China ने Tibet क्षेत्र में किया बड़ा निर्माण, Indian Army को बेहतर सड़कों की जरूरत- Attorney General
केंद्र ने Supreme court को बताया है कि China ने Tibet क्षेत्र में बड़ा निर्माण किया है और सेना को 1962 जैसी युद्ध स्थिति से बचने के लिए भारत-चीन सीमा तक भारी वाहनों को ले जाने के लिए चौड़ी सड़कों की जरूरत है। केंद्र ने कहा है कि सेना को किसी भी आपात स्थिति के लिए तैयार रहने की जरूरत है और हम 1962 जैसी स्थिति नहीं होने दे सकते। इस पर कोर्ट ने कहा कि राष्ट्र की रक्षा और पर्यावरण की सुरक्षा के साथ सभी विकास टिकाऊ और संतुलित होने चाहिए। इस दौरान कोर्ट ने इस बात पर भी ध्यान दिलाया कि कोर्ट देश की रक्षा जरूरतों का अनुमान नहीं लगा सकती है।
केंद्र की ओर से पेश अटॉर्नी जनरल केके वेणुगोपाल ने न्यायमूर्ति डीवाई चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति सूर्यकांत और न्यायमूर्ति विक्रमनाथ की पीठ को बताया कि भारत-चीन सीमा पर हालिया घटनाक्रम के कारण सेना को बेहतर सड़कों की जरूरत है।
उन्होंने कहा कि सीमा के दूसरी तरफ व्यापक निर्माण हुआ है। उन्होंने (चीन) बुनियादी ढांचा तैयार किया है और हवाई पट्टियों, हेलीपैड, सड़कों, रेलवे लाइन नेटवर्क का निर्माण किया है जो इस धारणा पर आगे बढ़े हैं कि वे स्थायी रूप से वहां रहेंगे। उन्होंने 8 सितंबर, 2020 के आदेश में संशोधन का आग्रह किया।
बता दें कि रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण 900 किलोमीटर की परियोजना का उद्देश्य उत्तराखंड में चार पवित्र शहरों – यमुनोत्री, गंगोत्री, केदारनाथ और बद्रीनाथ को हर मौसम में कनेक्टिविटी प्रदान करना है।
वेणुगोपाल ने कहा कि सेना की समस्या यह है कि उसे सैनिकों, टैंकों, भारी तोपखाने और मशीनरी को स्थानांतरित करने की आवश्यकता होती है। ऐसा नहीं होना चाहिए कि जैसा कि 1962 में चीन सीमा तक राशन की आपूर्ति पैदल ही की जाती थी। अगर सड़क टू-लेन नहीं है तो सड़क बनाने का उद्देश्य विफल हो जाएगा। इसलिए सात मीटर (या 7.5 मीटर अगर मार्ग उठा हुआ हो) की चौड़ाई के साथ डबल लेन की अनुमति दी जानी चाहिए।
इस पर सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि वह इस तथ्य को नजरअंदाज नहीं कर सकती है कि एक विरोधी है, जिसने सीमा तक बुनियादी ढांचे का विकास किया है और सेना को सीमा तक बेहतर सड़कों की जरूरत है, जिसमें 1962 के युद्ध के बाद से कोई आमूलचूल परिवर्तन नहीं देखा गया है।
वहीं एनजीओ ग्रीन दून फॉर सिटीजन्स की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता कॉलिन गोंजाल्विस ने कहा कि तत्कालीन सेना प्रमुख ने कहा था कि चौड़ी सड़कों की कोई जरूरत नहीं है और सैनिकों को हवाई मार्ग से ले जाया जा सकता है, तो पीठ ने कहा कि बयान पूरी तरह से सही नहीं हो सकता।
संयुक्त राज्य अमेरिका की रक्षा विभाग की एक रिपोर्ट में दावा किया गया कि चीन ने तिब्बत स्वायत्त क्षेत्र और अरुणाचल प्रदेश के बीच विवादित हिस्से में 100 घरों वाला गांव बसाया है। इस रिपोर्ट को लेकर अब भारतीय सुरक्षा प्रतिष्ठान ने मंगलवार को जवाब दिया। कहा गया है कि अरुणाचल प्रदेश के ऊपरी सुबनसिरी जिले में विवादित सीमा पर गांव के निर्माण वाले क्षेत्र पर बीजिंग का 1959 से कब्जा है।
हालांकि, तथ्य यह भी है कि त्सारी चू नदी के तट पर जहां 100 घरों का गांव बसाया गया है, भारत उस क्षेत्र पर अपना अधिकार मानता है। सेना के एक अधिकारी ने कहा, “बसाए गये गांव की जगह को भारतीय सेना चीन के कब्जे के रूप में मानती है। इस बारे में कुछ किया नहीं जा सकता।
सूत्र ने कहा कि चीनी सेना ने अरुणाचल प्रदेश के सीमांत क्षेत्र में 1959 में एक ऑपरेशन में असम राइफल्स की चौकी पर हमला कर कब्जा किया था। इसके बाद ही चीन ने उस इलाके में गांव बसा दिया। इस क्षेत्र में चीन ने सेना की एक चौकी बना रखी है। वहीं इस तरह का निर्माण अचानक नहीं किया गया है, बल्कि लंबे समय से यह हो रहा है।
दरअसल चीन पिछले कुछ सालों से पूर्वी लद्दाख से अरुणाचल प्रदेश तक फैली 3,488 किलोमीटर की वास्तविक नियंत्रण रेखा (LAC) के साथ 628 ‘ज़ियाओकांग’ मॉडल सीमा रक्षा गांवों का निर्माण कर रहा है। अधिकारी ने कहा, “इनमें से कई गांव एलएसी के चीनी क्षेत्र में हैं और कुछ विवादित क्षेत्र में हैं, जैसे अरुणाचल प्रदेश का क्षेत्र है।
हालांकि अमेरिकी रिपोर्ट में विवादित क्षेत्र में 100 घरों की पुष्टि को लेकर चीन खंडन करता है। बता दें कि चीन ने 2019 की सेटेलाइट तस्वीरें जारी की थी और कहा कि विवादित क्षेत्र में किसी भी तरह का निर्माण कार्य नहीं किया गया।