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होलिका दहन: जानें शुभ मुहूर्त, पूजा विधि और कथा

होली 2020: 9 मार्च को होलिका दहन, जानें शुभ मुहूर्त, पूजा विधि और कथा 🌷

फाल्गुन शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि और सोमवार के दिन होलिका दहन का त्योहार मनाया जाएगा। यह त्योहार हिंदू धर्म के प्रमुख त्योहारों में से एक माना जाता है। इस बार ये त्योहार 9 मार्च को मनाया जाएगा। आचार्य श्री गोपी राम के अनुसार पूर्णिमा तिथि देर रात 11 बजकर 18 मिनट तक रहेगी| उसके बाद चैत्र कृष्ण पक्ष की प्रतिपदा तिथि लग जायेंगी। शास्त्रों में फाल्गुन पूर्णिमा का धार्मिक, सामाजिक और सांस्कृतिक महत्व है। धार्मिक मान्यता के अनुसार फाल्गुन पूर्णिमा का उपवास रखने से मनुष्य के दुखों का नाश होता है और उस पर भगवान विष्णु की विशेष कृपा होती है।

होलिका दहन के दिन को बुराई पर अच्छाई का दिन है। वहीं इसके दूसरे दिन एक-दूसरे को अबीर, गुलाल लगाकर होली का त्योहार खेला जायेगा। फ़िलहाल बात करते है होलिका दहन की। होलिका का ये त्योहार बहुत पुराने समय से मनाया जा रहा है। जैमिनी सूत्र में इसका आरम्भिक शब्दरूप ‘होलाका’ बताया गया है। वहीं हेमाद्रि, कालविवेक के पृष्ठ 106 पर होलिका को ‘हुताशनी’ कहा गया है। जबकि लिंगपुराण में फाल्गुन पूर्णिमा को ‘फाल्गुनिका’ कहा गया है। वहीं भारतीय इतिहास में इस दिन को भक्त प्रहलाद की जीत से जोड़कर देखा जाता है।

👉🏻 होलिका दहन का शुभ मुहूर्त

पूर्णिमा तिथि प्रारम्भ: 9 मार्च सुबह 3 बजकर 5 मिनट से
पूर्णिमा तिथि समाप्त: 9 मार्च रात 11 बजकर 18 मिनट तक।

🔯 होलिका दहन का मुहूर्त:

होलिका दहन प्रदोष काल के बाद किया जायेगा | क्योंकि 9 मार्च को 1 बजकर 11 मिनट तक पृथ्वी लोक की भद्रा रहेगी। जब चंद्रमा कर्क, सिंह, कुंभ और मीन राशि में होता है, तो पृथ्वी लोक की भद्रा होती है और आज चन्द्रमा सिंह राशि में है। इसके साथ ही आज से होलाष्टक भी समाप्त हो जायेंगे, जिसके चलते विवाह आदि सभी शुभ कार्य अब फिर से शुरू हो जायेंगे।

💁🏻‍♀ होलिका दहन की पौराणिक कथा

माना जाता है कि- प्राचीन काल में हिरण्यकश्यप नाम का अत्यंत बलशाली राजा था, जो भगवान में बिल्कुल भी विश्वास नहीं रखता था, लेकिन उसका पुत्र प्रहलाद श्री विष्णु का परम भक्त था। एक दिन हिरण्यकश्यप ने प्रहलाद से तंग आकर, उसे मारने के लिये अपनी बहन होलिका को प्रहलाद के साथ अग्नि में बैठने को कहा। परन्तु होलिका को आग में न जलने का वरदान प्राप्त होने के बाद भी वह आग में जल गई और भक्त प्रहलाद बच गया। बुराई पर अच्छाई की इसी जीत के बाद ही होलिकादहन का यह त्योहार मनाया जाने लगा। होलिकादहन के समय ऐसी परंपरा भी है कि होली का जो डंडा गाडा जाता है, उसे प्रहलाद के प्रतीक स्वरुप होली जलने के बीच में ही निकाल लिया जाता है।

🍱 होलिका दहन सामग्री

एक लोटा जल, चावल, गन्ध, पुष्प, माला, रोली, कच्चा सूत, गुड़, साबुत हल्दी, मूंग, बताशे, गुलाल, नारियल, गेंहू की बालियां आदि पहले से रख लें।

🔥 होलिका दहन पूजा विधि

होलिका दहन के शुभ मुहूर्त से पहले पूजन सामग्री के साथ-साथ 4 मालाएं अलग जरूर ले लें। पहली माला पितरों की, दूसरी हनुमान जी, तीसरी शीतला माता और चौथी घर परिवार के नाम की होती है। अब दहन से पूर्व श्रद्धापूर्वक होली के चारों ओर परिक्रमा करते हुए सूत के धागे को लपेटते हुए चलते जाए। आपको कम से कम 5 या 7 परिक्रमा करनी हैं। परिक्रमा के बाद एक-एक कर सारी पूजन सामग्री होलिका में अर्पित करें। फिर जल से अर्घ्‍य दें। इसके बाद घर के सदस्‍यों को तिलक लगाएं। इसके बाद होलिका में अग्नि लगाएं। ​होलिका पूजा के बाद होली की परिक्रमा करनी चाहिए और होली में जौ या गेहूं की बाली, चना, मूंग, चावल, नारियल, गन्ना, बताशे आदि चीज़ें डालनी चाहिए |

