Mau- उत्तर प्रदेश क्रिकेट चयन में पूर्वांचल के खिलाड़ियों के साथ भेदभाव पर भड़का गुस्सा: बीसीसीआई का पुतला जलाकर विरोध
Mau: उत्तर प्रदेश में क्रिकेट के खेल में क्षेत्रीय भेदभाव का मुद्दा एक बार फिर सुर्खियों में है। हाल ही में पूर्वांचल और मध्य उत्तर प्रदेश के क्रिकेट खिलाड़ियों के साथ हो रहे अन्याय के खिलाफ व्यापक विरोध प्रदर्शन किया गया। इस आंदोलन की शुरुआत क्रिकेट प्लेयर एसोसिएशन, मऊ के अध्यक्ष शिवबचन यादव और एसोसिएशन के सचिव नासिरुद्दीन के नेतृत्व में हुई। नाराज क्रिकेटरों ने बीसीसीआई का पुतला जलाकर अपना विरोध दर्ज किया, और उत्तर प्रदेश क्रिकेट एसोसिएशन (यूपीसीए) के टीम चयन प्रक्रिया में सुधार की मांग उठाई।
पूर्वांचल के क्रिकेटरों के साथ भेदभाव की गहरी परछाइयां
शिवबचन यादव के अनुसार, उत्तर प्रदेश में 75 जिले हैं, लेकिन यूपीसीए ने सिर्फ 41 जिलों को मान्यता दी है। बाकी 34 जिलों को न केवल नजरअंदाज किया जा रहा है बल्कि उनके खिलाड़ियों को उच्च स्तरीय टीमों में जगह मिलने का मौका भी नहीं मिलता है। पूर्वांचल के खिलाड़ियों की प्रमुख मांग है कि यूपी क्रिकेट टीम में 25 प्रतिशत कोटा सुनिश्चित किया जाए या एक अलग क्रिकेट एसोसिएशन आफ पूर्वांचल को मान्यता दी जाए। प्रदर्शनकारियों का कहना है कि जब तक यह मांग पूरी नहीं होती, विरोध प्रदर्शन जारी रहेगा।
यह मुद्दा केवल खिलाड़ियों की हताशा को नहीं दर्शाता बल्कि यूपीसीए के अंदर गहरे बैठे भ्रष्टाचार और भाई-भतीजावाद की पोल खोलता है। यूपीसीए के चयनकर्ताओं और संबंधित पदाधिकारियों पर पश्चिमी उत्तर प्रदेश के जिलों को प्राथमिकता देने का आरोप लगाया गया है, जिसके चलते पूर्वांचल के खिलाड़ियों की अनदेखी की जा रही है।
पश्चिमी यूपी के खिलाड़ियों को अधिक मौका, पूर्वांचल के खिलाड़ियों को किया जा रहा नज़रअंदाज
यादव ने बताया कि यूपी क्रिकेट टीम के चयन में मेरठ, गाजियाबाद, मुरादाबाद और दिल्ली-हरियाणा के खिलाड़ियों को विशेष प्राथमिकता दी जाती है। लेकिन बलिया और मऊ जैसे पूर्वांचल के जिलों के खिलाड़ियों को या तो नजरअंदाज किया जाता है या केवल नाम मात्र के लिए टीम में शामिल कर लिया जाता है, बिना खेलने का अवसर दिए। यह स्थिति केवल रणजी ट्रॉफी ही नहीं, बल्कि अंडर-16, अंडर-19 और अंडर-23 (पुरुष और महिला दोनों) टीमों में भी समान है। पूर्वांचल के कई युवा खिलाड़ी ऐसे हैं, जिन्होंने स्थानीय स्तर पर उत्कृष्ट प्रदर्शन किया है, लेकिन यूपीसीए के द्वारा उन्हें बराबरी का मंच नहीं दिया जा रहा।
आरोप: प्रभावशाली पदाधिकारियों का दखल और चयन में पारदर्शिता की कमी
