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छत्तीसगढ़ के बीजापुर में नक्सली हमले में 22 जवान शहीद, सीएम बघेल बोले व्यर्थ नहीं जाएगा बलिदान

राज्य के नक्सल विरोधी अभियान के पुलिस उप महानिरीक्षक ओपी पाल ने बताया कि शुक्रवार की रात बीजापुर और सुकमा जिले से केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल के कोबरा बटालियन, डीआरजी और एसटीएफ के संयुक्त दल को नक्सल विरोधी अभियान में रवाना किया गया था। 

उन्होंने बताया कि नक्सल विरोधी अभियान में बीजापुर जिले के तर्रेम, उसूर और पामेड़ से तथा सुकमा जिले के मिनपा और नरसापुरम से लगभग दो हजार जवान शामिल थे।

बीजापुर में कई वर्षों बाद इतना बड़ा हमला हुआ है। जोनागुड़ा की पहाड़ियों में सीआरपीएफ की कोबरा बटालियन, डीआरजी, एसटीएफ और बस्तरिया बटालियन के जवान नक्सलियों को घेरने पहुंचे थे। 

पहाड़ियों के किस हिस्से में नक्सली छिपे हो सकते हैं या वह प्वाइंट जहां घात लगाकर हमला हो सकता है, इसकी ‘खुफिया’ जानकारी में ऐसी सटीक सूचना का अभाव था। इसके उलट नक्सलियों को  इस ऑपरेशन की जानकारी थी।

केंद्रीय सुरक्षा बल के एक अधिकारी, जो तर्रेम ऑपरेशन से जुड़े हैं, उन्होंने बताया यह एक संयुक्त ऑपरेशन था। सब कुछ तय रणनीति के तहत हो रहा था।

सुरक्षा बलों की कई टीमें अलग-अलग दिशाओं में निकली हुई थी। जिस टीम पर हमला हुआ है, उसमें लगभग 400 जवान थे। नक्सलियों की संख्या 800 से अधिक बताई जा रही है। 

सीआरपीएफ के डीजी कुलदीप सिंह ने कहा कि अगर हमारी किसी भी तरह की विफलता होती तो इतने नक्सली नहीं मारे जाते। उन्होंने कहा कि घायल नक्सलियों एवं मृत नक्सलियों के शवों को ले जाने के लिए तीन ट्रैक्टरों का इस्तेमाल किया गया।

 

नक्सल हमले के बारे में जो खुफिया सूचना साझा की गई, उसमें एरिया का जिक्र था, प्वाइंट को लेकर कोई इनपुट नहीं था। बड़े क्षेत्र में फैली पहाड़ियों में ये कैसे पता चलता कि फलां प्वाइंट पर नक्सली बैठे हैं। सुरक्षा बलों की जिस टीम पर नक्सलियों ने हमला किया, बाकी टीमें वहां से काफी दूरी पर थीं। 

 करीब चार घंटे तक मुठभेड़ चलती रही। दूसरी टीमें मदद के लिए नहीं पहुंच सकी। नक्सलियों ने इसका भरपूर फायदा उठाया। उन्होंने शहीद जवानों के हथियार, गोला-बारुद व संचार उपकरण लूट लिए। इसके बावजूद जवानों ने भारी संख्या में नक्सली मार गिराए हैं।

 केंद्रीय गृह मंत्री ने गत दिनों सुरक्षा बलों की एक बैठक में कहा था कि नक्सली अपनी अंतिम लड़ाई लड़ रहे हैं। नक्सली हिंसा की घटनाओं में लगातार कमी हो रही है।

केंद्रीय गृह मंत्रालय में एलडब्लूई मामलों के वरिष्ठ सलाहकार और पूर्व आईपीएस के.विजय कुमार एवं दूसरे अधिकारी लंबे समय से इस ऑपरेशन की तैयारी में जुटे थे।

वे केवल पतझड़ शुरु होने का इंतजार कर रहे थे। छत्तीसगढ़ में कई जगहों पर ऐसे जंगल हैं, जहां दिन में भी कुछ नहीं दिखाई देता। जब पेड़ों के पत्ते झड़ने लगते हैं तो ही सुरक्षा बल, नक्सलियों के खिलाफ ऑपरेशन शुरु करते हैं। 

 

News Desk

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