💩 गोबर के उपले जलाने से मिलात है स्वास्थ्य लाभ

इस दिन लकड़ियों के ढेर के साथ ही गोबर के उपले या कंडे जलाने की भी प्रथा है। यहां गौर करने की बात ये है कि- हमारे शास्त्रों में या हमारी परम्पराओं में हर चीज़ बड़ी ही सोच-समझकर बनायी गयी है। इन सबसे हमें कहीं-न-कहीं फायदा जरूर होता है। इसी तरह से आज के दिन गोबर के उपलों को जलाने के पीछे भी हमारी ही भलाई छिपी हुई है। दरअसल इस समय ये जो मौसम चल रहा है, इसमें वायुमंडल की स्थिति कुछ ऐसी होती है कि इसमें आस-पास बहुत से कीटाणु पनपने लगते हैं और ये कीटाणु डायरेक्ट या इनडायरेक्ट रूप से हमारी सेहत को इफेक्ट करते हैं और गोबर के अंदर कुछ ऐसी प्रॉपर्टीज़ होती हैं, जिससे उन्हें जलाने पर हमारे आस-पास मौजूद कीटाणु मर जाते हैं, साथ ही हमारी सेहत भी अच्छी होती है।

 अपनी राशि के अनुसार डालें आहुति
इस साल 9 मार्च 2020 को होलिका दहन और 10 मार्च 2020 को रंगों का त्योहार मनाया जाएगा। नौ मार्च को होलिका दहन का शुभ मुहूर्त प्रदोष काल से मध्यरात्रि से कुछ समय पूर्व तक है। प्रदोष काल सूर्यास्त 6:42 बजे से लेकर निशामुख रात्रि 11 बजकर 26 मिनट तक है। होलिका दहन के दिन सुबह 6:08 मिनट से लेकर दोपहर 12:32 बजे तक भद्रा है। भद्रा को विघ्नकारक माना गया है। शाहजहांपुर में श्रीरुद्र बालाजी धाम के पंडित डा. कान्हा कृष्ण शुक्ल बताते हैं कि भद्रा में होलिका दहन करने से हानि और अशुभ फल मिलते हैं। इसी भद्रा में होलिका दहन नहीं किया जाता है।

राशियों के अनुसार होलिका में डालें आहुति
=मेष और वृश्चिक राशि के लोग गुड़ की आहुति दें।
=वृष राशि वाले होलिका में चीनी की
=मिथुन और कन्या राशि के लोग कपूर की
=कर्क के लोग लोहबान की
=सिंह राशि के लोग गुड़ की
=तुला राशि वाले कपूर की
=धनु और मीन के लोग जौ और चना की
=मकर व कुंभ वाले तिल कr होलिका दहन में आहुति दें।

होलिका दहन 2020 पूजा की विधि
होलिका दहन से पहले विधि विधान के साथ होलिका की पूजा करें। इस दौरान होलिका के सामने पूर्व या उतर दिशा की ओर मुख करके पूजा करने का विधान है। पहले होलिका को आचमन से जल लेकर सांकेतिक रूप से स्नान के लिए जल अर्पण करें। इसके पश्चात कच्चे सूत को होलिका के चारों और तीन या सात परिक्रमा करते हुए लपेटना है। सूत के माध्यम से उन्हें वस्त्र अर्पण किये जाते हैं। फिर रोली, अक्षत, फूल, फूल माला, धूप, दीप, नैवेद्य अर्पित करें। पूजन के बाद लोटे में जल लेकर उसमें पुष्प, अक्षत, सुगन्ध मिला कर अघ् र्य दें। इस दौरान नई फसल के कुछ अंश जैसे पके चने और गेंहूं, जौं की बालियां भी होलिका को अर्पण करने का विधान है।

नकारात्मक शक्तियों के प्रभाव से बचने को होलिका दहन करें
=पुराणों और शास्त्रों में चार सिद्ध रात्रि में से होलिका दहन वाली रात को भी सिद्ध रात्रि माना गया है। नकारात्मक शक्तियों के प्रभाव से बचने के लिए होलिका दहन को सबसे अच्छा माना जाता है। इस दिन किए गए प्रयोग से मनचाहा फल मिलता है। नवग्रह जनित पीड़ा से निवारण के लिए अपनी राशि के अनुसार होलिका दहन में लकड़ी जरूर अर्पित करनी चाहिए। फिर होलिका के सात फेरे लगाना चाहिए ।
=मेष और वृश्चिक राशि के लोग होलिका दहन के समय खैर की लकड़ी
=वृष और तुला राशि वाले होलिका दहन वाले दिन गूलर की लकड़ी
=मिथुन और कन्या राशि के लोगों के लिए अपामार्ग की लकड़ी
=धनु और मीन राशि के लोगों के लिए पीपल की लकड़ी होलिका में डालें
=फिर राशि के अनुसार होलिका में द्रव्यों की आहुति डालें ।