प्रदर्शनकारियों का आरोप है कि यूपीसीए के चयनकर्ताओं पर पश्चिमी यूपी के कुछ प्रभावशाली पदाधिकारियों का दबाव है, जो अपने क्षेत्रों के खिलाड़ियों को टीम में शामिल करवाते हैं। यूपी के कुछ जिलों के एसोसिएशन पदाधिकारी अपनी शक्ति का दुरुपयोग कर चयन प्रक्रिया में हस्तक्षेप करते हैं और उन खिलाड़ियों को अवसर दिलाते हैं जो उनके प्रभाव क्षेत्र से आते हैं। ये आरोप यूपी क्रिकेट चयन की पारदर्शिता पर सवाल उठाते हैं।
सुप्रीम कोर्ट ने टीम चयन में निष्पक्षता और पारदर्शिता को लेकर कुछ महत्वपूर्ण निर्देश दिए थे, जिनकी अनदेखी यूपीसीए के भीतर व्यापक स्तर पर हो रही है। चयनकर्ताओं पर दबाव डालना और अपने जिलों के खिलाड़ियों को बढ़ावा देना न केवल अनैतिक है, बल्कि यह उत्तर प्रदेश के खेल स्तर को कमजोर करने वाला कदम है। यह भी कहा गया है कि यूपीसीए के कई अधिकारी नियमों की अवहेलना कर अपने निजी लाभ के लिए चयन समिति पर दबाव बनाते हैं।
बीसीसीआई से पूर्वांचल के खिलाड़ियों की न्याय की अपील
पूर्वांचल के खिलाड़ियों और उनके समर्थकों का मानना है कि बीसीसीआई को इस मामले में त्वरित हस्तक्षेप करना चाहिए। बीसीसीआई की निष्पक्षता पर सवाल उठाते हुए प्रदर्शनकारियों ने यूपीसीए के पदाधिकारियों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की मांग की है। शिवबचन यादव ने अपनी अपील में कहा कि बीसीसीआई को पूर्वांचल के खिलाड़ियों के लिए एक अलग क्रिकेट एसोसिएशन बनाना चाहिए। इससे न केवल क्षेत्र के खिलाड़ियों को खेल में आगे बढ़ने का मौका मिलेगा, बल्कि यूपीसीए के भीतर व्याप्त भ्रष्टाचार और भाई-भतीजावाद का अंत भी हो सकेगा।
युवा क्रिकेटरों के सपनों पर मंडरा रहा खतरा
पूर्वांचल के युवा क्रिकेटर अपने सपनों को पूरा करने के लिए कठिन मेहनत करते हैं, लेकिन चयन प्रक्रिया में भेदभाव के कारण उनके सपने अधूरे रह जाते हैं। मऊ, बलिया, आजमगढ़, और गोरखपुर जैसे जिलों के कई युवा खिलाड़ी वर्षों से अपनी काबिलियत का प्रदर्शन कर रहे हैं, लेकिन यूपीसीए की एकतरफा नीति और चयन में पारदर्शिता की कमी के चलते वे अपने अधिकारों से वंचित रह जाते हैं। इन खिलाड़ियों के साथ किया जा रहा यह अन्याय न केवल उनके करियर को प्रभावित कर रहा है, बल्कि उनके सपनों पर भी गहरा आघात पहुंचा रहा है।
क्या यूपीसीए सुनेगा पूर्वांचल की आवाज?
अब देखना यह है कि यूपीसीए और बीसीसीआई इस मसले पर किस तरह से कार्रवाई करते हैं। क्या वे पूर्वांचल के खिलाड़ियों के साथ हो रहे अन्याय को समाप्त करने की दिशा में कोई ठोस कदम उठाएंगे या फिर क्षेत्रीय राजनीति और प्रभावशाली पदाधिकारियों के दबाव में इसी तरह भेदभाव का दौर चलता रहेगा?
इस विरोध प्रदर्शन ने स्पष्ट कर दिया है कि पूर्वांचल के क्रिकेटर अब खामोश नहीं रहेंगे। यदि यूपीसीए ने उनकी मांगों पर ध्यान नहीं दिया तो यह आंदोलन और तेज हो सकता है।