Religious

महा मृत्युंजय का जाप

कोई आदमी मर रहा होता है, तो उस समय उसके सगे संबंधी किराए के ब्राह्मण द्वारा जप करवाते हैं , कि जिससे उसकी मृत्यु न हो अथवा थोड़े समय के लिए मृत्यु रुक जाए। यह मान्यता गलत है। शरीर तो निर्धारित किए गए समय पर छोड़ना ही पड़ता है। परंतु शरीर छोड़ने से पहले भयंकर रोगों का भोग बनकर असह्य शारीरिक यातनाओ को भोंगते हुए रोते -रोते शरीर छोड़ना न पड़े। इसलिए मनुष्य को अपने जीवन काल के दौरान स्वयं खुद ही मृत्युंजय का जप करना चाहिए , और संयमी जीवन जीना चाहिए।

मृत्युंजय के जप में ऐसी प्रार्थना नहीं आती, कि मेरी मौत रोक दे । मृत्युंजय के जाप में भगवान शंकर जो कि मृत्यु के देवता है माने जाते हैं । उन से निम्न अनुसार प्रार्थना की जाती है।

ॐ त्रयंबकं यजामहे सुगंधिम् पुष्टिवर्धनम्।
उर्वारुकमिव बन्धनान्मृत्योर्मृ क्षीय मामृतात्। ।

हे त्रंबकेश्वर भगवान शंकर! हम आपका यजन पूजन करते हैं आप हमारे जीवन में सुगंधी और पुष्टि का वर्ध्दन करें– वृद्धि करें , अर्थात हमारे जीवन की सुगंध बढे जीवन सुभाषित हो, और वह पुष्ट परिपक्व बने और उसकी वृद्धि हो (वृद्धि हो —बूढ़ा नहीं) ऐसा कीजिए। और फिर तरबूज की भाति हमें मृत्यु के बंधन में से मुक्त कीजिए।

तरबूज अपने वजन की अपेक्षा अत्यंत नाजुक, पतली, महीन बेल पर लगता है। मानव जीवन भी एक अत्यंत नाजुक महीन बेल के समान अथवा कच्चे सूत के धागे के समान है।

तरबूज जब बिल्कुल परिपक्व बन जाता है और अंदर से पक कर लाल सुर्ख और सुगंधी दार बन जाता है, तब उसकी बेल उसे अनायास ही प्राकृतिक ढंग से डंठल से अलग कर देती है।

तरबूज कच्चा होता है तब तक वह बेल से डंठल के द्वारा लगा रहता है, जो कि उसके जीवन की परिपक्वता पुष्टि और सुगंध का स्रोत है।

तरबूज जब वास्तव में परिपक्व हो जाता है, तब उसके ऊपर के छिलके का रंग हरा बदलता नहीं है । इसलिए तरबूज पक गया है या नहीं इसका पता हमें बाहर से नहीं चलता । परंतु जब उसकी बेल उसे प्राकृतिक रूप से ही डंठल से छोड़ देती है, तभी हम जान सकते हैं कि तरबूज बराबर परिपक्व, पुष्ट, सुभाषित, सुगंधित , लाल सुर्ख हो गया है।

उसी प्रकार संयम पूर्वक जीने पर हम जब हमारा जीवन वास्तव में परिपक्व- पुष्ट अर्थात वृद्ध ( बूढ़ा नहीं) बनता है तब प्राकृतिक रूप से ही किसी भी प्रकार के शारीरिक कष्ट को भोगे बिना मृत्युंजय भगवान यमदेव — मृत्यु के पाश में से शरीर को मुक्त कर देंगे। यही मृत्युंजय के जप का आशय है।

जिस प्रकार परिपक्व सुभाषित बना हुआ तरबूज लता बंधन से स्वत: छूट जाता है, उसी प्रकार में मृत्यु –पाश में से मुक्त हो जाऊं। जिस प्रकार तरबूज की बेल अपने फल को स्वयं लता के बंधन में बांधे रहती है और फल के पकने के बाद स्वयं उसे बंधन से मुक्त कर देती है उसी प्रकार भगवान शंकर स्वयं अपने भक्तों को मृत्यु– पाश से बंधन से मुक्त करने वाले एवं अमृत तत्व प्रदान करने वाले हैं।

 

महामृत्युंजय-मन्त्र की साधना

News Desk

निष्पक्ष NEWS.जो मुख्यतः मेन स्ट्रीम MEDIA का हिस्सा नहीं बन पाती हैं।

News Desk has 15035 posts and counting. See all posts by News Desk

Avatar Of News Desk

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

one + 20 =