Madras HC का केंद्र से सवाल- यूपी-बिहार के मुकाबले तमिलनाडु-आंध्र प्रदेश में लोकसभा सीटें कम क्यों?
Madras हाईकोर्ट ने केंद्र से पूछा है कि तमिलनाडु और आंध्र प्रदेश ने जनसंख्या को नियंत्रित किया हुआ है, लेकिन उसके बाद भी उत्तर प्रदेश, बिहार राजस्थान और मध्य प्रदेश जैसे अधिक आबादी वाले राज्यों की संसद में सीटें अधिक क्यों हैं? कोर्ट ने कहा कि तमिलनाडु को इसका मुआवजा मिलना चाहिए। ये रकम 5,600 करोड़ रुपए तक हो सकती है।
हाईकोर्ट ने कहा कि 1962 तक लोकसभा में तमिलनाडु के 41 सदस्य थे। इसके बाद जनसंख्या में कमी के कारण तमिलनाडु में लोकसभा सीटों की संख्या घटकर 39 हो गई। कोर्ट का कहना था कि लोकतंत्र में हर वोट के मायने हैं। हाईकोर्ट ने 1999 में अटल बिहार वाजपेयी सरकार के खिलाफ लाए गए अविश्वास प्रस्ताव का जिक्र करते हुए ये आदेश जारी किया।
हाईकोर्ट ने कहा कि तमिलनाडु कोटे से राज्यसभा में सीटों को बढ़ाया जाना चाहिए था। इससे सूबे के जनसंख्या नियंत्रण कार्यक्रम पर भी मुहर लगेगी। कोर्ट ने कहा कि जनसंख्या नियंत्रण संसद में राज्य का प्रतिनिधित्व तय करने का आधार नहीं हो सकते। ये आदेश मद्रास हाईकोर्ट जस्टिस केएन किरुबाकरन, जस्टिस बी पुग्लेन्धी ने 17 अगस्त को जारी किया। किरुबाकरन 19 को रिटायर हो गए।
कोर्ट का कहना था कि जो राज्य जनसंख्या नियंत्रण कार्यक्रम को लागू करने में असफल रहे, उन्हें संसद में अधिक राजनीतिक प्रतिनिधित्व मिला। जबकि दक्षिणी राज्य खासकर आंध्र प्रदेश और तमिलनाडु को कम प्रतिनिधित्व मिला हुआ है। कोर्ट ने पूछा कि क्या केंद्र तमिलनाडु में सीटों की संख्या बढ़ाकर फिर से 41 करेगा?
गौरतलब है कि लोकसभा में कुल 542 सीट हैं। बहुमत का आंकड़ा 272 का है। सबसे ज्यादा सीटें यूपी में हैं। यहां से 80 सांसद लोकसभा जाते हैं। महाराष्ट्र से 48, बिहार से 40 सांसद चुने जाते हैं। जबकि तमिलनाडु में ये तादाद 39 रहै जबकि आंध्रप्रदेश में 25 है। मध्य प्रदेश से 29 सांसद लोकसभा के लिए चुने जाते हैं।