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अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (ABVP) और भारतीय जनता पार्टी (BJP) के बीच का संबंध?

अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (ABVP) और भारतीय जनता पार्टी (BJP) के बीच का संबंध भारतीय राजनीति और शिक्षा प्रणाली में एक महत्वपूर्ण मुद्दा है। ABVP, जो खुद को दुनिया का सबसे बड़ा छात्र संगठन होने का दावा करता है, का 9 जुलाई को पंजीकरण दिवस मनाया जाता है। इस संगठन को शैक्षिक परिसरों में राष्ट्रीय छात्र दिवस के रूप में प्रचारित किया जाता है। इस लेख में, हम ABVP और BJP के बीच के संबंध, उनकी विचारधारा, राजनीति में उनकी भूमिका, और इन संगठनों के विवादों के बारे में विस्तार से चर्चा करेंगे।

ABVP की स्थापना और उसका उद्देश्य

अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (ABVP) की स्थापना 1949 में हुई थी। इसका उद्देश्य भारतीय छात्रों के बीच राष्ट्रीय चरित्र का निर्माण करना और उन्हें शिक्षा के माध्यम से सशक्त बनाना है। ABVP का मुख्य ध्येय छात्रों के बीच एकता और संगठनात्मक शक्ति का निर्माण करना है। ABVP के राष्ट्रीय महामंत्री याज्ञवल्क्य शुक्ला के अनुसार, “हम छात्रों के बीच एक संगठन नहीं बनना चाहते हैं, बल्कि संपूर्ण छात्रों का संगठन बनकर राष्ट्रीय पुनर्निर्माण के महान लक्ष्य की प्राप्ति करना चाहते हैं।”

ABVP और BJP का संबंध

ABVP और BJP के बीच संबंध लंबे समय से चर्चा का विषय रहे हैं। राजनीतिक पंडितों का मानना है कि ABVP कॉलेज और यूनिवर्सिटी परिसरों में छात्रों को हिंदुत्व के विचार से जोड़ता है। ABVP के कार्यकर्ता पढ़ाई पूरी करने के बाद भाजपा के यूथ विंग भारतीय जनता युवा मोर्चा (BJYM) में शामिल होते हैं, और वहां से उनकी क्षमता का आकलन कर उन्हें भाजपा नेतृत्व के अलग-अलग स्तरों के लिए तैयार किया जाता है। वर्तमान भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा, केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह, केंद्रीय रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह, और कई राज्यों के मुख्यमंत्री ABVP से जुड़े रहे हैं और वहीं से उन्होंने अपने राजनीतिक करियर की शुरुआत की।

ABVP और हिंदुत्व विचारधारा

हिंदुत्व की विचारधारा और उससे जुड़े संगठनों की कार्यपद्धति के गहन अध्येता फादर प्रकाश लुईस कहते हैं कि हिंदुत्व की विचारधारा के अलग-अलग क्षेत्रों में प्रसार के लिए राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) ने कई आनुषंगिक संगठनों की स्थापना की। विद्यार्थियों के बीच हिंदुत्व फैलाने के लिए ABVP की स्थापना की गई। यह सच है कि शुरूआती दिनों में ABVP पर भाजपा का नियंत्रण नहीं था। पर अब स्थिति बदल रही है और ABVP का BJP से संबंध बढ़ रहा है।

ABVP का स्वतंत्रता और विरोध

ABVP के राष्ट्रीय महामंत्री याज्ञवल्क्य शुक्ला के अनुसार, “विद्यार्थी परिषद आका नहीं, आइडियोलॉजी के आधार पर काम करती है।” शुक्ला कहते हैं कि ABVP कई बार मुद्दों के आधार पर भाजपा का विरोध भी करती है। उदाहरण के लिए, नीट में हुई गड़बड़ी के खिलाफ ABVP ने सीबीआई जांच की मांग भाजपा नीत केंद्र सरकार से की थी। बिहार में अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के परिसर के सवाल पर ABVP ने भाजपा के तत्कालीन उप मुख्यमंत्री सुशील कुमार मोदी के खिलाफ विरोध प्रदर्शन भी किया था।

राजनीति और ABVP का प्रभाव

ABVP का प्रभाव सिर्फ शैक्षिक परिसरों तक ही सीमित नहीं है। यह संगठन अपने कार्यकर्ताओं को राजनीति में भी प्रवेश करने के लिए प्रेरित करता है। ABVP के कार्यकर्ता भाजपा के विभिन्न स्तरों पर नेतृत्व की भूमिकाएं निभाते हैं। इस संगठन के कई सदस्य भाजपा के प्रमुख नेताओं के रूप में उभरकर सामने आए हैं। यह संगठन छात्रों को हिंदुत्व की विचारधारा के प्रति आकर्षित करता है और उन्हें भाजपा के लिए तैयार करता है।

ABVP के विरोध और विवाद

ABVP का विवादों से भी गहरा संबंध रहा है। यह संगठन अक्सर अपने कठोर और आक्रामक रवैये के लिए विवादों में घिर जाता है। कॉलेज और यूनिवर्सिटी परिसरों में ABVP के कार्यकर्ताओं के खिलाफ हिंसा और उत्पीड़न के आरोप लगते रहे हैं। कई बार ABVP पर अपने विचारों को बलपूर्वक थोपने और विरोधी विचारधाराओं को दबाने के आरोप भी लगते हैं। इसके बावजूद, ABVP छात्रों के बीच अपनी पकड़ मजबूत बनाए रखने में सफल रहा है।

अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (ABVP) और भारतीय जनता पार्टी (BJP) के बीच का संबंध एक जटिल और विवादास्पद मुद्दा है। यह संबंध भारतीय राजनीति और शिक्षा प्रणाली में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। ABVP का उद्देश्य छात्रों के बीच राष्ट्रीय चरित्र का निर्माण करना और उन्हें शिक्षा के माध्यम से सशक्त बनाना है। वहीं, ABVP के कार्यकर्ताओं का भाजपा में नेतृत्व की भूमिकाओं में उभरना और उनकी राजनीतिक सफलता इस संबंध को और भी महत्वपूर्ण बनाता है। यह संबंध राजनीति और शिक्षा के बीच के ताने-बाने को उजागर करता है और भारतीय समाज में विचारधाराओं के प्रसार को समझने में मदद करता है।


यह लेख ABVP और BJP के बीच के संबंधों, उनकी विचारधारा, राजनीति में उनकी भूमिका, और इन संगठनों के विवादों को विस्तार से समझने का प्रयास है। इस मुद्दे पर आगे भी चर्चा और विश्लेषण की आवश्यकता है ताकि हम भारतीय समाज और राजनीति में इन संगठनों के प्रभाव को बेहतर तरीके से समझ सकें

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