नेपाल की संसद में हिंदी पर रोक की तैयारी, क्या ऐसा चीन के निर्देश पर किया जा रहा है?
नेपाल और चीन की दोस्ती गहराती जा रही है और इसका असर नेपाल की सियासत पर दिख रहा है। दरअसल, नेपाल की संसद में हिंदी पर रोक की तैयारी की जा रही है, जिसको लेकर सांसदों ने प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली से पूछा है कि क्या ऐसा चीन के निर्देश पर किया जा रहा है?
हालांकि, प्रधानमंत्री ओली सियासी बगावत से लगातार देश की जनता का ध्यान भटकाने में लगे हुए हैं। इसके लिए उन्होंने भारत के विरोध को हथियार बनाया है। दरअसल, वह नेपाल में एक नए राष्ट्रवाद का उदय करना चाह रहे हैं
ताकि उनकी पार्टी में उनके काम करने के तरीकों पर उठ रहे सवालों को खत्म किया जा सके। साथ ही विरोधियों को भी इसमें उलझाया जा सके।
नेपाली प्रधानमंत्री संसद में हिंदी भाषा को प्रतिबंधित करने पर विचार कर रहे हैं। नेपाल पहले ही भारत के साथ सीमा विवाद और नागरिकता के मुद्दे पर अपना रोष जता चुका है। लेकिन अब हिंदी भाषा को प्रतिबंधित करने पर प्रधानमंत्री को विपक्षी पार्टियों द्वारा घेरा जा रहा है।
जनता समाजवादी पार्टी की सांसद और मधेशी नेता सरिता गिरी ने सदन के अंदर इस मुद्दे पर जोरदार विरोध जताया। उन्होंने कहा कि सरकार का यह कदम तराई और मधेशी क्षेत्र में कड़े विरोध को जन्म दे सकता है। सांसद ने प्रधानमंत्री से पूछा है कि क्या ऐसा करने के लिए उन्हें चीन की तरफ से निर्देश दिए गए हैं। गौरतलब है कि कोरोना वायरस को लेकर जनता पहले से ही पीएम ओली से नाराज है।
बता दें कि, नेपाल में नेपाली भाषा के बाद सबसे ज्यादा मैथिली, भोजपुरी और हिंदी बोली जाती है। नेपाल के तराई इलाकों में रहने वाले लोगों के बीच भारतीय भाषाएं प्रचलित हैं। इसे देखते हुए नेपाल सरकार द्वारा हिंदी को प्रतिबंधित करना कहीं से भी आसान नजर नहीं आ रहा है। ऐसे में अगर सरकार हिंदी को प्रतिबंधित करने के लिए कानून पारित करती है, तो इसका विरोध देखने को मिल सकता है।
वहीं, इस मुद्दे पर अपनी ही पार्टी में नाराजगी का सामना कर रहे ओली पर अब विपक्ष ने भी हमला बोलना शुरू कर दिया है। विपक्षी पार्टी नेपाली कांग्रेस ने संसद के निचले सदन में चीन के अतिक्रमण को नियंत्रित करने का प्रस्ताव दिया है। प्रस्ताव के मुताबिक, चीन ने नेपाल के दोलका, हुमला, सिंधुपलचौक, संखूवसाभा, गोरखा और रसूवा जिलों में 64 हेक्टेयर की जमीन पर अतिक्रमण किया हुआ है।