चीन को करारा जवाब: Doklam तक ऑल वेदर रोड बनाकर Bhutan में भारत ने रचा इतिहास?
भूटान में भारत की बॉर्डर रोड्स ऑर्गनाइजेशन (BRO) द्वारा बनाई जा रही सड़कें क्षेत्रीय सुरक्षा और विकास के लिए बेहद अहम हैं। यह परियोजना न केवल भूटान के लिए बल्कि भारत के सामरिक हितों के लिए भी मील का पत्थर साबित हो रही है। BRO की सबसे पुरानी परियोजनाओं में से एक ‘दंतक’ परियोजना के तहत भूटान में अब तक लगभग 1650 किलोमीटर पक्की सड़कें बनाई जा चुकी हैं। इन सड़कों ने भूटान के दूर-दराज इलाकों को जोड़ने के साथ-साथ सैन्य और आर्थिक दृष्टिकोण से नई ताकत दी है।
भारत और Bhutan की साझेदारी एक बार फिर इतिहास रचने जा रही है। रोड टू डोकलाम अब सिर्फ एक निर्माण परियोजना नहीं बल्कि एक रणनीतिक संदेश बन चुकी है। भूटान की हा घाटी से Doklamतक बनी ऑल वेदर रोड न सिर्फ क्षेत्रीय संपर्क को बेहतर बनाएगी बल्कि चीन के बढ़ते विस्तारवाद को चुनौती भी देगी। यह सड़क ‘ROAD TO DOKLAM’ प्रोजेक्ट दंतक के तहत सीमा सड़क संगठन (BRO) की सबसे पुरानी परियोजनाओं में से एक मानी जा रही है।
ऑल वेदर रोड: एक गेम चेंजर परियोजना
1 अगस्त 2025 को Bhutan के प्रधानमंत्री ल्योंछेन दाशो शेरिंग तोबगे इसका औपचारिक उद्घाटन करेंगे। इस ऐतिहासिक मौके पर भारत से डॉयरेक्टर जनरल बॉर्डर रोड्स लेफ्टिनेंट जनरल रघु श्रीनिवासन भी मौजूद रहेंगे। वानाखा से हा तक लगभग 1650 किलोमीटर की दूरी तय करती यह ऑल वेदर रोड अब डोकलाम तक भारतीय प्रभाव को सुनिश्चित करेगी। इस सड़क को प्राथमिक राष्ट्रीय राजमार्ग मानकों के अनुरूप अपग्रेड किया गया है।
254 करोड़ रुपये की लागत से बनी इस सड़क में पांच नए मजबूत पुल, सुरक्षा अवसंरचना, और मौसम प्रतिरोधी सतह शामिल हैं। यह न केवल भूटान के पश्चिमी हिस्से में चुंबी वैली तक फौजी आवाजाही को आसान बनाएगी, बल्कि पर्यटन, व्यापार और रसद संचालन को भी गति देगी। भारत और भूटान दोनों के लिए यह परियोजना सामरिक और आर्थिक दृष्टि से बेहद महत्वपूर्ण साबित होने जा रही है।
भूटान ने दिखाया मास्टर स्ट्रोक, चीन की बढ़ती हरकतों पर लगा ब्रेक
2017 में डोकलाम विवाद के दौरान भारतीय सेना ने चीन की पीपल्स लिबरेशन आर्मी को तोरसा नाले के पार सड़क निर्माण से रोक दिया था। यह वही डोकलाम है जो भूटान की जमीन है लेकिन चीन इस पर दावा करता रहा है। उस समय भारत ने न सिर्फ चीन के मंसूबों को ध्वस्त किया था बल्कि अंतरराष्ट्रीय मंच पर अपनी स्थिति भी मजबूत की थी।
अब, उसी इलाके में भूटान ने भारत की मदद से इस रणनीतिक सड़क का निर्माण कर चीन को स्पष्ट संकेत दे दिया है कि उसकी विस्तारवादी नीतियों को अब खुला मैदान नहीं मिलेगा। तिब्बत की चुंबी वैली से सटी हा घाटी में बनाई गई यह सड़क चीन की आक्रामकता के खिलाफ एक मजबूत दीवार का काम करेगी।
भारत-भूटान की दोस्ती: सामरिक सुरक्षा की गारंटी
भारत और भूटान का संबंध सिर्फ मित्रता तक सीमित नहीं है, यह अब सामरिक गहराई तक पहुंच चुका है। जब भूटान ने चीन के खिलाफ आक्रामक नीतियों को देखते हुए मदद मांगी, तो भारत ने बिना देरी किए दंतक प्रोजेक्ट को फिर से जीवित किया। यह सड़क न केवल भूटान की रॉयल आर्मी को चुंबी वैली तक त्वरित पहुंच दिलाएगी, बल्कि भारत को चीन की हरकतों पर नजर रखने में भी मददगार साबित होगी।
चुंबी वैली, जो कि रणनीतिक दृष्टि से बेहद महत्वपूर्ण है, वहां चीन की उपस्थिति और ट्रूप मूवमेंट अब भारत और भूटान दोनों की नजरों में रहेगी। साथ ही, इस क्षेत्र में भारतीय सहायता से बने भूटानी पोस्ट अब और अधिक सशक्त हो जाएंगे।