उपाय: होलिका से अपनी मुश्किलों से ऐसे कम सकते हैं
=शरीर की उबटन को होलिका में जलाने से नकारात्मक शक्तियां दूर होती हैं।
=सफलता प्राप्ति को होलिका दहन स्थल पर नारियल, पान तथा सुपारी भेंट करें।
=गृह क्लेश से निजात पाने और सुख-शांति के लिए होलिका की अग्नि में जौ-आटा चढ़ाएं।
=भय और कर्ज से निजात पाने के लिए नरसिंह स्रोत का पाठ करना लाभदायक होता है।
=होलिका दहन के बाद जलती अग्नि में नारियल दहन करने से नौकरी की बाधाएं दूर होती हैं।
=घर, दुकान और कार्यस्थल की नजर उतार कर उसे होलिका में दहन करने से लाभ होता है।
=होलिका दहन के दूसरे दिन राख लेकर उसे लाल रुमाल में बांधकर पैसों के स्थान पर रखने से बेकार खर्च रुक जाते हैं।
=लगातार बीमारी से परेशान हैं तो होलिका दहन के बाद बची राख मरीज़ के सोने वाले स्थान पर छिड़कने से लाभ मिलता है।
=बुरी नजर से बचाव के लिए गाय के गोबर में जौ, अरसी और कुश मिलाकर छोटा उपला बना कर इसे घर के मुख्य दरवाज़े पर लटका दें।

शादी नहीं हो रही है तो होली पर करें यह उपाय
=जिन जातकों की शादी नहीं हो रही है और विलंब हो रहा है तो होली के दिन शिव मंदिर में पूजा करें। इसके साथ ही शिवलिंग पर पान, सुपारी और हल्दी की गांठ भी अर्पित करें। शादी की परेशानियों से छुटकारा पाने के लिए होलिका दहन के दौरान पांच सुपारी, पांच इलायची, मेवे, हल्दी की गांठ और पीले चावल लें जाए और इसकी पूजा कर इसे घर में देवी के सामने रख दें। ऐसा करने से शादी में आने वाली बाधाएं दूर हो जाती है और जल्द ही विवाह के योग बन जाते हैं। दांपत्य जीवन में शांति के लिए होली की रात उत्तर दिशा में एक पाट पर सफेद कपड़ा बिछा कर उस पर मूंग, चने की दाल, चावल, गेहूं, मसूर, काले उड़द एवं तिल के ढेर पर नव ग्रह यंत्र स्थापित करें। इसके बाद केसर का तिलक कर घी का दीपक जला कर पूजन करें।

नवविवाहिताओं को होली पर जाना चाहिए मायके

शास्त्रीय परम्परा के अनुसार नवविवाहिता को अपनी पहली होली पर मायके जाना चाहिए। होली के मौके पर सभी नई दुल्हन अपनी पहली होली अपने मायके में ही मनाती हैं। इस परंपरा को सालों से निभाया जा रहा है। होली के मौके पर नवविवाहिता अपने मायके चली जाती है और वहीं पर अपनी पहली होली मनाती है। माना जाता है कि शादी के बाद पहली होली पिहर में खेलने से एक नवविवाहिता का जीवन सुखमय और सौहार्द पूर्ण बीतता है। इसके साथ ही कुछ जगहों पर यह रिवाज इसलिए भी है कि शादी के बाद मायके में होली और पति से दूरी उनके बीच के प्रेम को और भी ज्यादा बढ़ा देता है।

पहली होली नवविवाहिता और सास के लिए अशुभ
पहली होली सास और बहू एक साथ कभी नहीं देखती, क्योंकि सास और नई बहू का एक साथ होली को जलते देखना अशुभ माना जाता है, जिसका असर घर के लोगों पर पड़ता है। यह भी मत है कि यदि कोई सास और नविवाहिता एक साथ होली को जलता हुआ देखती है तो उनमें से किसी एक की मृत्यु भी हो सकती है। इसी कारण से पहली होली पर नवविवाहिता अपने मायके जाकर ही पहली होली खेलती है। पति और पत्नी के बीच इस अहसास को बढ़ाने के लिए मायके में पहली होली मनाने की परम्परा शुरू की गई थी।

वायरस से बचने को होलिका में डालें हवन सामग्री
होलिका दहन में प्रत्येक परिवार से आधा किलो हवन सामग्री के साथ 50 ग्राम कपूर और 10 ग्राम सफेद इलायची मिलाकर होलिका में अवश्य डालें, जिससे प्रदूषित वातावरण शुद्ध होगा, कोरोना जैसे वायरस भी नष्ट हो सकेंगे। इसके बाद प्रतिदिन सुबह गाय के गोबर से बने कंडे को जला कर अपने इष्ट का 21 बार नाम लेकर आहुति देकर हवन अवश्य करें। ऐसा करने से कोरोना जैसे वायरस से बचाओ हो सकेगा।

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