मीरांपुर उपचुनाव में रालोद-भा.ज.पा. गठबंधन की शानदार जीत, Mithlesh Pal की ऐतिहासिक जीत ने सबको चौंकाया!
मुजफ्फरनगर।(Muzaffarnagar) उत्तर प्रदेश के मीरांपुर विधानसभा उपचुनाव में रालोद-भा.ज.पा. गठबंधन प्रत्याशी मिथलेश पाल ने अपने राजनीतिक प्रतिद्वंद्वियों को हराते हुए ऐतिहासिक जीत हासिल की है। इस जीत ने न सिर्फ प्रदेश की राजनीति में हलचल मचा दी है, बल्कि मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और रालोद प्रमुख जयंत चौधरी की प्रतिष्ठा भी दांव पर लगी थी। मीरांपुर की यह हॉट सीट, जहां से सबकी नजरें टिकी हुई थीं, पर मिथलेश पाल ने न केवल जीत हासिल की, बल्कि यह भी साबित कर दिया कि रालोद-भा.ज.पा. का गठबंधन उत्तर प्रदेश की राजनीति में अपना दबदबा बनाए हुए है।
वोटों की गिनती में मिथलेश पाल का परचम
मीरांपुर उपचुनाव की मतगणना बैलेट पेपर से शुरू हुई थी और शुरुआती राउंड्स में मिथलेश पाल ने धीरे-धीरे अपनी बढ़त बनानी शुरू की। पहले दो-तीन राउंड्स में वोटों का अंतर थोड़ी सी कमी दिखी, लेकिन जैसे-जैसे मतगणना आगे बढ़ी, मिथलेश की जीत निश्चित होती चली गई। 20वें राउंड के बाद, कार्यकर्ता खुशी के मारे झूमने लगे और दयानंद धर्मशाला में आतिशबाजी की गूंज सुनाई देने लगी।
चुनाव के अंतिम परिणामों ने सभी को चौंका दिया। मिथलेश पाल को कुल 83,852 वोट मिले, जबकि सपा प्रत्याशी सुम्बुल राणा को 53,426 वोट मिले। वहीं, असपा प्रत्याशी जाहिद हसन को 22,400 और एआईएमआईएम प्रत्याशी अरशद राणा को 18,867 वोट मिले। सबसे कम वोट बसपा प्रत्याशी शाह नजर को प्राप्त हुए, जिन्होंने मात्र 3,181 वोट हासिल किए।
मिथलेश पाल का संदेश
मिथलेश पाल ने जीत के बाद कहा, “यह जीत केवल मेरी नहीं है, यह सभी जाति और धर्मों के लोगों की जीत है जिन्होंने मुझ पर विश्वास जताया। मैं बिना किसी भेदभाव के क्षेत्र का विकास करूंगी और जहां तक जो कार्य चल रहे हैं, उन्हें और गति मिलेगी। जनता का प्यार और समर्थन ही मेरी सबसे बड़ी ताकत है, इसके लिए मैं आभारी हूं।”
उन्होंने रालोद और भा.ज.पा. के सभी कार्यकर्ताओं और नेताओं का आभार व्यक्त किया और कहा कि चुनाव के दौरान जिनकी मेहनत और निष्ठा ने इस विजय को संभव बनाया, वे सच्चे योद्धा हैं।
रालोद-भा.ज.पा. गठबंधन की एकजुटता
रालोद-भा.ज.पा. गठबंधन के समर्थकों की खुशी का ठिकाना नहीं था जब मिथलेश पाल की जीत की घोषणा हुई। दोनों पार्टी के नेताओं ने उन्हें जीत की बधाई दी और यह साबित कर दिया कि उनके बीच गठबंधन और सहयोग मजबूत है। इस दौरान प्रदेश के कैबिनेट मंत्री अनिल कुमार, स्वतंत्र प्रभार राज्यमंत्री कपिलदेव अग्रवाल, पूर्व मंत्री संजीव बालियान, विधायक प्रसन्न चौधरी, पूर्व मंत्री योगराज सिंह, विधान परिषद सदस्य वंदना वर्मा और कई अन्य प्रमुख नेता भी मौजूद थे।
रालोद के जिलाध्यक्ष संदीप मलिक, मंडल अध्यक्ष प्रभात तोमर और पार्टी के अन्य पदाधिकारियों ने भी इस जीत को ऐतिहासिक बताया। पार्टी कार्यकर्ताओं के बीच उत्साह का माहौल था और हर किसी का मानना था कि यह चुनावी जीत उनके कठिन परिश्रम का परिणाम है।
एआईएमआईएम और बसपा के पराजय का विश्लेषण
इस उपचुनाव में एआईएमआईएम के प्रत्याशी अरशद राणा की भूमिका भी अहम रही। ओवैसी की पार्टी ने मीरांपुर में अपनी ताकत दिखाई, हालांकि वे खुद को एक निर्णायक शक्ति साबित नहीं कर पाए। चुनावी विश्लेषकों का मानना था कि एआईएमआईएम प्रत्याशी को ओवैसी की पार्टी के प्रभाव के कारण भारी समर्थन मिलेगा, लेकिन अरशद राणा को 18,867 वोट ही मिल पाए। यह संख्या उन सभी के लिए चौंकाने वाली थी जिन्होंने माना था कि एआईएमआईएम मीरांपुर में अपना प्रभाव बढ़ा सकेगी।
एक और बड़ा उलटफेर बसपा के परिणामों में देखने को मिला। चुनावी पूर्वानुमानों के अनुसार, बसपा प्रत्याशी शाह नजर को परंपरागत बसपा वोट मिलने की संभावना थी, लेकिन युवा वर्ग का झुकाव चंद्रशेखर के खेमे की ओर हो गया और बसपा प्रत्याशी को केवल 3,181 वोट मिले। वहीं, आजाद समाज पार्टी के प्रत्याशी जाहिद हसन को 22,400 वोट मिले, जो अपेक्षाकृत अच्छे थे।
गठबंधन की मजबूती और भविष्य की राजनीति
मीरांपुर उपचुनाव ने यह साबित कर दिया कि रालोद और भा.ज.पा. का गठबंधन उत्तर प्रदेश की राजनीति में अपनी अहमियत बनाए रखेगा। इस जीत ने न केवल गठबंधन को मजबूती दी है, बल्कि इसने उन तमाम राजनीतिक विश्लेषकों के मुंह बंद कर दिए हैं जो लगातार यह कहते थे कि यूपी में क्षेत्रीय दलों का वर्चस्व बढ़ेगा।
गठबंधन के भीतर की एकजुटता और विकास के प्रति प्रतिबद्धता ने मिथलेश पाल को ऐतिहासिक जीत दिलाई है। आने वाले विधानसभा चुनावों में इस गठबंधन की सियासी ताकत और प्रभावी साबित हो सकता है, खासकर मीरांपुर जैसी सीटों पर जहां वोटरों ने बदलाव की उम्मीद जताई थी।
सर्वेक्षण और भविष्यवाणियां
इस उपचुनाव ने सभी राजनीतिक दलों को एक सख्त संदेश दिया है कि यदि उन्हें जनता के विश्वास को जीतना है, तो उन्हें न केवल गठबंधन को मजबूत करना होगा, बल्कि क्षेत्रीय और जातिगत समीकरणों को भी समझना होगा। आने वाले चुनावों में यही कड़ी रणनीति तय करेगी कि कौन सा दल अपने दांव में जीत पाता है।