भूटान की जमीन पर कब्जा करने की चीन की कोशिशें
भूटान और चीन के बीच लगभग 477 किलोमीटर लंबी सीमा रेखा विवाद का विषय रही है। डोकलाम (269 वर्ग किलोमीटर), जकारलुंग और पासमलुंग घाटी (495 वर्ग किलोमीटर) लंबे समय से चीन के निशाने पर हैं। लेकिन चीन यहीं नहीं रुका। उसने भूटान के ईस्ट में सकतेंग वाइल्ड लाइफ सेंचुरी पर भी दावा ठोक दिया।
2020 की ग्लोबल एनवायरनमेंट मीटिंग के दौरान चीन ने अचानक सकतेंग क्षेत्र को विवादित घोषित कर दिया, जबकि भूटान की इस सीमा का चीन से कोई सीधा वास्ता नहीं है। भूटान ने स्पष्ट रूप से इस दावे को खारिज कर दिया, लेकिन चीन की मंशा जाहिर हो गई कि वह हर कीमत पर पूर्वोत्तर के इलाकों पर दबाव बनाना चाहता है।
रॉयल भूटान आर्मी की पेट्रोलिंग पर भी चीन की आपत्ति
अब तक केवल भारत से ही टकराव करने वाले चीन ने भूटान की रॉयल आर्मी (RBA) की पेट्रोलिंग पर भी रोक लगाने की कोशिश की। सूत्रों के अनुसार, डोकलाम के करीब अमो-छू नदी के किनारे जब RBA के सैनिक अपने क्षेत्र में गश्त कर रहे थे, तो चीन की PLA ने आपत्ति जताई और पेट्रोलिंग रुकवा दी।
इस मुद्दे को लेकर फरवरी 2025 के अंत में फ्लैग मीटिंग तक करनी पड़ी, जिसमें चीन ने फिर अपनी मनमानी दिखाई। रिपोर्ट के अनुसार, यह वही अमो-छू नदी है जो डोकलाम में तोरसा के रूप में जानी जाती है। यह नदी आगे चलकर दो भागों में विभाजित होती है – एक हिस्सा दक्षिण की ओर जामफेरी रिज की ओर जाता है, जबकि दूसरा पूर्व की ओर भूटान में अमो-छू नाम से जाना जाता है।
चीन की रणनीति और भारत का जवाब
चीन की नीति है – विस्तार और प्रभाव। लेकिन भारत की रणनीति है – सहयोग और सशक्तिकरण। इसी नीति के तहत भारत ने भूटान को सामरिक रूप से सशक्त करने का बीड़ा उठाया है। रोड टू डोकलाम सिर्फ एक सड़क नहीं, बल्कि आने वाले समय में सामरिक रणनीति का सबसे मजबूत मोहरा बन सकती है। यह परियोजना यह भी दर्शाती है कि भारत अपने पड़ोसियों की सुरक्षा में कितना समर्पित है और चीन की विस्तारवादी नीति को चुनौती देने के लिए कितना तैयार है।
प्रोजेक्ट दंतक क्या है?
प्रोजेक्ट दंतक भारतीय सीमा सड़क संगठन (Border Roads Organisation – BRO) द्वारा वर्ष 1961 में भूटान में शुरू किया गया एक महत्त्वपूर्ण इंफ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्ट है। इसका उद्देश्य भूटान में सड़कों, पुलों और अन्य यातायात सुविधाओं का निर्माण कर वहां के दूरदराज इलाकों को जोड़ना और रणनीतिक दृष्टि से भारत-भूटान संबंधों को मजबूत बनाना है। प्रोजेक्ट दंतक ने भूटान की प्रगति में ऐतिहासिक भूमिका निभाई है — चाहे वह सड़क संपर्क हो, स्वास्थ्य सेवाओं तक पहुंच या आर्थिक विकास के नए रास्ते खोलना। यह परियोजना भारत और भूटान के बीच मित्रता और सहयोग का प्रतीक मानी जाती है और इसमें तैनात भारतीय इंजीनियर व जवान, अत्यंत विषम भौगोलिक परिस्थितियों में भी कार्य करते हैं।
ROAD TO DOKLAM: एक सामरिक संदेश, एक मजबूत पड़ोसी और एक असाधारण साझेदारी
भूटान की धरती पर बनी इस ऑल वेदर रोड ने चीन को एक स्पष्ट संकेत दे दिया है – अब विस्तारवाद नहीं चलेगा। भारत और भूटान की यह साझेदारी दक्षिण एशिया में स्थिरता की मजबूत नींव रखती है। डोकलाम पर भारत का यह कदम न सिर्फ भूटान के लिए एक सुरक्षा कवच है, बल्कि भारत के लिए भी रणनीतिक बढ़त का प्रतीक है।