्फ एक घंटे दो मिनट तक ही रहेगा. कलश स्थापना मुहूर्त सुबह 06:22 से 07:25 तक रहेगा. शुभ मुहूर्त में कलश स्थापना के लिए आपको सोमवार को ही सारी तैयारियां कर लेनी चाहिए.अगर इस दौरान किसी वजह से आप कलश स्थापित नहीं कर पाते हैं, तो 10 अक्टूबर को सुबह 11:36 बजे से 12:24 बजे तक अभिजीत मुहूर्त में भी कलश स्थापना कर सकते हैं.
शारदीय नवरात्रि 2018 में मां दुर्गा का आगमन नाव से होगा और हाथी पर मां की विदाई होगी। बंगला पंचांग के अनुसार, देवी अश्व यानी घोड़े पर सवार होकर आएंगी और डोली पर विदा होंगी।
इस बार नवरात्रि घट-स्थापना के लिए बहुतही कम समय प्राप्त हो रहा है। केवल एक घंटा दो मिनट के अंदर ही घट स्थापना की जा सकती है अन्यथा प्रतिपदा के स्थान पर द्वितीया को घट स्थापना होगी। घट स्थापना का शुभ मुहूर्त इस प्रकार रहेगा। पहली बार नवरात्र की घट स्थापना के लिए काफी कम समय मिल रहा है। यदि प्रतिपदा के दिन ही घट स्थापना करनी है तो आपको केवल एक घंटा दो मिनट मिलेंगे। सवेरे जल्दी उठना होगा और तैयारी करनी होगी। पिछले नवरात्र पर घट स्थापना के लिए मुहूर्त काफी थे , लेकिन कम समय के लिए प्रतिपदा होने से इस बार घट स्थापना के लिए कम समय है।
10 अक्तूबर- प्रात: 6.22 से 7.25 मिनट तक रहेगा ( यह समय कन्या और तुला का संधिकाल होगा जो देवी पूजन की घट स्थापना के लिए अतिश्रेष्ठ है।)
मुहूर्त की समयावधि- एक घंटा दो मिनट
ब्रह्म मुहूर्त- प्रात: 4.39 से 7.25 बजे तक का समय भी श्रेष्ठ है। 7.26 बजे से द्वितीया तिथि का प्रारम्भ हो जाएगा।
अखंड ज्योत का महत्व:
अखंड ज्योत को जलाने से घर में हमेशा मां दुर्गा की कृपा बनी रहता है. जरूरी नहीं कि हर घर में अखंड ज्योत जलें. दरअसल अखंड ज्योत के कुछ नियम होते हैं जिन्हें नवरात्र में पालन करना होता है. हिन्दू परंम्परा है कि जिन घरों में अखंड ज्योत जलाते है उन्हें जमीन पर सोना होता है.
कलश स्थापना से पहले अच्छे से पूजा और स्थापना स्थल को गंगाजल से पवित्र कर लें. व्रत का संकल्प लेने के बाद, मिट्टी की वेदी बनाकर ‘जौ बौया’ जाता है. दरअसल हिंदूओं में किसी भी शुभ कार्य की शुरुआत से पहले सर्वप्रथम भगवान श्री गणेश की पूजा की जाती है. चौकी पर लाल कपड़ा बिछाकर देवी जी और गणेश गौरी जी और नवग्रह स्थापित करें. उसके साथ जमीन पर जहां जौं बोया वहां कलश स्थापित करें. कलश पर मौली बांध दें और उस पर स्वस्तिक बना दे. कलश में 1 रुपए का सिक्का हल्दी की गांठ और दूर्वा डाल दें और पांच प्रकार के पत्तों से सजाएं.
कलश को सिकोरे से ढक दें और उसको चांवल से भर दें. इसके बाद उस पर नारियल स्थापित करें. कलश को भगवान विष्णु जी का ही रूप माना जाता है. पूजन में समस्त देवी-देवताओं का आह्वान करें. मिट्टी की वेदी पर सतनज और जौ बीजे जाते हैं, जिन्हें दशमी तिथि को पारण के समय काटा जाता है. नौ दिन ‘दुर्गा सप्तशती’ का पाठ किया जाता है. पाठ पूजन के समय अखंड जोत जलती रहनी चाहिए.
नवरात्रि की पहली तिथि में दुर्गा मां के प्रारूप मां शैलपुत्री की आराधना की जाती है. इस दिन सभी भक्त उपवास रखते हैं और सायंकाल में दुर्गा मां का पाठ और विधिपूर्वक पूजा करके अपना व्रत खोलते हैं.
मां के 9 रूपों की पूजा –
प्रतिपदा तिथि प्रारंभ- 09:16 (09 अक्टूबर 2018)
घट स्थापना तिथि और मुहूर्त- प्रातः 06:22 से 12:25 दोपहर (10 अक्टूबर 2018)
प्रतिपदा तिथि समाप्त- 07:25 (10 अक्टूबर 2018)
10 अक्टूबर (बुधवार) 2018: घट स्थापन और मां शैलपुत्री पूजा, मां ब्रह्मचारिणी पूजा
11 अक्टूबर (गुरुवार) 2018: मां चंद्रघंटा पूजा
12 अक्टूबर (शुक्रवार) 2018: मां कुष्मांडा पूजा
13 अक्टूबर (शनिवार) 2018: मां स्कंदमाता पूजा
14 अक्टूबरर (रविवार) 2018: सरस्वती आह्वाहन
15 अक्टूबर (सोमवार) 2018: मां कात्यायनी पूजा
16 अक्टूबर (मंगलवार) 2018: मां कालरात्रि पूजा
17 अक्टूबर (बुधवार) 2018: मां महागौरी पूजा, दुर्गा अष्टमी, महानवमी
18 अक्टूबर (गुरुवार) 2018: दुर्गा नवमी
19 अक्टूबर (शुक्रवार) 2018: नवरात्र पारायण/ विजय दशमी
कन्या पूजन: ध्यान रखे
कन्या पूजन करते समय ये बातें ध्यान रखेंगे तो नवरात्र के मनोरथ सिद्ध होंगे. नौ कन्याओं और एक लांगुरे को आमंत्रित करें. लांगुरे को माता के रक्षक हनुमान के रूप में बुलाया जाता है. याद रहे कि लांगुरे के बिना कन्या पूजन अधूरा रहेगा. सबसे पहले कन्याओं के पैर धोकर उन्हें आसन पर बैठाए। उनके हाथों में मौली यानी कलावा बांधें और माथे पर रोली से टीका लगाएं.
माँ की आरतियाँ……………..